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Explain: टेंपरेरी है मिडिल ईस्ट का सीज फायर, आइए समझते हैं कि कैसे

जिस परमाणु बम के खतरे के नाम पर हमला किया गया था, वो तो ईरान अब भी बना सकता है। अयातुल्ला खामेनेई अभी भी हैं। साफ है कि जो दिख रहा है वो टेंपरेरी है। यानि सीज फायर वक्त की जरूरत

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Shailendra Gautam
Israel- Iran war

Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कःईरान पर इजरायल के हमले और फिर मुस्लिम देश के पलटवार के बाद जब अमेरिका इस जंग में कूदा तो एक बार लगा कि अब खामेनेई का मरना तय है। ईरान में तख्ता पलट होगा और जो नई सरकार बनेगी वो पूरी तरह से डोनाल्ड ट्रम्प के कब्जे में रहेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बेशक अमेरिका ने ईरान के 3 परमाणु ठिकानों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। लेकिन इस बात को अमेरिका और इजरायल दोनों ही मान रहे हैं कि हमलों से पहले ईरान अपने यूरेनियम को वहां से निकाल चुका था। हाल फिलहाल सीज फायर हो चुकी है। यानि लड़ाई थम गई है। लेकिन बड़ा सवाल है कि इससे क्या हासिल हुआ। जिस परमाणु बम के खतरे के नाम पर हमला किया गया था, वो तो ईरान अब भी बना सकता है। अयातुल्ला खामेनेई अभी भी हैं। साफ है कि जो दिख रहा है वो टेंपरेरी है। यानि सीज फायर वक्त की जरूरत है। न तो ईरान अपनी हरकतों से बाज आने वाला है और न ही इजरायल चुप बैठने वाला है। दोनों के बीच संघर्ष होता है तो डोनाल्ड ट्रम्प के लिए उस लड़ाई में कूदना लाजिमी हो जाएगा। ran Israel Conflict Explained | Iran Israel conflict 2025 | Iran Israel Conflict not present in

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13 जून से शुरू हुई लड़ाई में किसे क्या हासिल हुआ

13 जून को जब इजरायल ने ईरान पर अब तक का सबसे भीषण हमला किया तो प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह दावा करके इसे सही ठहराया कि तेहरान परमाणु हथियार विकसित करने से कुछ ही महीने दूर है। यह तब हुआ जब अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के चीफ राफेल ग्रॉसी ने ऐसे दावों का खंडन किया। हालांकि, उनकी एजेंसी ने ईरान के 2021 में अपने यूरेनियम ईंधन भंडार के एक हिस्से को 60 प्रतिशत तक समृद्ध करने के फैसले पर चिंता व्यक्त की थी, जिससे वह परमाणु हथियार-ग्रेड शुद्धता के करीब पहुंच गया। 13 जून से इजराइल ने हवाई हमलों में 200 मिसाइलों की बौछार की, जिसने ईरान के सैन्य और परमाणु बुनियादी ढांचे को काफी हद तक नष्ट कर दिया। 950 से अधिक लोगों की जान चली गई। जवाबी कार्रवाई में, ईरान ने 500 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं और इजराइल के खिलाफ एक हजार से अधिक ड्रोन लॉन्च किए। कुछ मिसाइलें इसके प्रसिद्ध आयरन डोम को पार कर गईं। मिजोरम से थोड़े ही बड़े देश में मिसाइलों ने बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया। हालांकि इजराय इन्कार करता रहा पर इस हमले में 28 से अधिक लोगों की मौत हुई। 

ट्रम्प के बंकर बस्टर बमों से ईरान को नुकसान पर वो हार नहीं मानेगा

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शुरुआत में ट्रम्प ईरान के खिलाफ इजरायल का साथ देने के बारे में अगर मगर कर रहे थे क्योंकि उनके कई शीर्ष MAGA (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) समर्थक विदेशी युद्धों में किसी भी अमेरिकी भागीदारी के खिलाफ थे। लेकिन 22 जून को ईरान की परमाणु क्षमता को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए उन्होंने ऑपरेशन मिडनाइट हैमर को लान्च कर दिया। अमेरिकी वायुसेना के सात बी2 स्टील्थ बॉम्बर्स ने अमेरिकी ठिकानों से उड़ान भरी। ईरान तक की 37 घंटे की यात्रा के दौरान हवा में ही ईंधन भरा। ईरान की तीन प्रमुख परमाणु सुविधाओं पर सटीक हमले किए। बंकर बस्टर बमों को ईरान की गहराई में दबी फोर्डो और नतांज फैसिलिटी में गिराया गया। ट्रम्प ने दावा किया कि उन्होंने ईरान के परमाणु ठिकानों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। लेकिन ईरान ने कहा कि उसने अमेरिकी और इजरायली सैन्य दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब दिया है। हमलों के बावजूद उसकी परमाणु क्षमता में कोई कमी नहीं आई है। एक्स पर एक पोस्ट में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने लिखा कि जो लोग ईरानी इतिहास को जानते हैं, वे जानते हैं कि ये राष्ट्र ऐसा राष्ट्र नहीं है जो सरेंडर कर दे।

