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Explainer: PAK सेना पर तालिबान का 'विस्फोटक' आरोप, क्या है ISIS-NRF से गठबंधन? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर भीषण सैन्य संघर्ष के बाद तनाव चरम पर है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने पाकिस्तानी सेना पर सनसनीखेज आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि पाक सेना कुछ तत्वों के माध्यम से ISIS और NRF जैसे तालिबान विरोधी समूहों को मदद कर रही है, ताकि काबुल में तालिबान सरकार को अस्थिर किया जा सके। इस 'षड्यंत्र' ने द्विपक्षीय संबंधों में नया भूचाल ला दिया है।
इस Young Bharat News के एक्प्लेनर से समझते हैं कि क्या पाकिस्तानी सेना गिराना चाहती है अफगान में तालिबान की सरकार?
सीमा पर खून-खराबा और काबुल का 'महा-आरोप'
पिछले शनिवार रात, अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर हुई गोलीबारी में जो खून बहा, वह सिर्फ बॉर्डर संघर्ष नहीं था, बल्कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से सुलग रही दुश्मनी की नई चिंगारी थी। तालिबान सरकार का दावा है कि इस संघर्ष में पाकिस्तान सेना के 58 जवान मारे गए।
ठीक इसके बाद, काबुल से जो आवाज़ आई, उसने इस्लामाबाद के साथ-साथ पूरे क्षेत्रीय राजनीति को हिलाकर रख दिया। तालिबान के प्रमुख प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीधे-सीधे पाकिस्तानी सेना पर उंगली उठाई।
उनका आरोप सिर्फ सीमा उल्लंघन तक सीमित नहीं था, बल्कि सीधे-सीधे तालिबान सरकार को अस्थिर करने की 'साजिश' पर था। यह अपने आप में एक अभूतपूर्व घटना है, जब एक पड़ोसी देश का शासक दूसरे देश की सेना पर इतना बड़ा और सीधा आरोप लगा रहा है। सवाल यह है क्या पाकिस्तानी सेना सचमुच अफगानिस्तान की सत्ता गिराना चाहती है?
तालिबान का 'विस्फोटक' दावा ISIS को पाक में मिल रहा 'सुरक्षित ठिकाना'
मुजाहिद ने अपने दावों को पुख्ता करने के लिए सबसे पहले इस्लामिक स्टेट ISIS की ओर इशारा किया। तालिबान के आरोप के मुख्य बिंदु
ISIS के सुरक्षित ठिकाने: मुजाहिद का दावा है कि ISIS के नेता और आतंकी समूह पाकिस्तान की ज़मीन पर सुरक्षित पनाह लिए हुए हैं और इसकी जानकारी क्षेत्रीय देशों को भी है।
अस्थिरता का कारण: तालिबान के अनुसार, अफगानिस्तान में शियाओं, सूफियों और हिंदुओं पर होने वाले क्रूर हमलों के पीछे ISIS का हाथ है और इन हमलों का सीधा मकसद काबुल में तालिबान की सत्ता को कमजोर करना और देश को अराजकता में धकेलना है।
मांग: मुजाहिद ने पाकिस्तानी सरकार से मांग की है कि वह अपनी ज़मीन पर मौजूद ISIS नेताओं को अफगान तालिबान के हवाले करे। यह आरोप बेहद गंभीर है।
जब से तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता संभाली है, वह लगातार ISIS-खुरासान ISIS-K के हमलों का सामना कर रहा है। अगर पाकिस्तान, जिसका दावा है कि वह आतंकवाद से लड़ रहा है, सचमुच ISIS को 'सुरक्षित ठिकाना' दे रहा है तो यह क्षेत्रीय शांति और इस्लामाबाद की वैश्विक छवि के लिए घातक होगा।
यह 'जैसे को तैसा' वाला आरोप है, क्योंकि पाकिस्तान भी तालिबान पर अपनी ज़मीन पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान TTP जैसे इस्लामाबाद-विरोधी गुटों को पनाह देने का आरोप लगाता रहा है।
तालिबान के आरोपों की दूसरी कड़ी और भी राजनीतिक है। मुजाहिद ने दावा किया कि पाकिस्तान सेना के कुछ तत्व नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट NRF को भी सहयोग दे रहे हैं। NRF एक तालिबान विरोधी समूह है जिसकी स्थापना पूर्व अफगान उपराष्ट्रपति अहमद मसूद ने की थी। यह समूह पंजशीर घाटी और उत्तरी अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में तालिबान के खिलाफ छिटपुट लेकिन संगठित विरोध करता रहा है।
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NRF का स्पष्ट लक्ष्य तालिबान को सत्ता से हटाना है। तालिबान के खुलासे की टाइमलाइन
घटना | विवरण | महत्व |
शनिवार रात | पाक-अफगान सीमा पर भीषण सैन्य संघर्ष और गोलीबारी। | दोनों तरफ से हताहतों की भारी संख्या, अपने अपने दावे। |
काफी दिनों से | तनाव का चरम। | इस्लामाबाद में NRF नेताओं की पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों से बैठकें। |
रविवार | तालिबान के आरोपों को बल। | मुजाहिद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाक सेना पर ISIS और NRF को मदद का 'खुलासा'। |
द्विपक्षीय संबंधों में नया संकट। | इस्लामाबाद में NRF नेताओं की बैठकें | तालिबान के लिए एक लाल झंडा रही हैं। |
अगर पाकिस्तानी सेना खुलेआम या परोक्ष रूप से तालिबान के राजनीतिक विरोधियों को संरक्षण देती है तो इसका सीधा मतलब है कि इस्लामाबाद काबुल में एक वैकल्पिक सत्ता की तलाश कर रहा है। यह अफगानिस्तान के मामलों में सीधा हस्तक्षेप माना जाएगा, जो तालिबान को भड़काने के लिए काफी है।
पाकिस्तान की 'जाल' वाली नीति स्थिरता या अस्थिरता?
