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Explain: खामेनेई के सिस्टम से घृणा के बावजूद ईरान के लोग क्यों खड़े हैं उनके साथ

खामेनेई की लोकप्रियता युद्ध से पहले और बाद में हैरतअंगेज अंदाज में बढ़ती देखी गई। जब वो लापता था तो ईरानी जनता शिद्दत से अपने नेता की सलामती की दुआ कर रही थी।

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Shailendra Gautam
Supreme Leader of Iran Ayatollah Khamenei

Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः2022 की एक घटना है। महसा अमिनी नाम की एक युवती की ईरानी शासन के हाथों मौत हो गई थी। उसका कसूर केवल इतना था कि उसने हिजाब पहनने से इन्कार कर दिया था। ये घटना वैश्विक स्तर पर सुर्खियों में रही। ईरान की सड़कों पर लोगों ने प्रदर्शन किए। उस समय साफ झलक रहा था कि ईरान के लोग खामेनेई के उस सिस्टम से घृणा करते हैं जिसे मौलवियों के जरिये चलाया जा रहा है। उस दौरान लगा था कि ईरान के लोग कट्टरपंथी हुकुमरानों से निजात पाना चाहते हैं। इजरायल ने जब ईरान पर हमला किया और बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान में सत्ता परिवर्तन करने की कसम खाई तो उनके दिमाग में शायद महसा अमिनी रही होगी। लेकिन अभी जो हालात हैं उनको देखकर लगता है कि नेतन्याहू गच्चा खा गए। जो वो समझ रहे थे ईरान की जनता वैसे उनके झांसे में नहीं आने वाली। खास बात है कि खामेनेई की लोकप्रियता युद्ध से पहले और बाद में हैरतअंगेज अंदाज में बढ़ती देखी गई। जब वो लापता था तो ईरानी जनता शिद्दत से अपने नेता की सलामती की दुआ कर रही थी। कुल मिलाकर इजरायल जो समझ रहा था ईरान के लोगों ने वैसा रुख बिलकुल भी नहीं दिखाया। 

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सीज फायर के बाद जश्न मना रहे थे ईरान के लोग 

सीजफायर के बाद तेहरान की जो तस्वीर सामने आई उसमें लोग उल्लास और उत्सव मनाते दिखे थे। अगर कोई इस बात पर शोक मना रहा है कि शासन परिवर्तन नहीं हुआ है तो कम से कम ईरान के अंदर तो ऐसे लोग नहीं दिखे। खामेनेई के मौलवी शासन से नाखुश लोग ईरान के बाहर ही रहते हैं। इनमें से सबसे मशहूर हैं प्रिंस रेजा पहलवी द्वितीय, जो ईरान के आखिरी शाह के वंशज हैं। उनकी दिली ख्वाहिश है कि खामेनेई की जगह उनको सत्ता मिल जाए। 
प्रिंस रेजा पहलवी द्वितीय को उम्मीद की एक किरण तब नजर आई थी जब पिछले साल ईरान में हुए राष्ट्रपति चुनावों में यह बात दिखी कि ईरानियों की बढ़ी संख्या बदलाव चाहती है। राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की दुखद मौत के बावजूद चुनाव में जाने वाले ईरानियों ने एक ऐसे व्यक्ति को चुना जिसने उन्हें बदलाव और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का वादा किया था, मसूद पेजेशकियन। हिजाब को लेकर हुए दंगों और विरोध प्रदर्शनों और महसा अमिनी की मौत के कुछ समय बाद ही उन्हें चुना जाना इस बात की गवाही देता है कि कई ईरानी बदलाव चाहते थे। 

