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बार-बार नींद टूटना डिमेंशिया के बढ़े हुए जोखिम से जुड़ा हो सकता है, क्योंकि खराब नींद मस्तिष्क में जमा होने वाले प्रोटीन (एमाइलॉइड) और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं को बढ़ा सकती है, जो बाद में मस्तिष्क के रक्त प्रवाह को कम कर सकते हैं। हालांकि, खराब नींद सीधे डिमेंशिया का कारण नहीं बनती, बल्कि यह एक शुरुआती संकेत या जोखिम बढ़ाने वाली स्थिति हो सकती है। सोने में दिक्कत होने पर डॉक्टर से सलाह लेना और जीवनशैली में बदलाव लाना महत्वपूर्ण है।
मस्तिष्क की अपनी अपशिष्ट निपटान प्रणाली होती है - जिसे ‘ग्लाइम्फैटिक’ प्रणाली के नाम से जाना जाता है। सोते समय यह अधिक सक्रिय मानी जाती है। नींद में खलल इस अपशिष्ट निपटान प्रणाली में बाधा डाल सकता है और मस्तिष्क से अपशिष्ट उत्पादों या विषाक्त पदार्थों की निकासी को धीमा कर सकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि नींद की कमी के कारण इन विषाक्त पदार्थों का जमाव किसी व्यक्ति में डिमेंशिया (मनोभ्रंश) के खतरे को बढ़ा सकता है।
डिमेंशिया मस्तिष्क संबंधी स्थिति है
जो याददाश्त, सोचने और तर्क करने की क्षमता को इतना गंभीर रूप से प्रभावित करती है कि दैनिक जीवन और गतिविधियों में समस्याएं आने लगती हैं। इस बात पर अभी भी बहस जारी है कि यह ‘ग्लाइम्फैटिक’ प्रणाली मनुष्यों में कैसे काम करती है और अब तक ज्यादातर शोध चूहों पर ही किया गया है। लेकिन इससे यह आशंका बढ़ जाती है कि बेहतर नींद मानव मस्तिष्क से इन विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद कर सकती है, जिससे मनोभ्रंश का खतरा कम हो सकता है।
अपशिष्ट क्यों मायने रखता है?
शरीर की सभी कोशिकाएं अपशिष्ट उत्पन्न करती हैं। मस्तिष्क के बाहर, लसिका तंत्र इस अपशिष्ट को कोशिकाओं के बीच के स्थानों से लसिका वाहिकाओं के एक नेटवर्क के माध्यम से रक्त तक पहुंचाता है। लेकिन मस्तिष्क में कोई लसिका वाहिकाएं नहीं होतीं। और लगभग 12 साल पहले तक, मस्तिष्क अपने अपशिष्ट पदार्थों को कैसे साफ करता है, यह एक रहस्य था। तभी वैज्ञानिकों ने ‘‘ग्लाइम्फैटिक’’ प्रणाली की खोज की और बताया कि यह मस्तिष्क के विषाक्त पदार्थों को कैसे ‘‘बाहर निकालता’’ है।
मस्तिष्कमेरु द्रव
मस्तिष्कमेरु द्रव से, जो मस्तिष्क और मेरुमज्जा के चारों ओर होता है। यह द्रव मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं के आसपास के क्षेत्रों में प्रवाहित होता है। इसके बाद यह मस्तिष्क की कोशिकाओं के बीच के स्थानों में प्रवेश करता है, अपशिष्ट को एकत्रित करता है, फिर उसे बड़ी जल निकासी नसों के माध्यम से मस्तिष्क से बाहर ले जाता है। वैज्ञानिकों ने चूहों पर यह दिखाया कि यह ‘ग्लाइम्फैटिक’ प्रणाली सबसे अधिक सक्रिय थी - जिसमें अपशिष्ट उत्पादों का निष्कासन बढ़ गया था - नींद के दौरान। लेकिन हाल में, चूहों पर किए गए एक अन्य अध्ययन से बिल्कुल उलट परिणाम सामने आए हैं – यह दर्शाता है कि ‘ग्लाइम्फैटिक’ तंत्र दिन के समय अधिक सक्रिय होता है।
अन्यथा मनोभ्रंश के खतरे को बढ़ा सकते हैं
शोधकर्ता इस बात पर बहस कर रहे हैं कि इन निष्कर्षों की व्याख्या क्या हो सकती है। इसलिए हम अभी यह पूरी तरह से नहीं कह सकते कि ग्लाइम्फैटिक प्रणाली, चूहों या इंसानों में, मस्तिष्क से विषाक्त पदार्थों को कैसे साफ करती है, जो अन्यथा मनोभ्रंश के खतरे को बढ़ा सकते हैं। हमें इसके बारे में और अध्ययन करना बाकी है। हम जानते हैं कि अच्छी नींद हमारे लिए, खासकर हमारे मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए बेहतर होती है। हम सभी नींद की कमी के हमारे मस्तिष्क की कार्य करने की क्षमता पर पड़ने वाले अल्पकालिक प्रभावों को जानते हैं, और हम यह भी जानते हैं कि नींद याददाश्त बढ़ाने में मदद करती है।
तो मनोभ्रंश का खतरा भी बढ़ जाता है
यह बात कम स्पष्ट है कि लंबे समय तक नींद में व्यवधान, उदाहरण के लिए यदि किसी को नींद संबंधी विकार है, तो इसका मस्तिष्क से ‘एबी’ को साफ करने की शरीर की क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है। अनिद्रा तब होती है जब किसी व्यक्ति को सोने में और/या सोते रहने में कठिनाई होती है। जब यह लंबे समय तक होता है, तो मनोभ्रंश का खतरा भी बढ़ जाता है।
हालांकि, हम यह नहीं जानते कि अनिद्रा के इलाज का मनोभ्रंश से जुड़े विषाक्त पदार्थों पर क्या प्रभाव पड़ता है। अभी भी यह निश्चित रूप से कहना जल्दबाजी होगी कि निद्रा विकार का उपचार करने से मस्तिष्क में विषाक्त पदार्थों के स्तर में कमी के कारण डिमेंशिया का खतरा कम हो जाता है। यदि आप अपनी नींद के बारे में चिंतित हैं, तो कृपया अपने डॉक्टर से मिलें। (द कन्वरसेशन) : Healthy Dish | get healthy | healthy heart tips | healthyfood | healthy lifestyle