नई दिल्ली, आईएएनएस। एक अध्ययन के अनुसार, जो नवजात शिशु जीवन के पहले कुछ हफ्तों में एंटीबायोटिक दवाएं लेते हैं, उनमें बचपन में लगाए जाने वाले जरूरी टीकों (वैक्सीन) का असर कम हो सकता है।
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बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता
ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बताया कि इसका कारण है शरीर की आंतों में पाए जाने वाले एक अच्छे बैक्टीरिया 'बिफीडोबैक्टीरियम' की मात्रा में कमी होना। पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जब शिशुओं को इन्फ्लोरान जैसे प्रोबायोटिक (फायदेमंद बैक्टीरिया की गोलियां या पाउडर) दिए गए, तो बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता फिर से मजबूत होने लगी।
जीवन की शुरुआत में एंटीबायोटिक
शोधकर्ता डेविड जे. लिन ने बताया कि अगर किसी बच्चे को जीवन की शुरुआत में एंटीबायोटिक दी जाती है, तो प्रोबायोटिक देकर उसके नुकसान को कम किया जा सकता है और टीकों का असर बेहतर किया जा सकता है। इस शोध में वैज्ञानिकों ने 191 स्वस्थ नवजात बच्चों को 15 महीने तक देखा। ये सभी सामान्य प्रसव से जन्मे थे। इनमें से 86 प्रतिशत बच्चों को जन्म के समय हेपेटाइटिस-बी का टीका दिया गया था, और 6 सप्ताह की उम्र में बाकी बचपन के समय लगने वाले नियमित टीके लगाए गए।
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एंटीबायोटिक के बुरे असर को कम कर सकता
खून और मल के सैंपल की जांच में पाया गया कि जिन बच्चों को जन्म के बाद सीधे एंटीबायोटिक दी गई थी, उनमें पीसीवी13 नामक टीके के खिलाफ बनने वाली एंटीबॉडी की मात्रा बहुत कम थी। पीसीवी13 टीका बच्चों को निमोनिया, खून के संक्रमण और मेनिन्जाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए दिया जाता है। यह टीका स्ट्रेप्टोकॉकस न्यूमोनिया नामक खतरनाक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करता है।
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शोध में यह भी पता चला कि जब चूहों को प्रोबायोटिक दिया गया, तो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता फिर से अच्छी हो गई। इससे साबित होता है कि प्रोबायोटिक देना एंटीबायोटिक के बुरे असर को कम कर सकता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि यह नतीजे यह संकेत देते हैं कि कुछ टीकों का असर, खासकर प्रोटीन-पॉलीसैकराइड कॉन्जुगेट टीकों का, हमारे पेट में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया पर बहुत हद तक निर्भर करता है। इसलिए, नवजात अवस्था में एंटीबायोटिक लेने वाले शिशुओं को प्रोबायोटिक देना टीकाकरण की प्रतिक्रियाओं को बेहतर बनाने का एक आसान, सस्ता और सुरक्षित तरीका हो सकता है।"
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