Advertisment

दीपावली के बाद डिटॉक्स: अपनाएं आयुर्वेदिक उपाय और रखें सेहत का ख्याल

आयुर्वेद मानता है कि ये शरीर में बनने वाले टॉक्सिन्स की वजह से होता है जो अग्नि (पाचनशक्ति) के मंद पड़ने से उत्पन्न होता है। चरक संहिता और अष्टांग हृदयम में इस स्थिति को विशेष ध्यान देने योग्य बताया गया है।

author-image
Dhiraj Dhillon
Dwali

त्योहारों की रौनक और मिठाइयोंकी मिठास का आनंद हर किसी को लुभाता है, लेकिन इसके बाद हमारा शरीर और मन अक्सर थकान और असंतुलन का अनुभव करते हैं। आयुर्वेद मानता है कि ये शरीर में बनने वाले टॉक्सिन्स की वजह से होता है जो अग्नि (पाचनशक्ति) के मंद पड़ने से उत्पन्न होता है। चरक संहिता और अष्टांग हृदयम में इस स्थिति को विशेष ध्यान देने योग्य बताया गया है।

क्या है- अतिसेवनात् उत्पन्न दोष

सुश्रुत संहिता में 'त्योहार' शब्द सीधे नहीं आता, लेकिन अतिभोजन, अनियमित दिनचर्या या उल्लास के बाद आहार-संयम की बात अनुवर्तनिक स्थितियों (जैसे उत्सव, विवाह, भोज आदि) से जोड़कर समझाई गई है। इसे “अतिसेवनात् उत्पन्न दोष” के रूप में बताया गया है – यानी जब व्यक्ति आनन्द या उत्सव में स्वाद के पीछे अधिक खा लेता है, तो अग्नि (पाचनशक्ति) मंद होती है और 'आम' जमा होता है। ऐसे समय लघु, सुपाच्य आहार लेने की सलाह दी गई है।

सुपाच्य मांड जैसी चीजें आदर्श व सुपाच्य

ग्रंथ के अनुसार, जब अग्नि मंद पड़ती है और अत्यधिक भोजन या अनियमित दिनचर्या से दोष उत्पन्न होते हैं, तो हल्का, सुपाच्य आहार लेना ही सबसे उपयुक्त उपाय है। ग्रंथों में वर्णित है – “मन्देअग्नौ लघुपानभोजनं हितम्” (अध्याय 46, अन्नपान विधि) अर्थात् मंद अग्नि के समय हल्का और सुपाच्य भोजन ही हितकारी है। यही कारण है कि दिवाली के बाद हल्की खिचड़ी, दाल-चावल, या सुपाच्य मांड जैसी चीजें आदर्श मानी जाती हैं।

तिल या हल्के आयुर्वेदिक तेल से शरीर की मालिश करें

त्योहारों के दौरान बढ़ा हुआ कफ और वात, पेट फूलना, भारीपन, गैस और फेफड़ों में जमा धुआं जैसी समस्याओं को जन्म देता है। आयुर्वेद में इस स्थिति में शोधन और अभ्यंग की सलाह दी गई है। अभ्यंग, यानी तिल या हल्के आयुर्वेदिक तेल से शरीर की मालिश, वात दोष को शांत करती है, रक्त संचार बढ़ाती है और मानसिक थकान को दूर करती है। यह केवल शारीरिक विश्राम ही नहीं देता, बल्कि मन को भी स्थिर करता है।

Advertisment

इसके अलावा, चरक संहिता में उल्लिखित है कि अत्यधिक भोज या उत्सव के बाद त्रिकटु (सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली) और हिंगवाष्टक जैसी जड़ी-बूटियों का सेवन पाचन अग्नि को पुनर्जीवित करने में मदद करता है। ये मसाले पेट की अम्लता और गैस को संतुलित करते हैं और पाचन तंत्र को सामान्य स्थिति में लौटाते हैं।

प्राणायाम और मौन का अभ्यास भी अत्यंत लाभकारी

मन की शांति के लिए प्राणायाम और मौन का अभ्यास भी अत्यंत लाभकारी है। आयुर्वेद में कहा गया है कि अत्यधिक शोर, रोशनी और सामाजिक गतिविधियों के कारण मन में चिड़चिड़ापन और बेचैनी पैदा होती है। ऐसे में योग कारगर है। अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और पांच मिनट का मौन ध्यान शरीर और मन दोनों के लिए एक प्राकृतिक शुद्धि का काम करता है। IANS

 HEALTH | Delhi health advisory | get healthy | get healthy body | Do Yoga Stay Healthy 

Advertisment

Do Yoga Stay Healthy Delhi health advisory HEALTH get healthy body get healthy
Advertisment
Advertisment