Health: तिल का तेल न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि इसके स्वास्थ्यवर्धक गुण इसे एक अमूल्य रत्न बनाते हैं। यह सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप में इस्तेमाल किया जा रहा है, विशेष रूप से सर्दियों में आयुर्वेदिक उपचारों में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
आयुर्वेद में तिल के तेल का महत्व
आयुर्वेद में तिल का तेल वात, पित्त और कफ को संतुलित करने के लिए प्रयोग किया जाता है, जिससे शरीर को आंतरिक रूप से मजबूती मिलती है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसी प्रसिद्ध ग्रंथों में इसे स्वास्थ्य लाभ के लिए एक प्रमुख औषधि माना गया है।
त्वचा और जोड़ों के लिए फायदेमंद
तिल का तेल त्वचा को कोमल और चमकदार बनाता है। इसके सेवन से शरीर के भीतर सूजन और दर्द कम होते हैं, और यह जोड़ों में लचीलापन बनाए रखने में मदद करता है। साथ ही, यह त्वचा को पोषण देने में भी सहायक है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तिल का तेल
तिल के तेल में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन 'ई', सेसमिन, सेसमोल और ओमेगा-3 जैसे तत्व होते हैं जो सूजन कम करने, रक्तचाप को नियंत्रित करने और दिल को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। यह तेल मानसिक स्थिति को सुधारता है, जिससे तनाव और अवसाद में कमी आती है।
हड्डियों और हृदय की सेहत
तिल का तेल हड्डियों को मजबूत बनाता है और हृदय की सेहत को बेहतर बनाता है। इसमें आयरन और मैग्नीशियम जैसे खनिज होते हैं, जो दिल की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं और रक्त प्रवाह को सामान्य रखते हैं।
मधुमेह और कैंसर से बचाव
तिल के तेल में पाया जाने वाला सेसमीन एंटीऑक्सीडेंट कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है। यह विशेष रूप से मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी है, क्योंकि यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद करता है।
पाचन स्वास्थ्य में सुधार
तिल का तेल पाचन प्रक्रिया को बेहतर बनाता है, जिससे शरीर को सही पोषण मिलता है। यह कब्ज को दूर करने में मदद करता है और पेट को साफ रखता है। तिल का तेल न केवल त्वचा और हड्डियों के लिए, बल्कि समग्र स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण और प्रभावी उपाय है।