ईरान के आसपास के देशों में सत्ता परिवर्तन की तस्वीर सुखद नहीं

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ईरान के लोग जिस चीज को देख पा रहे हैं वो है उनके आसपास के देसों में हुआ सत्ता परिवर्तन। बीस सालों तक अमेरिका ने अफगानिस्तान के अंदर तालिबान के खिलाफ युद्ध छेड़ा। लेकिन आखिर में सत्ता तो तालिबान के पास ही गई। राजा को वापस लाने की योजनाएं और बातचीत विफल हो गईं। इराक में शासन परिवर्तन भी एक कारण है। इस झूठे आधार पर कि इराक के पास विनाशकारी हथियार हैं, अमेरिका ने तनाव पैदा करके इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड सीरिया (ISIS) का निर्माण किया। विडंबना यह है कि इसने इराक में ईरान के प्रभाव को भी बढ़ा दिया। इराक को अभी भी स्थिरता और सुरक्षा मिलनी बाकी है। सीरिया में सबसे हालिया शासन परिवर्तन ने एक पूर्व ISIS सदस्य को सत्ता में ला दिया है। हालांकि यह सच है कि बशर अल असद बेहद अलोकप्रिय हैं। वहां के लोग उन्हें पसंद नहीं करते। पिछले छह महीने से अहमद अल शारा की अंतरिम सरकार अरब देशों, तुर्की, यूरोपीय संघ और अमेरिका से भरपूर समर्थन के बावजूद सही से सरकार चला पाने में नाकाम हो रही है। इसी तरह लीबिया में शासन परिवर्तन ने फिर से अराजकता फैलाई और ISIS को बढ़ावा दिया, जिसने उत्तरी अफ्रीका में अपना रास्ता बनाया और देश को गृहयुद्ध में झोंक दिया जो अभी भी जल रहा है। 

खामेनेई से ज्यादा घृणा इजरायल और अमेरिका से 

इन देशों की तुलना में ईरान अलग है। ईरान के पास एक बड़ा क्षेत्र है। जहां सत्ता परिवर्तन हुआ उनकी तुलना में उसकी आबादी कहीं ज्यादा है। ईरान के लोग शिक्षित है और उसका अपना एक विश्वदृष्टिकोण है। इसके अलावा ईरान का सत्तारूढ़ शासन सद्दाम हुसैन या अल-असद की तरह अल्पसंख्यक नहीं है। खामेनेई की तुलना मुअम्मर गद्दाफी जैसे किसी व्यक्ति से नहीं की जा सकती, भले ही उसमें कितनी भी कमियां हों। ईरान में सत्ता परिवर्तन के किसी भी प्रयास से अराजकता और व्यवधान पैदा होगा। ईरानी पश्चिम पर भरोसा नहीं करते। ऐसा इसलिए है क्योंकि वो पिछले शाह के मनमाने शासन को सहारा देने के लिए पश्चिम को दोषी मानते हैं। Iran Israel Conflict Explained | Iran Israel Conflict not present in content

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इजरायल और अमेरिकी हमले ने ईरानियों को एकजुट किया

हालांकि इजरायल के साथ हुए युद्ध ने ईरान के मौलवी शासन की कमजोरियों को उजागर किया है। लेकिन फिलहाल देश के अंदर या बाहर इसे बदलने के लिए कोई उचित विकल्प नहीं है। इजरायल ने जिस तरह से ईरान पर हमला करके उसके वैज्ञानिकों के साथ सेना प्रमुख को मार गिराया वो चीज वहां के लोगों को ठीक नहीं लगी। उनका सवाल है कि ये कैसी दादागिरी है। आप किसी दूसरे मुल्क में जाकर वहां के लोगों को मार रहे हैं। ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हुए अमेरिकी हमले ने आग में घी डालने का काम किया। जो ईरानी खामेनेई शासन के खिलाफ मुखर होने लगे थे वो अब उनके साथ खड़े हैं। इजरायल मान रहा था कि वो हमला करेगा और ईरान की जनता उसके साथ आ खड़ी होगी पर हुआ इसका बिलकुल उलट। ईरानी जनता को खामेनेई के इर्दगिर्द देखकर ही अमेरिकी सीज फायर के प्लान की तरफ बढ़ा था। उसे पता था कि ईरान से लड़ाई लंबी चलने वाली है क्योंकि खामेनेई को लोगों का समर्थन है। 

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