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BRICS मंच से भारत-चीन की ललकार : अब बदलेगा वर्ल्ड ऑर्डर, चुप नहीं बैठेगा ग्लोबल साउथ!

17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में चीन और भारत ने वैश्विक शासन सुधारों पर दिया ज़ोर। चीनी प्रीमियर ली ने शांति का आह्वान किया, पीएम मोदी ने ब्रिक्स को ग्लोबल साउथ का नेता बनने को कहा। क्या यह समूह दुनिया बदल पाएगा? जानें पूरी खबर!

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Ajit Kumar Pandey
BRICS मंच से भारत-चीन की ललकार: अब बदलेगा वर्ल्ड ऑर्डर, चुप नहीं बैठेगा ग्लोबल साउथ! | यंग भारत न्यूज

BRICS मंच से भारत-चीन की ललकार: अब बदलेगा वर्ल्ड ऑर्डर, चुप नहीं बैठेगा ग्लोबल साउथ! | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।आज 7 जुलाई 2025 तक चले रियो डी जनेरियो में 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में वैश्विक शासन सुधारों पर चीन और भारत ने हुंकार भरी है। चीनी प्रीमियर ली कियांग ने ब्रिक्स को वैश्विक शांति का अग्रदूत बनने का आह्वान किया, जबकि पीएम मोदी ने ग्लोबल साउथ की उम्मीदों पर खरा उतरने और बहुध्रुवीय विश्व का नेतृत्व करने पर जोर दिया। क्या ब्रिक्स वाकई दुनिया की दिशा बदल पाएगा?

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ब्राजील के जीवंत शहर रियो डी जनेरियो में चल रहे 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से एक ऐसी आवाज़ उठ रही है, जो दुनिया के भविष्य को नई दिशा देने का दम रखती है। यह आवाज़ है वैश्विक शासन सुधार की, जिसे इस बार चीन और भारत, दोनों देशों ने अपनी पूरी शक्ति के साथ उठाया है। कल्पना कीजिए, एक ऐसे मंच की, जहां दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी और एक बड़ा आर्थिक हिस्सा एक साथ आकर कहे कि अब बदलाव का वक्त आ गया है।

रविवार 6 जुलाई 2025 को, 'शांति और सुरक्षा और वैश्विक शासन में सुधार' विषय पर आयोजित पूर्ण सत्र में, चीनी प्रीमियर ली कियांग ने ब्रिक्स देशों से खुलकर बात की। उन्होंने आह्वान किया कि ब्रिक्स को एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए वैश्विक शासन सुधार एजेंडा को आगे बढ़ाने में सबसे आगे रहना चाहिए। ली का यह बयान सिर्फ एक राजनयिक बयान नहीं था, बल्कि एक ऐसी सोच को दर्शाता है जहां विकासशील देशों की आवाज़ को और मज़बूती मिले।

प्रीमियर ली कियांग ने ज़ोर दिया कि ब्रिक्स गुट को विश्व शांति और स्थिरता की रक्षा करनी चाहिए, और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देना चाहिए। क्या यह उस दुनिया के लिए एक संकेत है जो युद्धों और संघर्षों से जूझ रही है? निश्चित रूप से हाँ। जब बड़े और प्रभावशाली देश शांति की बात करते हैं, तो उसका असर दुनिया भर में होता है।

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इस बार चीन का प्रतिनिधित्व प्रीमियर ली ने किया, क्योंकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने 12 साल के कार्यकाल में पहली बार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से अनुपस्थित रहे। यह अपने आप में एक दिलचस्प पहलू है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि, इससे चीन के रुख में कोई कमी नहीं आई।

भारत का दमदार पक्ष : ग्लोबल साउथ का नेतृत्व

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ठीक उसी समय, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ब्रिक्स मंच से ग्लोबल साउथ की उम्मीदों को आवाज़ दी। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स को वैश्विक सहयोग और एक बहुध्रुवीय दुनिया के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना चाहिए। मोदी ने समूह से उदाहरण पेश करने और ग्लोबल साउथ की अपेक्षाओं को पूरा करने का आग्रह किया।

सोचिए, जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेता यह कहता है कि हमें उदाहरण पेश करना चाहिए, तो इसका मतलब कितना गहरा होता है। यह सिर्फ राजनयिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि एक ठोस प्रतिबद्धता है।

'बहुपक्षवाद को मजबूत करना, आर्थिक-वित्तीय मामले और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' पर आउटरीच सत्र में बोलते हुए, पीएम मोदी ने कहा कि ब्रिक्स की ताकत उसकी विविधता और बहुध्रुवीयता के प्रति साझा प्रतिबद्धता में निहित है। क्या यह विविधता ही ब्रिक्स को पश्चिम से अलग बनाती है? शायद हाँ। क्योंकि ब्रिक्स में ऐसे देश शामिल हैं जिनकी अपनी-अपनी पहचान और अपनी-अपनी प्राथमिकताएं हैं, लेकिन वे सभी एक समान लक्ष्य की ओर देख रहे हैं।

