नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। लंबे समय से हिंसा का सामना कर रहे बलूचिस्तान के विद्रोही गुट ने पाकिस्तान से आजाद होने की घोषणा कर दी है। बलूच नेता मीर यार बलूच ने बुधवार को राज्य में दशकों से हो रही हिंसा, जबरन गायब किए जाने और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर पाकिस्तान से स्वतंत्रता का एलान किया है। इससे क्षेत्र में नई स्थिति पैदा हो गई है। बलूच नेता मीर यार बलोच ने दावा किया कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना राष्ट्रीय फैसला ले लिया है और अब दुनिया को भी चुप नहीं रहना चाहिए।
बलूचिस्तान अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं
मीर यार बलोच ने कहा कि बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं हैं। उन्होंने भारत और वैश्विक समुदाय से आजादी के लिए समर्थन देने की मांग की। उन्होंने एक्स पर लिखा कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना फैसला दे दिया है। अब दुनिया को चुप नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान के लोग सड़कों पर हैं।
उनका कहना है कि तुम मारोगे हम टूटेंगे, हम नाक बचाएंगे आओ हमारा साथ दो। उन्होंने भारतीय नागरिकों, खास तौर पर मीडिया, यूट्यूबरों और बुद्धिजीवियों से बलूचों को 'पाकिस्तान के अपने लोग' कहने से बचने का आग्रह किया है।
कानूनी दस्तावेज पेश नहीं कर सका पाकिस्तान
पाकिस्तान बलूचिस्तान के नेता के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर और 27 मार्च 1948 को बलूचिस्तान के पाकिस्तान में शामिल होने के समारोह में अंतरराष्ट्रीय या तीसरे देश की भागीदारी को साबित करने वाला एक भी कागज और कानूनी दस्तावेज पेश नहीं कर सका।
2016 में ही दे दिया था संकेत
पाकिस्तान जिस तरह से अपने घर में ही घिर गया है उसके पीछे मोदी सरकार की सफल कूटनीति और आतंक के ख़िलाफ़ दृढ़ इच्छा शक्ति है। हाल के वर्षों में भारत ने बलूचिस्तान मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना शुरू किया। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बलूचिस्तान का उल्लेख करना एक कूटनीतिक संकेत था कि भारत अब पाकिस्तान के आंतरिक मुद्दों को वैश्विक पटल पर उजागर करेगा।
दो मोर्चों की लड़ाई में घिरा पाकिस्तान
आज जहां एक तरफ भारत, पाकिस्तान की हर नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब दे रहा है तो वहीं बलूचिस्तान में सक्रिय विद्रोही समूह जैसे बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलोच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलोचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) पाकिस्तान की सेना और सी-पैक (CPEC) जैसे चीन-पाक परियोजनाओं पर हमले कर रहे हैं। भारत के लिए यह रणनीतिक रूप से लाभदायक है क्योंकि इससे पाकिस्तान की सेना को पश्चिमी सीमा पर व्यस्त रखा जा सकता है, जिससे वह कश्मीर या पंजाब में पूर्ण फोकस न कर पाए। बलूच स्वतंत्रता सेनानियों का यह संघर्ष पाकिस्तान के लिए एक ‘दो मोर्चों की लड़ाई’ बन चुका है, जो भारत के लिए सामरिक रूप से अनुकूल है।
पाकिस्तान अब तक बलूचिस्तान को कुचलता रहा है
दुनिया जानती है कि 1948 से अब तक बलूचिस्तान, पाकिस्तान की सैन्य दमन नीति का शिकार रहा है। पाकिस्तान ने बलूच जनता के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों को न केवल छीना है बल्कि हर आवाज को बेरहमी से दबाया है। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, बलूचिस्तान में पिछले दो दशकों में हज़ारों लोग लापता हुए हैं। पाकिस्तान की Inter-Services Intelligence (ISI) पर बलूच छात्रों, लेखकों और कार्यकर्ताओं को अगवा करने और ‘एनकाउंटर’ में मारने के आरोप हैं। कई बार सामूहिक कब्रें भी मिली हैं। वहां न स्वास्थ्य सेवाएं हैं, न शिक्षा का ढांचा और न ही मूलभूत सुविधाएं। प्राकृतिक संसाधनों जैसे गैस, कोयला और खनिजों से भरपूर होने के बावजूद बलूच लोग गरीबी में जी रहे हैं, जबकि इन संसाधनों से बाकी पाकिस्तान समृद्ध हो रहा है।