ईरान के पास अभी तक है 400 किलो यूरेनियम, बना सकता है

खास बात है कि अमेरिका और इजरायल खुद भी मान रहे हैं कि अमेरिकी हमलों से पहले ही ईरान ने 400 किलो यूरेनियम परमाणु ठिकानों से हटा लिया था। एक्सपर्ट मानते हैं कि इसका मतलब है कि बंकर बमों ने शायद वह भारी विनाश नहीं किया होगा जिसकी ट्रम्प ने उम्मीद की थी। फिलहाल लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने युद्धविराम के लिए जोर दिया ताकि वह ईरान पर हमला करने के लिए अन्य रणनीतियों पर काम कर सकें। यह युद्धविराम केवल अस्थायी होगा। ऐसा लगता है कि ईरान, इजराइल और अमेरिका इस पर सहमत हुए क्योंकि उन्हें युद्ध के परिणामों, अपनी ताकत और कमजोरियों का आकलन करने, अपने सैन्य बलों और संसाधनों को फिर से संगठित करने और फिर संभवतः एक-दूसरे पर हमले के लिए समय चाहिए था। 

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स्थाई समाधान नहीं है सीजफायर, ये केवल एक पैचवर्क

एक्सपर्ट कहते हैं कि ईरान ने हमले से पहले अपने यूरेनियम के भंडार को हटा दिया था। तेहरान के पास कच्चे परमाणु उपकरणों को इकट्ठा करने की क्षमता है जो काफी शक्तिशाली हो सकते हैं। यह एक स्थायी समाधान नहीं है, बस एक पैचवर्क है। अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि जब ईरान की परमाणु क्षमताओं की बात आती है, तो हमें मुख्य रूप से उसके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर क्षमताओं को देखना चाहिए। अमेरिका और इजरायल के हमलों से सेंट्रीफ्यूज हॉल जैसे हार्डवेयर प्रतिष्ठानों को कुछ हद तक नुकसान पहुंचा होगा। लेकिन ईरान ने 40 से अधिक वर्षों से भारी मात्रा में निवेश और संसाधनों के साथ अपनी परमाणु क्षमता विकसित की है, इसलिए इन हमलों या कुछ परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या से उसकी क्षमता कम नहीं होगी, जैसा कि इजरायल और अमेरिका ने उम्मीद की थी। जानकार कहते हैं कि असली खतरा यह है कि ईरान पर हमला करके अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी खो सकता है क्योंकि तेहरान अब IAEA की निगरानी से इनकार कर देगा। 

ऐलान करके भी खामेनेई को नहीं मार सके, सीजफायर नहीं 

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बराक ओबामा के दूसरे कार्यकाल के दौरान अमेरिका ने रूस, चीन, फ्रांस और यूके- और जर्मनी के साथ मिलकर जुलाई 2015 में ईरान के साथ संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) नाम का एक समझौता किया। इसके तहत ईरान ने अरबों डॉलर की प्रतिबंध राहत के बदले में अपने परमाणु कार्यक्रम के अधिकांश हिस्से को खत्म करने और अपनी सुविधाओं को अधिक व्यापक अंतरराष्ट्रीय निरीक्षणों के लिए खोलने पर सहमति व्यक्त की। ओबामा मानते थे कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को इस हद तक कम किया जाए कि अगर तेहरान ने परमाणु हथियार विकसित करने का फैसला किया तो इसमें कम से कम एक साल लगे, जिससे वो समय रहते सख्त कदम उठा सकें। समझौते के तहत ईरान ने प्लूटोनियम का उत्पादन नहीं करने पर सहमति व्यक्त की थी। इसका उपयोग परमाणु हथियारों के लिए किया जा सकता है। ईरान ने IAEA को बेरोकटोक पहुंच की अनुमति दी।

हालांकि ट्रम्प इस समझौते के सख्त खिलाफ थे, क्योंकि उनका मानना​था कि प्रतिबंधों को हटाने से ईरान की अर्थव्यवस्था में उछाल आया है। लेकिन परमाणु हथियार बनाने के अपने गुप्त इरादे से पीछे नहीं हटे हैं। 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प ने मई 2018 में समझौते से खुद को अलग कर लिया और ईरान के साथ व्यापार करने वाली संस्थाओं पर भारी प्रतिबंध लगा दिए। जाहिर है कि अमेरिका को पता था कि ईरान को काबू करना उतना आसान नहीं है। अब जबकि अमेरिका और इजरायल ने अपनी सारी ताकत झोंक दी और खामेनेई को मारने की कसम खाके भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके तो ये घटनाक्रम ईरान को बूस्टअप करेगा। खामेनेई तिलमिलाए बैठे हैं और वो सही समय का इंतजार कर रहे हैं। यानि कहा जा सकता है कि ट्रम्प का सीज फायर ज्यादा कुछ हासिल नहीं करने वाला है।  Iran Israel Conflict ExplainedIsrael-Iran war, Uneasy truce, Donald Trump, bunker-busting strategy, nuclear tensions in the Middle East, Operation Midnight Hammer, Ayatollah Ali Khamenei 

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