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कालाष्टमी, हिंदू धर्म में भगवान भैरव, जो भगवान शिव के एक उग्र रूप हैं, को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन मार्गशीर्ष मास की कालाष्टमी को विशेष रूप से "काल भैरव जयंती" के रूप में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। वर्ष 2025 में मार्गशीर्ष कालाष्टमी 29 नवंबर को पड़ेगी। यह दिन भक्तों के लिए भय, नकारात्मकता, और बुराई को नष्ट करने वाले भैरव की उपासना का विशेष अवसर होता है। कालाष्टमी भगवान भैरव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। यह पर्व न केवल धार्मिक उत्साह को बढ़ाता है, बल्कि भक्तों को नकारात्मकता से मुक्ति और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
कालाष्टमी कब मनाई जाती है?
कालाष्टमी हर माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह तिथि चंद्र मास के आधार पर तय होती है। प्रत्येक कालाष्टमी पर भैरव की पूजा की जाती है, लेकिन मार्गशीर्ष मास की कालाष्टमी का विशेष महत्व है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन भगवान भैरव का प्राकट्य हुआ था। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, और रात्रि जागरण करते हैं। hindu festival | hindu | bhagwa Hindutva | hindu bhagwa
कालाष्टमी क्यों मनाई जाती है?
कालाष्टमी का उद्देश्य भगवान भैरव की कृपा प्राप्त करना है, जो भक्तों को भय, शत्रु, और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाते हैं। भैरव को तंत्र-मंत्र का अधिष्ठाता और काल का स्वामी माना जाता है। उनकी उपासना से व्यक्ति के जीवन में साहस, शक्ति, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह पर्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जो तांत्रिक साधना, ज्योतिष, या आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। भैरव की पूजा से कुंडली में राहु-केतु के दुष्प्रभाव भी कम होते हैं।
कालाष्टमी का इतिहास
कालाष्टमी और भगवान भैरव से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। सबसे प्रचलित कथा भगवान ब्रह्मा और भैरव के बीच विवाद से संबंधित है। शिव पुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा ने अपने पांचवें मुख से भगवान शिव का अपमान किया। इससे क्रोधित होकर शिव ने अपने उग्र रूप भैरव को प्रकट किया। भैरव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया, जिससे उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति के लिए भैरव को भटकना पड़ा, और अंततः काशी (वाराणसी) में उन्हें मुक्ति मिली। यही कारण है कि काशी में काल भैरव मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
एक अन्य कथा के अनुसार, भैरव को शिव ने संसार की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए प्रकट किया था। भैरव का स्वरूप डरावना होने के बावजूद, वे भक्तों के लिए दयालु और रक्षक हैं। उनकी सवारी श्वान (कुत्ता—M) है, और वे काले रंग, त्रिशूल, और खड्ग जैसे आयुधों से सुसज्जित हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन उनका प्राकट्य हुआ था।
कालाष्टमी का महत्व
कालाष्टमी का धार्मिक, आध्यात्मिक, और सामाजिक महत्व है। यह पर्व निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:
आध्यात्मिक उन्नति: भैरव की उपासना तंत्र और मंत्र साधना में विशेष स्थान रखती है। यह साधकों को आध्यात्मिक शक्ति और सिद्धियां प्रदान करती है।
भय और शत्रु से मुक्ति: भैरव को भय का नाश करने वाला माना जाता है। उनकी पूजा से व्यक्ति को आत्मविश्वास और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
ज्योतिषीय लाभ: राहु-केतु के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए भैरव पूजा अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। यह कुंडली के दोषों को शांत करती है।
सामाजिक एकता: कालाष्टमी पर मंदिरों में सामूहिक पूजा और भंडारे आयोजित होते हैं, जो समुदाय को एकजुट करते हैं।
कालाष्टमी की पूजा विधि
कालाष्टमी पर भक्त प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। भैरव मंदिर में जाकर या घर पर भैरव यंत्र स्थापित कर पूजा की जाती है। भैरव को काले तिल, सरसों का तेल, और मदिरा (कुछ क्षेत्रों में) चढ़ाई जाती है। भैरवाष्टक, भैरव चालीसा, और काल भैरव मंत्र ("ॐ भैरवाय नमः") का जाप किया जाता है। कुत्तों को भोजन देना शुभ माना जाता है, क्योंकि वे भैरव के वाहन हैं। रात्रि में जागरण और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।
कालाष्टमी का महत्व (Importance of Kalashtami)
भगवान काल भैरव की पूजा: कालाष्टमी (kalashtami) के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) के रौद्र रूप काल भैरव की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान काल भैरव की कृपा प्राप्त कर भक्त नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा पाते हैं, अन्याय और बुराइयों से मुक्ति मिलती है, जीवन में सफलता और समृद्धि आती है। काल भैरव को रक्षा, विनाश और परिवर्तन का देवता माना जाता है।
पाप नाश और मोक्ष प्राप्ति: कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की पूजा और व्रत करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए धार्मिक अनुष्ठान अत्यंत फलदायी माने जाते हैं। भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए भी इस दिन पूजा-अर्चना करते हैं।
ग्रह दोष निवारण और स्वास्थ्य लाभ: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा करने से ग्रहों के दोषों से मुक्ति मिलती है। इस दिन भगवान की आराधना करने से रोगों से भी छुटकारा मिलता है। कालाष्टमी व्रत और स्नान करने से व्यक्ति स्वस्थ और निरोगी रहता है।