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शरिया कानून वाले वो 5 मुस्लिम देश, जहां शराब ‘हराम’ होकर भी छलकाती है जाम

इस्लाम में शराब 'हराम' है, पर UAE, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देश टूरिस्टों व गैर-मुस्लिमों को परमिट पर सीमित छूट दे रहे हैं। क्या 'शराब डिप्लोमेसी' को इस्लामिक कानून शरिया को सुविधानुसार संतुलन करना सही है?

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Ajit Kumar Pandey
SHARAB HARAM LEKIN KHAPAT BEHISAB

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।इस्लाम धर्म में शराब का सेवन 'हराम' माना गया है, जिसे कुरान शरीफ के कड़े हुक्म से बांधा भी गया है। पर दुनिया के कई मुस्लिम देश इस नियम को 'गैर-मुस्लिमों' और टूरिस्टों के नाम पर आसान बना लिए हैं। यमन, सूडान जैसे देशों में जहां पूर्ण प्रतिबंध है, वहीं UAE, पाकिस्तान, और बांग्लादेश जैसे 5 देशों ने लाइसेंस और परमिट की एक लाइन खींच दी है।

Young Bharat News का यह Explainer इस्लाम के धार्मिक हुक्म और वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन साधने वाले इस 'शराब डिप्लोमेसी' का खुलासा करेगा। आखिर हलाल Vs हराम जब धर्म और डॉलर की बहस में फंस जाती है। और जब शराब हराम है तो उससे कमाई गई रकम कैसे हलाल हो सकती है? 

इस्लाम में शराब पर प्रतिबंध एक आकस्मिक फैसला नहीं है, बल्कि यह पवित्र कुरान की आयतों पर आधारित एक बुनियादी सिद्धांत और शरिया कानून के दायरे में है। पैगंबर मुहम्मद सल्ल॰ ने भी इसके सेवन को स्पष्ट रूप से वर्जित किया है, क्योंकि यह न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि यह व्यक्ति को अपनी सूझबूझ खोने और जघन्य अपराधों की ओर धकेलने का कारण बन सकती है। 

यह 'खामर' यानी नशा, धार्मिक और सामाजिक रूप से एक बड़ी बुराई माना गया है। मगर आज दुनिया, खासकर मध्य-पूर्व और एशिया के मुस्लिम देश एक दोराहे पर खड़े हैं। एक तरफ उनका धार्मिक और सांस्कृतिक आधार है, जो शराब को पूरी तरह नकारता है, वहीं दूसरी तरफ वैश्वीकरण, पर्यटन और आर्थिक हित हैं, जो विदेशी पर्यटकों और गैर-मुस्लिम निवासियों को सुविधा देने की मांग करते हैं। अब सवाल यह है क्या धार्मिक कानून को पैसा कमाने या विकास के नाम पर बदला जा सकता है? 

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'शराब डिप्लोमेसी' परमिट की आड़ में खुल रहे हैं शराब के दरवाजे 

कई मुस्लिम देशों ने इस जटिल समस्या का समाधान एक 'परमिट प्रणाली' या 'लाइसेंसिंग मॉडल' के रूप में निकाला है। उन्होंने शराब को पूरी तरह कानूनी नहीं बनाया, बल्कि इसे एक नियंत्रित और सीमित दायरे में ले आए हैं। यह मॉडल इस सिद्धांत पर काम करता है कि इस्लामी कानून केवल मुस्लिम नागरिकों पर सख्ती से लागू होगा, जबकि गैर-मुस्लिमों और पर्यटकों को सीमित छूट दी जा सकती है ताकि पर्यटन और विदेशी निवेश प्रभावित न हो। लेकिन, क्या अन्य अपराधों में गैर मुस्लिमों पर शरिया कानून नहीं लागू होगा, जवाब नहीं। मतलब साफ है कि अपने सुविधा और हित साधने के लिए इस्लामी कानून का अब उपयोग मुस्लिम देश ही कर रहे हैं। 

खैर, यही वह जगह है जहां इस्लामी कठोरता और व्यवहारिक राजनीति के बीच का अंतर दिखाई देता है। UAE से पाकिस्तान तक ये हैं वो 5 मुस्लिम देश, जहां इस्लाम में 'हराम' पर बाजार में 'खुला' है। दुनिया में पांच प्रमुख मुस्लिम राष्ट्र हैं जिन्होंने धार्मिक प्रतिबंधों के बावजूद गैर-मुस्लिमों और पर्यटकों के नाम पर शराब की खपत को एक 'रेगुलेटेड' रूप दिया है। इन देशों की नीतियां हमें दिखाती हैं कि कैसे एक देश अपनी पहचान और आधुनिकता के बीच संतुलन साधता है। 

संयुक्त अरब अमीरात UAE पर्यटन की मजबूरी 

दुबई और अबू धाबी जैसे शहर ग्लोबल हब हैं, जहां लाखों विदेशी रहते हैं और करोड़ों पर्यटक आते हैं। UAE सरकार ने यहां एक स्पष्ट विभाजन किया है। 

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मुस्लिम नागरिक: इनके लिए शराब आज भी 'हराम' और प्रतिबंधित है। 

गैर-मुस्लिम/पर्यटक: इन्हें लाइसेंस या परमिट लेना अनिवार्य है। यह परमिट उन्हें होटल के बार, लाइसेंस प्राप्त रेस्तरां और निजी स्थानों पर नियंत्रित मात्रा में शराब पीने की अनुमति देता है। 

याद रखें UAE में सार्वजनिक स्थान पर या सड़कों पर नशे की हालत में दिखना आज भी एक गंभीर अपराध माना जाता है, जिसके लिए जेल और भारी जुर्माना हो सकता है। 

पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के लिए 'कोटा' 