मुजाहिद ने पाकिस्तानी सरकार और सेना को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने को कहा है। उनका सीधा संदेश है "अगर इस्लामाबाद का हस्तक्षेप जारी रहा तो द्विपक्षीय संबंधों को भारी नुकसान होगा।" लेकिन
पाकिस्तान क्यों चाहेगा कि तालिबान की सरकार गिरे? TTP का खतरा
पाकिस्तान का मानना है कि तालिबान सरकार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान TTP को अपनी ज़मीन से ऑपरेट करने दे रही है।
TTP: पाकिस्तान में लगातार आतंकी हमले कर रहा है। इस्लामाबाद शायद मानता है कि तालिबान सरकार को कमज़ोर करने से TTP पर दबाव बनेगा।
रणनीतिक डेप्थ: ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान अफगानिस्तान में 'रणनीतिक गहराई' चाहता रहा है— एक ऐसी सरकार जो भारत-विरोधी हो और इस्लामाबाद के हितों की पूर्ति करे।
तालिबान: जो पहले पाकिस्तान का सहयोगी था, अब अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे रहा है, जिससे पाकिस्तान नाखुश है।
अंतर्राष्ट्रीय दबाव: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ISIS और NRF को मदद देकर पाकिस्तान वैश्विक समुदाय को यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि अफगानिस्तान की अस्थिरता का मुख्य कारण तालिबान है, न कि उसकी नीतियां।
हालांकि, यह नीति एक दोधारी तलवार जैसी है। तालिबान और पाकिस्तान के बीच तनाव का बढ़ना पूरे क्षेत्र को अस्थिरता के एक नए दौर में धकेल सकता है, जिसका सबसे अधिक खामियाजा खुद पाकिस्तान को ही भुगतना पड़ सकता है।
मुजाहिद का आरोप पाकिस्तान के अंदर के 'खास तबकों' पर है, जो अफगानिस्तान की स्थिरता नहीं देख पा रहे हैं। यह 'साजिश' वाली थ्योरी, भले ही पूरी तरह सच न हो, लेकिन इसने दोनों पड़ोसियों के बीच अविश्वास की खाई को और गहरा कर दिया है।
संघर्ष, बयानबाजी या समझौता?
काबुल का यह 'विस्फोटक खुलासा' बताता है कि दोनों देशों के रिश्ते रसातल में जा चुके हैं। एक तरफ सीमा पर गोलीबारी हो रही है और दूसरी तरफ खुलेआम 'गठबंधन' और 'साजिश' के आरोप लग रहे हैं।
संभावित परिणाम: सैन्य तनाव में वृद्धि सीमा पर सैन्य झड़पें बढ़ सकती हैं, जिससे दोनों ओर बड़ा नुकसान होगा।
राजनयिक गतिरोध: दोनों देशों के बीच राजनयिक संवाद लगभग ठप्प पड़ सकता है, जिससे क्षेत्रीय व्यापार और सुरक्षा प्रभावित होगी।
क्षेत्रीय हस्तक्षेप: तनाव को कम करने के लिए चीन, ईरान या रूस जैसे क्षेत्रीय शक्तियों का हस्तक्षेप बढ़ सकता है।
फिलहाल, गेंद इस्लामाबाद के पाले में है। उसे तालिबान के आरोपों का जवाब देना होगा और अपनी अफगानिस्तान नीति को स्पष्ट करना होगा। अगर पाकिस्तान, जैसा कि तालिबान आरोप लगा रहा है, सचमुच तालिबान-विरोधी समूहों को मदद देना जारी रखता है तो अफगानिस्तान में एक और गृहयुद्ध की आशंका बढ़ जाएगी।
यह सिर्फ दो पड़ोसियों का झगड़ा नहीं है बल्कि, यह दक्षिण एशिया की सुरक्षा और स्थिरता का सवाल है। पाठक को यह समझने की ज़रूरत है कि यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि एक नए खतरनाक मोड़ पर आ गई है।
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