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Explained अमेरिका के लिए क्यों खतरनाक है ट्रम्प की सनक

दूसरी तिमाही में विकास दर घटकर 1.8% वार्षिक रह गई है, जो ट्रम्प के वादे 3-4% से काफी कम है। मुद्रास्फीति फिर से बढ़ रही है। कोर सीपीआई साल-दर-साल 3.6% बढ़ा है। रोजगार सृजन उम्मीद से कम रहा है।

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Shailendra Gautam
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद से डोनाल्ड ट्रम्प मेक अमेरिका ग्रेट अगेन की नारा लगातार दे रहे हैं। उनकी कोशिश अमेरिका को सबसे ऊपर रखने की है लेकिन जिस तरह से टैरिफ वार उन्होंने शुरू किया है उसने अमेरिका को ही नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। उनकी रणनीति चीन को वैश्विक बाजार से अलग थलग करने की थी। लेकिन टैरिफ वार का असर उल्टा हो रहा है। चीन ने अमेरिका को दुनिया के बाजार से हटाना शुरू कर दिया है। सोयाबीन की खरीद को लेकर वो अमेरिका पर ब्राजील को तरजीह देरहा है। ये एक कदम है जो अमेरिका को झटका दे गया। टैरिफ वार नहीं रुका तो ऐसे बहुत सारे कदमों का सामना अमेरिका को करना पड़ेगा।

ट्रम्प के आने के बाद से अमेरिका में हालात नहीं हैं सुखद

अमेरिकी राष्ट्रपति के आर्थिक स्वर्ण युग के तमाम वादों के बावजूद, कमजोर आर्थिक सूचकांकों की बाढ़ एक और भी चिंताजनक कहानी बयां करती है क्योंकि उनकी नीतियों के प्रभाव और भी स्पष्ट होते जा रहे हैं। रोजगारों की ताजा रिपोर्ट निराशाजनक रही। उपभोक्ता मूल्य फिर से बढ़ रहे हैं। पिछले साल की तुलना में विकास दर धीमी हो रही है। ये आंकड़े झूठ नहीं बोलते, और न ही ये समृद्धि की तस्वीर पेश कर रहे हैं।

अपने कार्यकाल के छह महीने में ट्रम्प ने अपने आर्थिक राष्ट्रवाद को प्रतिबिंबित करने के लिए अमेरिका के व्यापार, विनिर्माण और कर ढांचों को आक्रामक रूप से नया रूप दिया है। टैरिफ बढ़ोतरी, खर्च में बदलाव और कार्यकारी आदेशों के उनके ताबड़तोड़ दौर ने भले ही उनके समर्थकों को खुश किया हो, लेकिन अब इसके झटके अर्थव्यवस्था में तेजी से फैल रहे हैं। हालांकि ट्रम्प उपलब्धि का फायदा तुरंत लेने लग जाते हैं लेकिव जब आंकड़े निराशाजनक होते हैं तो वे दोष मढ़ने की कोशिश करते हैं। निराशाजनक रोजोगार रिपोर्ट के बाद उन्होंने बिना किसी सबूत के यह दावा करते हुए कि आंकड़ों में हेरफेर है। आंकड़ों के लिए जिम्मेदार एजेंसी के प्रमुख को बर्खास्त कर दिया। ट्रम्प ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया- अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। यह उन्हीं आंकड़ों का खंडन करता है जो उनकी अपनी सरकार ने जारी किए थे।

आंकड़ों से समझिए अमेरिकी वास्तविकता

अर्थशास्त्री शुरुआती चेतावनी के संकेत पहचानने लगे हैं। दूसरी तिमाही में विकास दर घटकर 1.8% वार्षिक रह गई है, जो ट्रम्प के वादे 3-4% से काफी कम है। मुद्रास्फीति फिर से बढ़ रही है। कोर सीपीआई साल-दर-साल 3.6% बढ़ा है। रोजगार सृजन लगातार दूसरे महीने उम्मीद से कम रहा है। वास्तविक मजदूरी स्थिर है।

