वाईबीएन नेटवर्क। महिलाओं में यूरिक एसिड का असंतुलन एक आम लेकिन चिंताजनक समस्या बनता जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह होती है शरीर में हार्मोनल उतार-चढ़ाव, खासकर पीरियड्स और मेनोपॉज के दौरान। इस समय शरीर में एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन का स्तर प्रभावित होता है, जिससे यूरिक एसिड कंट्रोल करने की प्राकृतिक क्षमता कम हो जाती है। प्रीमेनोपॉजल महिलाओं में यह स्तर अचानक बढ़ सकता है और अगर यह स्थिति बार-बार हो तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।
पाचन में गड़बड़ी से बढ़ता है खतरा
महिलाओं में अक्सर पाचन क्रिया कमजोर होती है, जिसका सीधा असर यूरिक एसिड पर पड़ता है। जब शरीर प्यूरिन को सही तरह से नहीं पचा पाता, तो यह यूरिक एसिड में बदलकर खून में जमा होने लगता है। खासतौर पर डायबिटीज, फैटी लिवर और किडनी से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त महिलाएं इस समस्या से ज्यादा प्रभावित होती हैं। मेटाबॉलिज्म की धीमी गति भी इस स्थिति को और जटिल बना देती है, जिससे समय के साथ यूरिक एसिड का स्तर खतरनाक रूप से ऊपर जा सकता है।
उपवास की आदत बन सकती है परेशानी
कई महिलाएं धार्मिक कारणों से लंबे समय तक व्रत रखती हैं, लेकिन लगातार उपवास से शरीर की ऊर्जा प्रक्रिया प्रभावित होती है। इससे न केवल पाचन तंत्र कमजोर होता है, बल्कि डाइजेस्टिव एंजाइम्स भी कम बनने लगते हैं। परिणामस्वरूप प्रोटीन का पाचन बाधित होता है और यूरिक एसिड का जमाव बढ़ने लगता है। यह आदत अगर नियमित हो जाए, तो जोड़ों में दर्द, सूजन और गठिया जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है।
मेनोपॉज के बाद बढ़ जाता है रिस्क
मेनोपॉज के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन का स्तर गिरता है, जिससे यूरिक एसिड पर नियंत्रण और भी मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि इस उम्र की महिलाओं को जोड़ों का दर्द, चलने में तकलीफ और थकान जैसी दिक्कतें ज्यादा होती हैं। यूरिक एसिड का सामान्य स्तर महिलाओं में 2.4 से 6.0 mg/dL के बीच होना चाहिए। अगर यह इससे ज्यादा हो, तो डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है क्योंकि लंबे समय तक नजरअंदाज करने से ये स्थिति गठिया या किडनी स्टोन तक का रूप ले सकती है।