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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः लाहौर के इंटरमीडिएट एवं माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (BISE) की 9वीं कक्षा की परीक्षा में एक सिख किशोर ओंकार सिंह ने बेमिसाल प्रदर्शन किया है। 15 वर्षीय इस छात्र ने इस्लामियत में 100 में से 98 अंक प्राप्त किए हैं। यह विषय इस्लाम के एक धर्म, विश्वदृष्टि और सभ्यता के अध्ययन पर केंद्रित है। उसे भौतिकी में 60, रसायन विज्ञान में 60 और जीव विज्ञान में 59 अंक मिले हैं।
कुरान के अनुवाद में 50 में से 49 अंक हासिल किए
एक रिपोर्ट के अनुसार ओंकार, मिनमल सिंह का पुत्र है। उसने सभी विषयों में A+ ग्रेड प्राप्त किए हैं। इस्लामियत, भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान के अलावा ओंकार सिंह ने अंग्रेजी में 75, उर्दू में 74 और पवित्र कुरान के अनुवाद में 50 में से 49 अंक हासिल किए हैं।
सिख लड़के ने बाजी तब मारी जब लाहौर बोर्ड का पास प्रतिशत 45 पर सिमट गया। कराची स्थित एआरवाई न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में कुल 3 लाख 80 हजार परीक्षार्थी वार्षिक 9वीं कक्षा की परीक्षा में शामिल हुए, जिनमें से 1 लाख 38 हजार सफल घोषित किए गए जबकि 1 लाख 69 हजार असफल रहे। पास होने का प्रतिशत केवल 45% रहा, जो दर्शाता है कि ओंकार की उपलब्धि कितनी असाधारण है। परीक्षा परिणाम बुधवार को आधिकारिक तौर पर ऑनलाइन जारी किए गए।
सोशल मीडिया पर छाया ओंकार
एक अलग धर्म से जुड़े होने के बावजूद इस्लामियत और पवित्र कुरान से जुड़े विषयों में असाधारण अंक प्राप्त करना दर्शाता है कि ओंकार की बौद्धिक क्षमता किस स्तर की है। सोशल मीडिया पर ओंकार सिंह के इस्लामियत स्कोर 98 ने खास तौर पर ध्यान खींचा है।
X पर एक व्यक्ति ने पोस्ट किया- बेचारा अगर वह अपने पूरे करियर में शीर्ष पर भी रहे तो भी वह पाकिस्तान में किसी भी शीर्ष पद पर नहीं आ सकता। सिर्फ इसलिए कि वह मुसलमान नहीं है।
एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि पाकिस्तान के पंजाब में पंजाबी को एक विषय के रूप में नहीं पढ़ाया जाता, बल्कि उर्दू थोपी जाती है।
पाकिस्तान में बदहाल हैं पंजाबी और हिंदू
पाकिस्तान में पंजाबियों और पंजाबी का क्या हाल है, ये बात तारिक फतह के एक बयान से भी समझी जा सकती है। द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, फतह ने कहा था कि पाकिस्तान के दस करोड़ पंजाबी पंजाबी पढ़ या लिख नहीं सकते। उर्दू ने पाकिस्तान का यही हाल कर दिया है। पंजाब विधानसभा में एक मुसलमान पंजाबी को पंजाबी में बोलने की इजाजत नहीं है। एक भी स्कूल शिक्षक पंजाबी नहीं जानता। एक भी स्कूल में पंजाबी माध्यम से पढ़ाई नहीं होती।
विडंबना यह है कि यही नीति बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए घातक साबित हुई, जब 1971 में बंगालियों पर उर्दू थोपने की कोशिश में उन्हें देश के आधे हिस्से से हाथ धोना पड़ा।
पाकिस्तान में सिखों की आबादी
1947 में लगभग 20 लाख सिख उन इलाकों में रहते थे जो अब पाकिस्तान हैं। पंजाब में उनकी अच्छी-खासी उपस्थिति थी। आज, उनकी आबादी घटकर लगभग 15 से 20 हजार तक रह गई है। कुछ लोग कहते हैं कि यह 8 हजार से भी कम हो सकती है। पाकिस्तान में सिख देश की आबादी का 0.01% से भी कम हिस्सा हैं। ये हाल तब है जब इस धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म 1469 में ननकाना साहिब में यहीं हुआ था। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन अपनी आध्यात्मिक शिक्षाओं के प्रसार में पाकिस्तान में ही बिताया था।
यह क्षेत्र कुछ महत्वपूर्ण सिख तीर्थस्थलों का घर है, जिनमें ननकाना साहिब स्थित गुरुद्वारा जन्मस्थान, अटक स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब और करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब शामिल हैं, जहां गुरु नानक ने अपने अंतिम वर्ष बिताए थे। करतारपुर में उन्होंने अपने तीन मार्गदर्शक सिद्धांत दिए- नाम जपना, कीरत करना और वंड चकना। ये मूल्य सिख अखंडता और समुदाय को आकार देते रहे हैं। सिर्फ सिख ही नहीं, पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या घटकर लगभग 2% और ईसाइयों की संख्या लगभग 1.3% रह गई है। मुसलमानों में भी शिया, और अहमदिया समुदाय के लोगों के साथ सुन्नी बहुसंख्यक भेदभाव करते हैं।
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