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Explain: जापान के एटमी हमलों से क्यों मिलता जुलता है ईरान पर हुआ एक्शन

अमेरिकी हमलों ने ईरान को उस कदर नुकसान नहीं पहुंचाया जिसकी कल्पना ट्रम्प ने की थी। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिकी हमले ईरान के लिए उसी तरह से घातक साबित हुए जिस तरह से जापान के लिए हुए थे। यही वजह रही कि ईरान सीजफायर पर तुरंत मान गया।

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Shailendra Gautam
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Photograph: (X)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः इजरायल-ईरान के बीच की लड़ाई में जब अमेरिका कूदा तो सारी दुनिया को लगा कि तीसरे विश्वयुद्ध का आधारशिला रख दी गई है। लेकिन अमेरिकी एक्शन के बाद ही अचानक सीजफायर सामने आ गया। खास बात थी कि जो ईरान अपने पड़ोसी मुल्क से दबने को तैयार नहीं हो रहा था वो भी अचानक हथियार डालने पर मजबूर हो गया। लड़ाई थमी तो अमेरिकी प्रेजीडेंट डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान पर हुए हमले को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर 1945 में हुए एटमी हमलों से जोड़ दिया। आइए समझते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प के बयान की क्या सच्चाई है। क्या वाकई ईरान पर अटैक जापान पर हुए हमलों से मेल खाता है।

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पहले जापान के मामले पर नजर डालते हैं

इसके लिए दूसरे विश्वयुद्ध पर बारीकी से नजर डालनी होगी। दरअसल, 1939 में चीन और जापान के संघर्ष और पोलैंड पर जर्मनी के कब्जे के बाद इस महायुद्ध की नींव पड़ी। जापान ने जर्मनी के साथ मिलकर एक मजबूत मोर्चा बनाया। युद्ध की शुरुआत तब हुई जब इंपीरियल जापानी नौसेना ने दिसंबर 1941 की एक सुबह पर्ल हार्बर पर अचानक हमला किया। इसमें अमेरिकन नेवी के पैसिफिक फ्लीट और इसकी रक्षा करने वाली आर्मी एयर फोर्स और मरीन एयर फोर्स को काफी नुकसान हुआ। जापानी हमले का मुख्य उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशियाई साम्राज्य को कायम रखते हुए अमेरिका को लंबे समय तक अक्षम करना था। हालांकि, इस हमले ने अमेरिकी नौसेना को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाया। अमेरिकी जनता ने इस हमले को एक बर्बर और विश्वासघाती कृत्य के रूप में देखा और जापान के खिलाफ एकजुट हो गई। जापानी हमलों के कारण अमेरिका , यूनाइटेड किंगडम , चीन, आस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों ने औपचारिक रूप से जापान पर युद्ध की घोषणा की। सोवियत संघ, यूरोपीय धुरी देशों ने जापान के साथ अपने तटस्थता के समझौते को बनाए रखा। ये संघर्ष विश्व युद्ध में उस समय तब्दील हो गया जब जर्मनी, उसके बाद अन्य धुरी देशों ने जापान के साथ एकजुटता जताते हुए अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। ये युद्ध 1939 से लेकर 1945 तक चला। 

1945 आते-आते यूके और अमेरिका के हमलों से जर्मनी टूट गया था। एडाल्फ हिटलर तकरीबन पस्त हो चुका था लेकिन जापानी सेना किसी भी तरह से काबू नहीं आ रही थी। तमाम हमलों के बावजूद जापानी हथियार डालने पर सहमत नहीं हो रहे थे। इसी दौरान 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने सारी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। उसने हिरोशिमा पर लिटिल ब्वाय नामका बम गिराया। उसके तीन दिनों बाद यानि 9 अगस्त को नागासाकी पर फैट बेबी नामका बम गिराया गया। दोनों शहरों में हजारों लोग मारे गए। एटम बम का असर जापान के इन शहरों में आज भी देखा जा सकता है। अमेरिकी हमले के बाद जापान पूरी तरह से पस्त हो गया। वहां की राजशाही ने हथियार डालने का फैसला किया और उसके बाद दूसरा विश्व युद्ध पूरी तरह से समाप्त हो गया। सारे मामले को देखने के बाद कहा जा सकता है कि अगर अमेरिकी जापान पर एटमी हमला न करता तो जापान झुकने वाला नहीं था।

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ईरान पर अमेरिकी हमले का असर जापान जैसा ही है

इजरायल ने जब ईरान के परमाणु ठिकानों पर गोलाबारी शुरू की तो अयातुल्लाह खामेनेई की सेना ने उसका माकूल जवाब दिया। हालांकि इजरायली सेना का मुकाबला ईरान की सेना नहीं कर पा रही थी लेकिन उसने अपने तेवर बनाए रखे। खामेनेई किसी गुप्त ठिकाने पर चले गए। वो वहां से एक्स पर संदेश भेजकर बताते रहे कि सरेंडर का कोई सवाल ही नहीं है। युद्ध के शुरुआती दिनों में अमेरिका तटस्थ बना रहा। डोनाल्ड ट्रम्प यह कहते देखे गए कि वो दो सप्ताह के भीतर लड़ाई में कूदने के बारे में फैसला लेंगे। लेकिन इस बयान के दो दिनों बाद ही अमेरिका के लड़ाकू विमान ईरान के उस हिस्से के ऊपर मंडराते दिखे जहां पर परमाणु कार्यक्रम चलाया जा रहा था। अमेरिकी विमानों ने 30 हजार पाउंड के बम इन ठिकानों पर गिराए।

हालांकि ईरान ने अमेरिका को जवाब देने की बात कही। उसने कतर स्थित अमेरिकी मिलिट्री बेस पर मिसाइलें भी छोड़ीं लेकिन कतर को इसके बारे में पहले से सूचना दे दी। नाटो की मीटिंग के लिए जाते समय ट्रम्प ने ईरान के इस रूख की सराहना की। उसके कुछ अरसे बाद ही उन्होंने ऐलान कर दिया कि सीज फायर करा दिया है। कुछ देर की उहापोह के बाद ईरान और इजरायल दोनों ही इस पर सहमत हो गए। देखा जाए तो ईरान अभी भी कह रहा है कि वो झुकेगा नहीं। लेकिन परदे के पीछे की कहानी ये है कि इजरायल से दो-दो हाथ करने का मन बना चुका ईरान अमेरिकी हमलों से पूरी तरह से टूट गया था। उसमें वो ताकत नहीं बची थी जो वो अमेरिका और इजरायल की संयुक्त सेना से मुकाबिल हो सके। हालांकि पेंटागन की एक रिपोर्ट कहती है कि अमेरिकी हमलों ने ईरान को उस कदर नुकसान नहीं पहुंचाया जिसकी कल्पना ट्रम्प ने की थी। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिकी हमले ईरान के लिए उसी तरह से घातक साबित हुए जिस तरह से जापान के लिए हुए थे। यही वजह रही कि ईरान सीजफायर पर तुरंत मान गया। 

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