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बहरापन एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती है, और जो शोर-शराबे से भरी दुनिया में काफी तेजी से बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना कि, वर्तमान में लगभग 1.5 अरब लोग (दुनिया की आबादी का करीब 20%) किसी न किसी रूप में सुनने की हानि से प्रभावित हैं। इनमें से 43 करोड़ लोग (लगभग 5%) गंभीर सुनने की की बीमारी से पीड़ित हैं, जिसमें 3.4 करोड़ बच्चे शामिल हैं। गंभीर सुनने की हानि का मतलब है कि बेहतर कान में 35 डेसिबल से अधिक की सुनने की क्षति। लेकिन अब ऐसे लोगों के लिए एक अच्छी खबर है, जन्मजात बहरापन या गंभीर सुनने की समस्या से जूझ रहे बच्चों और वयस्कों के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई जीन थेरेपी विकसित की है, जो इनके लिए वरदान साबित हो सकती है।
स्वीडन और चीन के शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस थेरेपी का सफल परीक्षण किया, जिससे 10 मरीजों की सुनने की क्षमता में सुधार हुआ। यह अध्ययन 'नेचर मेडिसिन' जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में 1 से 24 साल की उम्र के 10 मरीजों को शामिल किया गया, जो चीन के पांच अस्पतालों में भर्ती थे।
गंभीर सुनने की समस्या से पीड़ित पर किया अध्ययन
जिने मरीजों पर अध्ययन किया गया वे सभी ओटीओएफ जीन में म्यूटेशन के कारण बहरापन या गंभीर सुनने की समस्या से पीड़ित थे। यह म्यूटेशन ओटोफेर्लिन प्रोटीन की कमी का कारण बनता है, जो कान से दिमाग तक ध्वनि संकेत भेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जीन थेरेपी में कान के अंदरूनी हिस्से में एक खास तरह के सिंथेटिक वायरस (एएवी) का इस्तेमाल करके ओटोएफ जीन का एक वर्किंग वर्जन पहुंचाया गया। यह एक ही इंजेक्शन के जरिए कोक्लिया (कान का एक हिस्सा) के आधार पर मौजूद एक झिल्ली (जिसे राउंड विंडो कहते हैं) से दिया गया।
मरीजों पर जीन थेरेपी का असर तेजी से दिखा
इस थेरेपी का असर तेजी से दिखा। मात्र एक महीने में ज्यादातर मरीजों की सुनने की क्षमता में सुधार हुआ। छह महीने बाद हुए फॉलो-अप में सभी मरीजों में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई। औसतन, मरीज 106 डेसिबल की ध्वनि को सुनने में सक्षम थे, जो पहले की तुलना में 52 डेसिबल तक बेहतर हो गया।खास तौर पर 5 से 8 साल के बच्चों में यह थेरेपी सबसे ज्यादा प्रभावी रही। सात साल की एक बच्ची ने चार महीने में लगभग पूरी सुनने की क्षमता हासिल कर ली और वह अपनी मां के साथ रोजमर्रा की बातचीत करने लगी। वयस्क मरीजों में भी यह थेरेपी कारगर साबित हुई।
बहरेपन के जेनेटिक इलाज में एक बड़ा कदम
स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ माओली दुआन ने बताया, "यह बहरेपन के जेनेटिक इलाज में एक बड़ा कदम है। यह मरीजों की जिंदगी को बदल सकता है। हम अब इन मरीजों की निगरानी करेंगे ताकि यह पता चल सके कि यह प्रभाव कितने समय तक रहता है।"इस थेरेपी को सुरक्षित और अच्छी तरह सहन करने योग्य पाया गया। यह सफलता बहरापन के इलाज में नई उम्मीद जगाती है।
बहरेपन का प्रमुख कारण
उम्र बढ़ने के साथ बहरापन बढ़ता है 60 वर्ष से अधिक उम्र के 30% लोगों में सुनने की हानि देखी जाती है, और 80 वर्ष से अधिक उम्र के 81.4% तक लोग प्रभावित होते हैं। बच्चों में, लगभग 60% सुनने की हानि रोके जा सकने वाले कारणों जैसे कि टीकाकरण योग्य बीमारियों (मसलन, रूबेला, मेनिनजाइटिस) और कान के संक्रमण से होती है। उम्र बढ़ना (presbycusis) सबसे आम कारण है, खासकर 60 वर्ष से अधिक उम्र में। शोर के संपर्क में आना, जेनेटिक कारक, जन्मजात संक्रमण, और ओटोटॉक्सिक दवाओं का उपयोग।
आईएएनएस