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France-सऊदी की पहल पर UN में फिलिस्तीन पर शिखर सम्मेलन, US-इजराइल क्यों कर रहे बॉयकॉट?

फ्रांस और सऊदी अरब की पहल पर फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र में एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन हो रहा है। अमेरिका और इजराइल ने इसका बहिष्कार किया है, लेकिन फिलिस्तीन को दुनिया के कई देशों से बढ़ती मान्यता मिल रही है।

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Ajit Kumar Pandey
France-सऊदी की पहल पर UN में फिलिस्तीन पर शिखर सम्मेलन, US-इजराइल क्यों कर रहे बॉयकॉट? | यंग भारत न्यूज

France-सऊदी की पहल पर UN में फिलिस्तीन पर शिखर सम्मेलन, US-इजराइल क्यों कर रहे बॉयकॉट? | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की वैश्विक लहर अब तेज हो गई है। फ्रांस और सऊदी अरब की पहल पर संयुक्त राष्ट्र में होने वाले एक अहम शिखर सम्मेलन में दुनिया के कई प्रमुख देश दो-राष्ट्र समाधान को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका और इजराइल ने इसका बहिष्कार कर इस प्रयास को कमजोर करने की कोशिश की है। क्या यह शिखर सम्मेलन एक नए फिलिस्तीनी राज्य का मार्ग प्रशस्त करेगा? 

अलजजीरा के अनुसार, फ़िलिस्तीन की आजादी का सपना दशकों से अधर में लटका हुआ है। गाजा में जारी संघर्ष के बीच अब दुनिया का बड़ा हिस्सा मानता है कि इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष का एक ही स्थायी समाधान है कि फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिले। इसी सोच को आगे बढ़ाने के लिए फ्रांस और सऊदी अरब ने संयुक्त राष्ट्र में एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन बुलाया है। 

इस बैठक में जहां दुनिया के कई नेता शामिल हो रहे हैं तो वहीं अमेरिका और इजराइल ने इसमें हिस्सा लेने से साफ इनकार कर दिया है। 

दो राष्ट्रों का समाधान: क्या खत्म हो पाएगा दशकों का संघर्ष? 

इस शिखर सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य 1967 की सीमाओं के आधार पर एक स्वतंत्र और संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लिए एक रोडमैप तैयार करना है। यह तब हो रहा है जब इजराइल गाजा और वेस्ट बैंक में अपने कब्जे को लगातार बढ़ा रहा है। इजराइल के ये कदम फिलिस्तीनी राज्य की उम्मीदों को लगभग खत्म कर रहे हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर चिंताएं बढ़ी हैं। 

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बढ़ती मान्यता की लहर: इस समिट से फिलिस्तीन को एक नई ताकत मिलने की उम्मीद है। फ्रांस ने संकेत दिए हैं कि वह जल्द ही फिलिस्तीन को आधिकारिक मान्यता देगा। बेल्जियम जैसे कई अन्य यूरोपीय देश भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल जैसे प्रमुख देश पहले ही इजराइल और अमेरिका के विरोध के बावजूद फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। 

इजराइल का कड़ा विरोध: इस शिखर सम्मेलन का इजराइल ने कड़ा विरोध किया है। संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के राजदूत ने इस आयोजन को "एक सर्कस" करार दिया है। इजराइल का मानना है कि फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देना "आतंकवाद को इनाम" देने जैसा होगा। 

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी इस मुद्दे पर घरेलू राजनीतिक दबाव का सामना कर रहे हैं, क्योंकि उनके दक्षिणपंथी गठबंधन के नेता फिलिस्तीनी राज्य की संभावना का विरोध कर रहे हैं। 

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क्या वेस्ट बैंक पर कब्जा करेगा इजराइल? 

इजराइली मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि नेतन्याहू सरकार फिलिस्तीन को मिलती वैश्विक मान्यता के जवाब में वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों या पूरे वेस्ट बैंक पर कब्जा करने पर विचार कर रही है। हालांकि, यह कदम आसान नहीं होगा, क्योंकि इसके लिए उन्हें अमेरिका के समर्थन और संरक्षण की जरूरत होगी, जो फिलिस्तीनी मुद्दे पर अपनी राय बदलने से हिचक रहा है। 

यह शिखर सम्मेलन एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। भले ही अमेरिका और इजराइल इसका बहिष्कार कर रहे हों, लेकिन दुनिया के बाकी देशों का एक साथ आना फिलिस्तीन के लिए एक मजबूत संदेश है। 

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह एकजुटता इजराइल पर दबाव बनाने में सफल होगी और क्या दशकों पुराने इस संघर्ष का कोई शांतिपूर्ण समाधान निकल पाएगा। 

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