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एक विरासत—दो देश—गूंजती गोलियां—बौद्ध मंदिरों पर बरस रहीं मिसाइलें! मठ छोड़ने पर मजबूर भिक्षु

थाईलैंड-कंबोडिया जंग में प्राचीन बौद्ध मंदिर मिसाइलों से तबाह हो रहे हैं, भिक्षु पलायन को मजबूर हैं। प्रेह विहार मंदिर विवाद ने सांस्कृतिक विरासत पर बड़ा खतरा खड़ा कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की अपील।

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Ajit Kumar Pandey
एक विरासत—दो देश—गूंजती गोलियां—बौद्ध मंदिरों पर बरस रहीं मिसाइलें! मठ छोड़ने पर मजबूर भिक्षु | यंग भारत न्यूज

एक विरासत—दो देश—गूंजती गोलियां—बौद्ध मंदिरों पर बरस रहीं मिसाइलें! मठ छोड़ने पर मजबूर भिक्षु | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । "बौद्ध शांति की धरती पर अब गूंज रही हैं मिसाइलों की आवाज़ें! सदियों पुरानी इमारतें ध्वस्त हो रही हैं, और बौद्ध भिक्षु—जिनके जीवन का आधार ही शांति है—अपना मठ छोड़ने को मजबूर हैं।"

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच दशकों से चल रहा सीमा विवाद अब हथियारों की भाषा बोलने लगा है। प्रेह विहार मंदिर, जो यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल है और दोनों देशों की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है—अब युद्ध का मैदान बन चुका है।

सवाल उठता है—क्या धर्म, संस्कृति और आस्था की ये विरासतें राजनीति की आग में जल जाएंगी? और क्या कोई उम्मीद बाकी है इस टकराव के थमने की?

दोनों देशों की सीमाओं पर जारी गोलाबारी ने कई प्राचीन बौद्ध मंदिरों को निशाना बनाया है। मिसाइलों की मार से पत्थरों से बनी दीवारें और सदियों पुरानी प्रतिमाएं खंडहर में बदल रही हैं। इन हमलों का सीधा असर स्थानीय आबादी और धार्मिक स्थलों पर पड़ रहा है। कल्पना कीजिए, शांति और अध्यात्म के प्रतीक मंदिरों में अब सिर्फ धुआं और मलबा दिखाई दे रहा है।

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भिक्षुओं का पलायन: मंदिरों पर लगातार हमलों के कारण कई भिक्षुओं को अपना मठ और घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करना पड़ा है। उनकी आंखों में भय और अपने पवित्र स्थानों के नुकसान का दर्द साफ देखा जा सकता है।

सांस्कृतिक क्षति: यह युद्ध केवल इमारतों को नुकसान नहीं पहुंचा रहा, बल्कि यह थाईलैंड और कंबोडिया की अमूल्य सांस्कृतिक विरासत को भी मिटा रहा है। हर टूटी हुई मूर्ति, हर क्षतिग्रस्त शिलालेख एक इतिहास का अंत है।

यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच की लड़ाई नहीं, बल्कि मानवता की साझा धरोहर का विनाश है।

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एक विरासत—दो देश—गूंजती गोलियां—बौद्ध मंदिरों पर बरस रहीं मिसाइलें! मठ छोड़ने पर मजबूर भिक्षु | यंग भारत न्यूज
एक विरासत—दो देश—गूंजती गोलियां—बौद्ध मंदिरों पर बरस रहीं मिसाइलें! मठ छोड़ने पर मजबूर भिक्षु | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

विवाद की जड़: प्रेह विहार मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

प्रेह विहार मंदिर, 11वीं सदी का यह भव्य हिंदू-बौद्ध मंदिर डंगरेक पर्वत श्रृंखला पर स्थित है और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इस मंदिर पर किसका अधिकार है, यह तय करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) ने 1962 में फैसला कंबोडिया के पक्ष में सुनाया था, लेकिन थाईलैंड इस पर पूरी तरह सहमत नहीं है। यही असहमति अब एक बड़े मानवीय और सांस्कृतिक संकट में बदल गई है।

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अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी: कब होगा हस्तक्षेप?

इस भयानक स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी परेशान करने वाली है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि इस विनाश को रोका जा सके। शांति वार्ता और कूटनीति ही इस समस्या का एकमात्र स्थायी समाधान है।

मानवीय सहायता: विस्थापित भिक्षुओं और स्थानीय लोगों को तत्काल मानवीय सहायता की आवश्यकता है।

पुनर्निर्माण की चुनौती: यदि यह संघर्ष ऐसे ही जारी रहा, तो इन मंदिरों का पुनर्निर्माण एक बहुत बड़ी चुनौती होगी।

यह समय है कि विश्व इस पर ध्यान दे और इन प्राचीन बौद्ध मंदिरों को विनाश से बचाने के लिए कदम उठाए।

यह युद्ध अगर नहीं रुका तो न केवल थाईलैंड और कंबोडिया के बीच संबंध और खराब होंगे, बल्कि इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक पहचान हमेशा के लिए मिट सकती है। बौद्ध मंदिर जो शांति और ज्ञान के प्रतीक हैं, अब युद्ध के मैदान बन गए हैं। यह एक भयावह संकेत है कि कैसे राजनीतिक विवाद धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को लील सकते हैं।

हमें उम्मीद करनी चाहिए कि दोनों देश जल्द ही बातचीत की मेज पर आएंगे और इस विनाशकारी संघर्ष को समाप्त करेंगे, ताकि बौद्ध मंदिरों की पवित्रता और शांति बहाल हो सके।

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