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भूकंप — सुनामी से हाहाकार : समुद्र से डरावनी आवाज... वैज्ञानिक हैरान! क्या फिर फटेगा परमाणु त्रासदी का ज्वालामुखी?| यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।जापान और रूस के तटीय इलाकों में एक बार फिर सुनामी का खतरा मंडरा रहा है, जिसने 2011 की भयावह तबाही की यादें ताजा कर दी हैं। रूस के कामचटका प्रायद्वीप में आए 8.8 तीव्रता के भीषण भूकंप के बाद जापान के फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट को आनन-फानन में खाली करा लिया गया है। समुद्र में ऊंची लहरों की चेतावनी ने लाखों लोगों की धड़कनें बढ़ा दी हैं, और प्रशासन हाई अलर्ट पर है।
प्रशांत महासागर के कई तटीय देश इस समय सुनामी के खतरे से जूझ रहे हैं। रूस के कामचटका प्रायद्वीप में आए शक्तिशाली भूकंप ने पूरे क्षेत्र में दहशत फैला दी है। जापान की मौसम एजेंसी ने चेतावनी जारी की है कि सुनामी की लहरें बार-बार आ सकती हैं, जिससे समुद्री किनारों और निचले इलाकों में भारी नुकसान का अंदेशा है।
सबसे चिंताजनक खबर यह है कि जापान के कुख्यात फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट को खाली करवा लिया गया है। यह वही प्लांट है जहां 2011 में भूकंप और सुनामी ने मिलकर भयानक तबाही मचाई थी, जिसके दुष्परिणाम आज भी झेलने पड़ रहे हैं। इस नई घटना ने लोगों के मन में उस पुरानी आपदा की डरावनी यादें फिर से ताजा कर दी हैं, जिससे स्थानीय आबादी में भारी डर और चिंता का माहौल है।
लहरों का कोहराम: कहां कितना बड़ा खतरा?
US सुनामी चेतावनी केंद्र ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वे और भी भयावह हैं। उन्होंने बताया है कि रूस और हवाई के उत्तर-पश्चिमी द्वीपों पर 3 मीटर से भी अधिक ऊंची सुनामी लहरें उठने की संभावना है। कल्पना कीजिए, 3 मीटर ऊंची लहरें कितना विनाश कर सकती हैं! वहीं, जापान, गुआम, हवाई, चिली और सोलोमन द्वीपों के तटों पर भी 1 से 3 मीटर ऊंची सुनामी लहरें आने का अनुमान है।
यह खतरा यहीं नहीं रुकता। फिलीपींस, पलाऊ, मार्शल आइलैंड्स और इंडोनेशिया सहित 50 से अधिक क्षेत्रों में 0.3 से 1 मीटर तक की लहरें पहुंचने की आशंका जताई गई है। इन देशों के प्रशासन भी अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं और लोगों से सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील कर रहे हैं। इस सुनामी की चेतावनी ने एक बार फिर से वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसी स्थिति पैदा कर दी है।
यादें 2011 की: क्या प्रकृति फिर इम्तिहान लेगी?
2011 में जापान में आए टोहोकू भूकंप और सुनामी ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। उस आपदा में 15,000 से अधिक लोगों की जान चली गई थी और लाखों लोग बेघर हो गए थे। फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट में भी बड़ा हादसा हुआ था, जिससे परमाणु विकिरण का खतरा पैदा हो गया था। मौजूदा हालात में यह सुनामी चेतावनी 2011 की उन भयावह स्मृतियों को ताजा कर रही है।
कामचटका क्षेत्र का इतिहास भी भूकंपों से भरा पड़ा है। 1952 में 9.0 तीव्रता का एक भीषण भूकंप यहीं आया था, और 1960 में चिली में आया 9.5 तीव्रता का अब तक का सबसे बड़ा भूकंप भी प्रशांत प्लेट की गतिविधियों का ही परिणाम था। ये सभी घटनाएं दर्शाती हैं कि प्रशांत महासागर का यह क्षेत्र भूकंप और सुनामी के लिए कितना संवेदनशील है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती के नीचे प्लेटों का टकराव ही ऐसी विनाशकारी घटनाओं का कारण बनता है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि इस बार नुकसान कम से कम हो और लोग सुरक्षित रहें।
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