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एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है, अगर हम सकारात्मक सोच अपनाएं और मुश्किल समय में धैर्य बनाए रखना सीखें, तो यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है, चाहे हालात जैसे भी हों। सामाजिक दूरी, स्वास्थ्य की चिंताएं और आर्थिक अनिश्चितता के कारण बहुत से लोगों के लिए डर और चिंता रोजमर्रा की बात हो गई है। यह स्टडी "जर्नल ऑफ रिसर्च इन पर्सनैलिटी" में पब्लिश हुई।
सेराक्यूज यूनिवर्सिटी और मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की कि किन व्यक्तिगत खूबियों से लोग लंबे समय तक तनाव, महामारी जैसी समस्याओं को झेल पाते हैं। सेराक्यूज यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफेसर जीवोन ओह ने इस टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने आशावाद और निराशावाद पर ध्यान दिया और देखा कि ये सोच हमारे स्वास्थ्य पर कैसे असर डालती हैं।
शोधकर्ताओं ने "हेल्थ एंड रिटायरमेंट स्टडी" के डेटा का इस्तेमाल किया। यह एक बड़ा सर्वे है जिसमें 50 साल से ज़्यादा उम्र के पूरे अमेरिका से लोगों को शामिल किया गया है। इस डेटा से पता चला कि मुश्किल वक्त में लोगों की सोच उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती है। उन्होंने पाया कि जो लोग ज्यादा आशावादी थे, वे महामारी जैसे तनाव में भी बेहतर ढंग से डटे रहे और उनका स्वास्थ्य ठीक रहा।
जीवोन ओह ने कहा, "महामारी ने बहुत सारे बदलाव लाए। हम जानना चाहते थे कि कौन सी खूबियां लोगों को ऐसे तनाव से निपटने में मदद करती हैं। हमने आशावाद पर ध्यान दिया, क्योंकि यह लोगों को कुछ करने के लिए प्रेरित करता है।"
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आशावादी लोग तनाव को सकारात्मक तरीके से देखते हैं। वे या तो समस्या को हल करने की कोशिश करते हैं या हालात को स्वीकार कर ढलने की कोशिश करते हैं। आशावाद और निराशावाद दोनों का मानसिक स्वास्थ्य से अलग-अलग संबंध था। जो लोग ज्यादा आशावादी थे, वे कम चिंता करते थे, कम तनाव और अकेलापन महसूस करते थे, और ज़्यादा मजबूत रहते थे।
ऐसा इसलिए था क्योंकि ये लोग ज़्यादा शारीरिक गतिविधि करते थे, उन्हें अपने रिश्तों से ज़्यादा सहारा और कम तनाव मिलता था। आशावादी लोग हकीकत को जानते हुए भी मानते हैं कि चीजें ठीक हो जाएंगी। यह सकारात्मक सोच उन्हें समस्याओं से निपटने और हल ढूंढने में मदद करती है। शोधकर्ताओं ने कहा, "हमारे अध्ययन से पता चला कि आशावादी लोग नई मुश्किलों में भी बेहतर रहे।"
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