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मोदी ने कहा, "ब्रिक्स समूह की विविधता और बहुध्रुवीयता में हमारा दृढ़ विश्वास हमारी सबसे बड़ी ताकत है। हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि ब्रिक्स आने वाले समय में एक बहुध्रुवीय दुनिया के लिए मार्गदर्शक शक्ति के रूप में कैसे काम कर सकता है।" यह बयान सिर्फ एक सुझाव नहीं, बल्कि एक विजन है - एक ऐसा विजन जहां सत्ता का संतुलन एक धुरी पर केंद्रित न होकर कई केंद्रों में विभाजित हो।

क्यों महत्वपूर्ण है वैश्विक शासन सुधार?

आज की दुनिया में संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि ये संस्थाएं अब 21वीं सदी की वास्तविकताओं को नहीं दर्शातीं। ऐसे में वैश्विक शासन सुधार की बात और भी ज़रूरी हो जाती है। जब चीन और भारत जैसे बड़े देश इसकी वकालत करते हैं, तो इसका मतलब है कि वे एक ऐसे नए वैश्विक ढांचे की कल्पना कर रहे हैं जो अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण हो।

क्या मौजूदा वैश्विक व्यवस्था सभी के लिए निष्पक्ष है? कई विकासशील देश इससे असहमत होंगे। वे महसूस करते हैं कि उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता और उनकी आवाज़ को अक्सर अनसुना कर दिया जाता है। ऐसे में ब्रिक्स जैसे मंच एक वैकल्पिक मॉडल पेश कर सकते हैं।

यह सिर्फ आर्थिक सहयोग का समूह नहीं है, बल्कि एक ऐसा मंच है जहां भू-राजनीतिक मुद्दों पर भी गंभीर चर्चा होती है। क्या ब्रिक्स सिर्फ एक आर्थिक गुट बनकर रहेगा, या यह वाकई वैश्विक राजनीति में अपनी छाप छोड़ेगा? इस शिखर सम्मेलन से मिलने वाले संकेत तो यही इशारा करते हैं कि यह गुट अब सिर्फ व्यापार से आगे बढ़कर वैश्विक शक्ति संतुलन को बदलने में अपनी भूमिका देख रहा है।

आगे की राह: चुनौतियां और अवसर

हालांकि, वैश्विक शासन सुधार का रास्ता आसान नहीं है। इसमें कई चुनौतियां हैं। ब्रिक्स देशों के बीच भी अपनी-अपनी प्राथमिकताएं और हित हैं। उन्हें इन मतभेदों को सुलझाना होगा और एक साझा एजेंडा पर काम करना होगा।

लेकिन अवसर भी बहुत हैं। अगर ब्रिक्स देश एक साथ आ जाएं और अपनी सामूहिक शक्ति का उपयोग करें, तो वे वाकई दुनिया को एक नई दिशा दे सकते हैं। वे एक अधिक न्यायपूर्ण, संतुलित और शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

क्या ब्रिक्स अपनी विश्वसनीयता को प्रतिबिंबित कर पाएगा और ग्लोबल साउथ का नेतृत्व उदाहरण के साथ कर पाएगा, जैसा कि पीएम मोदी ने कहा? यह समय ही बताएगा। लेकिन एक बात निश्चित है: रियो डी जनेरियो में जो चर्चाएं हो रही हैं, उनका दूरगामी प्रभाव हो सकता है। यह सिर्फ एक शिखर सम्मेलन नहीं है, बल्कि दुनिया को बदलने की एक बड़ी कोशिश का हिस्सा है।

वैश्विक शासन सुधार के लिए ब्रिक्स का आह्वान ऐसे समय में आया है जब दुनिया कई भू-राजनीतिक तनावों, आर्थिक अनिश्चितताओं और जलवायु संकट जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे में, एक मजबूत और एकजुट ब्रिक्स की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

ब्रिक्स देशों का यह सम्मेलन सिर्फ कागज़ी कार्यवाही नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। चीन और भारत, दोनों की साझा आवाज़ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे केवल अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने तक सीमित नहीं रहना चाहते, बल्कि एक न्यायपूर्ण और संतुलित विश्व व्यवस्था के लिए वैश्विक शासन सुधार में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं।

अब देखना यह होगा कि ब्रिक्स देश इस चुनौती को कैसे स्वीकार करते हैं और क्या वे वाकई दुनिया के बदलते परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन पाएंगे। 

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