एक कड़े इस्लामी राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध है। लेकिन, 1977 में लागू हुए प्रोहिबिशन एक्ट निषेध अधिनियम में एक छेद छोड़ा गया है। 

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गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक: पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों को एक मासिक परमिट जारी किया जाता है। 

मात्रा का नियम: यह परमिट अल्पसंख्यकों को सीमित मात्रा में शराब जैसे लगभग 5 बोतल हार्ड शराब या 100 बोतल बीयर प्रति माह रखने की अनुमति देता है। यह कोटा उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर भी तय होता है। 

बांग्लादेश: मुनाफा और अल्पसंख्यक बांग्लादेश में नियम 

करीब करीब पाकिस्तान जैसे ही सख्त हैं, लेकिन यहां की अर्थव्यवस्था इस 'अपवाद' को और भी दिलचस्प बनाती है। 

सख्त नियम: मुसलमानों के लिए शराब पूरी तरह प्रतिबंधित है। अल्पसंख्यक और विदेशी 21 वर्ष से अधिक आयु के गैर-मुस्लिम नागरिक परमिट लेकर शराब खरीद सकते हैं। 

बांग्लादेश की एकमात्र शराब बनाने वाली कंपनी, केरू एंड कंपनी, ने हाल ही में रिकॉर्ड तोड़ 84 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। यह मुनाफा मुख्य रूप से देश में काम करने वाले विदेशी नागरिक और चाय बागानों में काम करने वाले हिंदू समुदाय के श्रमिकों की खपत के कारण बढ़ा है। 

यह साफ दर्शाता है कि सख्त नियम भी बाजार की मांग को पूरी तरह रोक नहीं पाते। 

मिस्र पर्यटक अर्थव्यवस्था का आधार: मिस्र की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन पर निर्भर करता है। इसलिए, शराब को यहां कानूनी दर्जा दिया गया है, लेकिन कुछ सीमाओं के साथ। 

उपलब्धता: शराब होटलों, बारों और अनुमोदित पर्यटन स्थलों पर आसानी से मिल जाती है। 

रमजान का नियम: रमजान के पवित्र महीने के दौरान, मुसलमानों के लिए शराब की बिक्री पर रोक लगा दी जाती है। 

सार्वजनिक प्रतिबंध: सार्वजनिक स्थानों पर या गाड़ी चलाते समय शराब का सेवन पूरी तरह से गैरकानूनी है। 

मॉरिटानिया निजी उपभोग की छूट: पश्चिमी अफ्रीका का यह मुस्लिम देश भी इसी नीति पर चलता है। यहां मुसलमानों के लिए शराब का उपभोग, निर्माण या बेचना पूरी तरह प्रतिबंधित है, लेकिन गैर-मुसलमानों को वैध परमिट वाले होटलों/रेस्तरां या निजी घरों में इसे पीने की छूट है। 

चौंकाने वाले आंकड़े: दुनिया में सबसे ज़्यादा शराब पीने वाले मुस्लिम देश कौन? 

आश्चर्यजनक रूप से, कुछ मध्य एशियाई मुस्लिम देश ऐसे हैं जहां शराब की खपत सबसे अधिक है, भले ही धार्मिक रूप से यहां भी इस्लाम का पालन होता है। यहां संस्कृति और इतिहास का प्रभाव धार्मिक नियम पर भारी पड़ता दिखता है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के 2022 के आंकड़ों के अनुसार प्रति व्यक्ति खपत 

देश    2010 (लीटर)
कजाखिस्तान9.3    
किर्गिस्तान  10.2
तुर्कमेनिस्तान6.0
उज़्बेकिस्तान3.2
ताजिकिस्तान2.4


सोवियत प्रभाव वाले इन राष्ट्रों में वोदका जैसे पेय सामाजिक उत्सवों का अनिवार्य हिस्सा माने जाते हैं, भले ही उनकी अधिकांश आबादी मुस्लिम हो। कजाखिस्तान और किर्गिस्तान जहां वोदका ही त्योहार है। कजाखिस्तान में प्रति व्यक्ति शराब की खपत बाकी मुस्लिम देशों में सर्वाधिक है। 

किर्गिस्तान में, जहां 90 परसेंट से अधिक आबादी मुस्लिम है, वहां भी लोग बड़ी मात्रा में शराब पीते हैं। यहां वोदका सबसे लोकप्रिय है और सर्द रातों में इसे सार्वजनिक रूप से पीना काफी आम है। 

धार्मिक आस्था और आधुनिक व्यापार का संतुलन 

यह 'शराब डिप्लोमेसी' केवल शराब बेचने या न बेचने का मामला नहीं है। यह उन सभी मुस्लिम देशों के लिए एक केस स्टडी है जो चाहते हैं कि वे अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखते हुए भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक मजबूत खिलाड़ी बनें। सऊदी अरब जैसे कठोर देश भी अब 'विजन 2030' के तहत पर्यटन को बढ़ावा दे रहे हैं, और कयास लगाए जा रहे हैं कि वे भी भविष्य में गैर-मुस्लिमों के लिए नियंत्रित रूप से शराब की अनुमति दे सकते हैं। 

दुनिया के मुस्लिम देश एक ऐसे सूक्ष्म संतुलन पर चल रहे हैं जहां धार्मिक आस्थाएं मुसलमानों के लिए नियम बनाती हैं, लेकिन पर्यटन और विदेशी व्यापार की मजबूरियां गैर-मुस्लिमों के लिए एक 'शर्तों के साथ आज़ादी' का रास्ता खोलती हैं। यह दिखाता है कि कैसे कानून और संस्कृति समय के साथ अनुकूलित होते हैं, भले ही उनका आधार कितना भी पुराना क्यों न हो।

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