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Donald Trump ने व्यापार वार्ता के बीच चाबहार पोर्ट पर पाबंदी लगाई! भारतीय परियोजनाओं पर संकट | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।अमेरिका ने ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारत को मिली छूट वापस ले ली है। इस फैसले से भारत की अरबों रुपये की निवेश योजना पर खतरा मंडरा रहा है। यह कदम पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाने की भारत की रणनीतिक योजना को भी खतरे में डाल रहा है।
लाइव मिंट के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से भारत और अमेरिका के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। पहले व्यापारिक समझौतों पर 50% का टैरिफ और अब चाबहार बंदरगाह पर प्रतिबंधों में दी गई छूट को वापस लेने का फैसला।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि 29 सितंबर से यह छूट खत्म हो जाएगी, जिससे चाबहार में काम कर रही भारतीय कंपनियों को अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता फिर से शुरू हुई है।
आखिर क्यों लिया गया यह फैसला?
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि यह कदम राष्ट्रपति ट्रंप की "मैक्सिमम प्रेशर" पॉलिसी का हिस्सा है, जिसका मकसद ईरान को दुनिया से अलग-थलग करना है। अमेरिका का मानना है कि ईरान अपने "अवैध वित्तीय नेटवर्क" से अपनी सैन्य गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है, और चाबहार पोर्ट में काम करने वाली कंपनियां अनजाने में इस नेटवर्क का हिस्सा बन सकती हैं।
इस फैसले के बाद जो भी व्यक्ति या संस्था चाबहार पोर्ट पर काम करेगी वह अमेरिकी कानूनों के तहत प्रतिबंधों के दायरे में आ सकती है। इस कदम से भारत के लिए कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।
भारत के लिए क्या हैं चुनौतियां?
भारत ने 2003 से ही चाबहार पोर्ट को विकसित करने का सपना देखा था। यह एक रणनीतिक प्रोजेक्ट था, जिसका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट (जो चीन द्वारा संचालित है) का मुकाबला करना था। चाबहार पोर्ट भारत को अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक एक सीधा रास्ता देता है।
निवेश पर खतरा: भारत ने इस पोर्ट पर लगभग 120 मिलियन डॉलर का निवेश किया है और भविष्य में 250 मिलियन डॉलर का और निवेश करने का वादा किया है। अमेरिकी प्रतिबंधों से यह सारा निवेश खतरे में पड़ गया है।
रणनीतिक महत्व: चाबहार पोर्ट भारत के लिए "इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर" का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भारत को रूस और यूरोप से जोड़ता है। इस प्रोजेक्ट के रुकने से भारत की क्षेत्रीय पहुंच और कूटनीति पर भी असर पड़ेगा।
व्यापारिक मुश्किलें: चाबहार पोर्ट के जरिए भारत अफगानिस्तान को गेहूं, दवाइयां और अन्य जरूरी सामान भेजता रहा है। अब यह रास्ता बंद होने से मानवीय और व्यापारिक दोनों तरह की मदद पहुंचाना मुश्किल हो जाएगा।
यह निर्णय भारत के लिए एक बड़ा राजनयिक संतुलन साधने की चुनौती है। एक तरफ भारत अमेरिका के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को गहरा कर रहा है, तो दूसरी तरफ ईरान के साथ उसके पुराने आर्थिक और सामरिक संबंध हैं।
अमेरिकी विदेश नीति का बदलता रुख
साल 2018 में जब ट्रंप ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए थे तब उन्होंने चाबहार पोर्ट को एक "दुर्लभ अपवाद" के रूप में छूट दी थी। उस वक्त अमेरिका ने माना था कि यह पोर्ट अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए जरूरी है। हालांकि, अब अमेरिका का तर्क है कि वह तर्क अब लागू नहीं होता है।
जेएनयू में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन के विशेष केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित सिंह ने कहा, "जब 2018 में राष्ट्रपति ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान तेहरान पर प्रतिबंध फिर से लगाए गए थे, तो अमेरिका ने चाबहार के लिए एक दुर्लभ अपवाद बनाया था, और अफ़गानिस्तान के पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए इसके महत्व को स्वीकार किया था। अब वह तर्क लागू नहीं होता।"
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