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दिल्ली और देश के अन्य शहरों में स्कूली बच्चों में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है, जो एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता बन चुकी है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा किए गए हालिया अध्ययन से पता चलता है कि निजी स्कूलों के बच्चों में मोटापा सरकारी स्कूलों के बच्चों की तुलना में पांच गुना अधिक है। यह अध्ययन 6 से 19 वर्ष की आयु के 3,888 बच्चों पर किया गया, जिसमें 1,985 सरकारी और 1,903 निजी स्कूलों के बच्चे शामिल थे। अध्ययन में मोटापे के कारणों, इसके स्वास्थ्य जोखिमों और सामाजिक-आर्थिक अंतरों को समझने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
मोटापे की स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण
अध्ययन के अनुसार, निजी स्कूलों में 24.02% बच्चे अधिक वजन वाले और 22.70% मोटापे से ग्रस्त थे, जबकि सरकारी स्कूलों में यह आंकड़ा क्रमशः 7.63% और 4.48% था। पेट की चर्बी (abdominal obesity) निजी स्कूलों में 16.77% और सरकारी स्कूलों में 1.83% बच्चों में पाई गई। दोनों प्रकार के स्कूलों में लड़कियों की तुलना में लड़कों में मोटापा अधिक देखा गया। हाइपरटेंशन की स्थिति दोनों स्कूलों में लगभग समान (7.44% सरकारी और 7.27% निजी) थी। इसके अलावा, एक तिहाई बच्चे डिस्लिपिडेमिया (खून में असामान्य लिपिड स्तर) से ग्रस्त थे, और 15.02% किशोरों में ब्लड शुगर का स्तर डायबिटीज से पहले की स्थिति को दर्शाता था।
मोटापे के प्रमुख कारण
बदलती जीवनशैली: बच्चों में फास्ट फूड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत मोटापे का प्रमुख कारण है। निजी स्कूलों के बच्चे, जो अक्सर संपन्न परिवारों से होते हैं, इन खाद्य पदार्थों तक आसानी से पहुंच रखते हैं।
शारीरिक गतिविधियों की कमी: स्कूलों में खेलकूद और शारीरिक शिक्षा पर कम ध्यान, साथ ही मोबाइल और टीवी स्क्रीन पर बिताया गया समय, बच्चों को निष्क्रिय बना रहा है। कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन ने इस समस्या को और गहरा किया।
खानपान की गुणवत्ता में कमी: खराब खानपान और फूड सेफ्टी मानकों में गिरावट ने बच्चों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
आनुवंशिक और सामाजिक कारक: मोटापा कभी-कभी पारिवारिक होता है, लेकिन सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी इसकी बड़ी वजह है। निजी स्कूलों के बच्चों में अधिक संसाधनों की उपलब्धता के कारण अस्वास्थ्यकर खानपान की आदतें बढ़ी हैं।
स्वास्थ्य जोखिम
मोटापा बच्चों में कार्डियो-मेटाबोलिक समस्याओं जैसे हाइपरटेंशन, डायबिटीज, और डिस्लिपिडेमिया का कारण बन रहा है। ये समस्याएं वयस्कता में हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप-2 डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाती हैं। इसके अलावा, मोटापे से मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है, जैसे आत्मविश्वास की कमी और अवसाद।
विशेषज्ञों का सुझाव
विशेषज्ञों का सुझाव है कि स्कूलों में स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देना, कैंटीन में जंक फूड पर प्रतिबंध लगाना, और खेलकूद गतिविधियों को प्रोत्साहित करना जरूरी है। माता-पिता को बच्चों की दिनचर्या और खानपान पर ध्यान देना चाहिए। सरकार, स्कूल, और परिवारों को मिलकर जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
दिल्ली में मोटापे की समस्या, खासकर निजी स्कूलों में, एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का संकेत देती है। सरकारी स्कूलों में कम वजन की समस्या अधिक है, लेकिन मोटापा भी बढ़ रहा है। स्वस्थ जीवनशैली, संतुलित आहार, और शारीरिक गतिविधियों को अपनाकर इस समस्या से निपटा जा सकता है।
उन्होंने अध्ययन के उद्देश्यों, अपेक्षित परिणामों और इसके संभावित प्रभाव को समझाने के लिए प्रत्येक स्कूल के प्रधानाध्यापकों से मुलाकात की, ताकि तालमेल और विश्वास स्थापित किया जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘निष्कर्षों से पता चला है कि कम वजन वाले छात्रों की संख्या निजी स्कूल के छात्रों की तुलना में सरकारी स्कूल में लगभग पांच गुना अधिक थी। साथ ही, मोटापा सरकारी स्कूल के छात्रों की तुलना में निजी स्कूलों में पांच गुना अधिक था।’’ HEALTH | get healthy | Health Advice | ghaziabad healthcare news | Health Awareness | health benefits | Health and Fitness
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