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फिर भी ट्रम्प शेखी बघारने से नहीं चूक रहे हैं। वह देरी से मिलने वाले फायदों पर भरोसा कर रहे हैं। वो मान रहे हैं कि टैरिफ अमेरिकी रोजगारों की रक्षा करेंगे। ब्याज दरों में कटौती से आवास क्षेत्र में सुधार होगा। विनियमन में ढील अंततः कारपोरेट निवेश को बढ़ावा देगी। टैरिफ अराजकता अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाएगी। ट्रम्प का सबसे साहसिक दांव, लगभग सभी विदेशी वस्तुओं पर व्यापक टैरिफ, अब वास्तविकता से टकरा रहा है। ये टैरिफ 2026 की शुरुआत में और भी बढ़ेंगे।

व्हाइट हाउस ने तर्क दिया है कि यूरोपीय संघ और जापान से लेकर फिलीपींस तक, हाल ही में हुए व्यापार समझौतों की लहर इस झटके को कम करेगी। लेकिन औसत अमेरिकी उपभोक्ता के लिए टैरिफ एक कर की तरह काम करते हैं। आयातक शुल्कों की भरपाई के लिए कीमतें बढ़ाते हैं। इसका असर किराने के बिल, निर्माण सामग्री, उपकरणों और कारों पर पड़ता है। प्रशासन का कहना है कि ये कदम विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने और व्यापार घाटे को कम करने की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा हैं। लेकिन यह कहानी लड़खड़ा रही है। जून में विनिर्माण उत्पादन में 0.4% की गिरावट आई। जुलाई में अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़कर 71.2 अरब डॉलर हो गया। मिशिगन विश्वविद्यालय के सर्वेक्षण के अनुसार, उपभोक्ता भावना 18 महीनों के अपने सबसे निचले स्तर पर आ गई है।

अमेरिका में गिर रही ट्रम्प की साख

ट्रम्प के आर्थिक नेतृत्व को जनता की स्वीकृति कम हो रही है। जुलाई में हुए एपी-एनओआरसी सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 38% वयस्क ही अर्थव्यवस्था पर उनकी नीतियों का समर्थन करते हैं। उनके पहले के कार्यकाल के अंत में ये आंकड़ा 50% से ज्यादा रहा था।

वैश्विक बाजार टैरिफ वार से परेशान

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ट्रम्प का टैरिफ हमला न केवल अमेरिकी परिवारों पर दबाव डाल रहा है, बल्कि वैश्विक व्यापार को भी नुकसान पहुंचा रहा है। 1 अगस्त को, अमेरिका ने ट्रम्प की सख्त निर्यात व्यवस्था के उल्लंघन का हवाला देते हुए ईरानी पेट्रोकेमिकल्स खरीदने के आरोप में छह भारतीय कंपनियों पर औपचारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंधों से भारत के पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में हलचल मच गई और कई कंपनियों को अब अमेरिकी बाजारों में प्रवेश पर रोक का सामना करना पड़ रहा है।

इसका असर सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है। यूरोपीय वाहन निर्माता ऊंची लागत का सामना कर रहे हैं। दक्षिण-पूर्व एशियाई कपड़ा निर्यातकों के ऑर्डर बदले जा रहे हैं। पहले से ही व्यापार युद्ध की मार झेल रहे चीन ने भी जवाबी टैरिफ लगाने के संकेत दिए हैं। यह विचार कि ट्रंप की व्यापार रणनीति चीन को अलग-थलग कर देगी और अमेरिकी गठबंधनों को मजबूत करेगी, अब तक गलत साबित हुआ है। अब, ऐसा लग रहा है कि अमेरिका कई मोर्चों पर विवादों में उलझा हुआ है।

आर्थिक उथल-पुथल के बढ़ते सबूतों के बावजूद ट्रम्प के समर्थक टैरिफ का बचाव करते हुए तर्क दे रहे हैं कि इसका पूरा असर दिखने में समय लगेगा। कुछ रिपब्लिकन रणनीतिकारों का मानना ​​है कि बड़े लाभ के लिए छोटे समय का कष्ट एक जरूरी कीमत है।

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