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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। चीन ने दिसंबर 2024 में तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने का ऐलान किया था। मात्र छह महीनों के भीतर चीन ने इस बांध के निर्माण की शुरुआत कर दी है। यह प्रोजेक्ट चीन के थ्री गॉर्जेस डैम से कई गुना बड़ा बताया जा रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने इस प्रोजेक्ट को लेकर गंभीर आशंकाएं जताई हैं। भारत और बांग्लादेश में भी जल सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। भारत सरकार कूटनीतिक और तकनीकी स्तर पर इस चुनौती का मुकाबला करने की तैयारी में है।
क्यों बना रहा है चीन यह बांध?
चीन का दावा है कि 2060 तक वह कार्बन न्यूट्रल बनने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए इस हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को बना रहा है। यह बांध 2030 तक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। इससे उत्पन्न ऊर्जा थ्री गॉर्जेस डैम की तुलना में तीन गुना अधिक होगी।विशेषज्ञों का मानना है कि ऊर्जा जरूरतों का हवाला देना मात्र एक बहाना है। इस बांध के जरिए चीन भू-राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश कर रहा है।
पर्यावरण और भूकंप का खतरा
यह बांध मेदोग क्षेत्र में बन रहा है, जो भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय फॉल्ट लाइन के करीब है। किसी भी आपदा की स्थिति में यह बांध आसपास की बड़ी आबादी के लिए खतरा बन सकता है।यारलुंग सांगपो नदी का 50 किमी का क्षेत्र, जहां बांध बन रहा है, चीन का सबसे अधिक जैव विविधता वाला इलाका है। पर्यावरणविदों का कहना है कि नदी के बहाव में बदलाव से गंभीर पारिस्थितिकी नुकसान होगा।
भारत और बांग्लादेश की चिंताएं
भारत और बांग्लादेश ने इस प्रोजेक्ट को लेकर आधिकारिक रूप से चिंता जताई है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इसे "वॉटर बम" बताया था, जो किसी भी समय पूर्वोत्तर राज्यों के लिए आपदा बन सकता है।बांग्लादेश भी आशंका जता चुका है कि इससे उसके कृषि क्षेत्रों और जल संसाधनों पर असर पड़ेगा।
भारत की रणनीति: सियांग मल्टीपर्पस प्रोजेक्ट
चीन के बांध के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत भी अरुणाचल प्रदेश में 1.1 लाख करोड़ रुपये की लागत से सियांग मल्टीपर्पस प्रोजेक्ट बनाने की तैयारी कर रहा है। यह प्रोजेक्ट 9 अरब घन मीटर पानी स्टोर करने और 11,000 मेगावॉट बिजली पैदा करने में सक्षम होगा।हालांकि, इस प्रोजेक्ट की प्रगति स्थानीय विरोध और पर्यावरणीय अनुमति की वजह से धीमी है।
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