/young-bharat-news/media/media_files/2025/06/18/IRAN ISRAEL CONFLICT-58fb83bd.jpg)
Iran-Israel Conflict : अब तेल को तरसेगी दुनिया! क्या इस्लामिक मुल्कों की कमाई हो जाएगी बंद? यंग भारत न्यूज
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । ईरान और इजरायल के बीच गहराते तनाव ने दुनिया को एक नए संकट के मुहाने पर ला खड़ा किया है। यह संकट सीधे तौर पर हमारी जेब और हमारी अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, क्योंकि इसकी जड़ में है 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' या होर्मुज जलडमरूमध्य - वह पतला समुद्री रास्ता, जिसके बिना दुनिया की तेल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा थम सकता है। कल्पना कीजिए, पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें, आसमान छूती कीमतें और आपकी रोजमर्रा की जिंदगी पर इसका सीधा असर। यही वजह है कि यह समुद्री मार्ग इस वक्त हर तरफ चर्चा का विषय बना हुआ है।
क्यों है होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया की तेल आपूर्ति की जीवनरेखा?
होर्मुज जलडमरूमध्य केवल एक समुद्री रास्ता नहीं, बल्कि वैश्विक तेल व्यापार की नस है। यह ईरान और ओमान के बीच स्थित एक संकरा मार्ग है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और फिर अरब सागर से जोड़ता है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे अविश्वसनीय रूप से रणनीतिक बनाती है। कुवैत, सऊदी अरब, इराक, कतर, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देशों के लिए यह अरब सागर तक पहुंचने का एकमात्र समुद्री रास्ता है।
इस जलडमरूमध्य की गहराई और चौड़ाई इतनी है कि दुनिया के सबसे बड़े कच्चे तेल के टैंकर भी इससे आसानी से गुजर सकते हैं। यही कारण है कि इसे दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण 'तेल चोकपॉइंट्स' में से एक माना जाता है।
"चोकपॉइंट" वह संकरा रास्ता होता है, जहां से बड़ी मात्रा में माल का परिवहन होता है और जिसे बाधित करने से वैश्विक आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ सकता है। होर्मुज जलडमरूमध्य इसी श्रेणी में आता है, और इसका बंद होना वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक भूकंप ला सकता है।
आंकड़ों की ज़ुबानी: होर्मुज का अकल्पनीय महत्व
अगर हम आंकड़ों पर नज़र डालें, तो होर्मुज जलडमरूमध्य का महत्व और भी स्पष्ट हो जाता है। 2024 में, इस जलडमरूमध्य से प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ बैरल तेल का आवागमन हुआ था। यह आंकड़ा वैश्विक पेट्रोलियम खपत का लगभग 20% था। यानी, दुनिया की हर पांचवीं बैरल तेल यहीं से होकर गुजरती है। 2025 के शुरुआती महीनों में भी यह आवागमन स्थिर बना हुआ है, और विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह वैश्विक तेल व्यापार का एक चौथाई से अधिक हिस्सा और पेट्रोलियम उत्पाद व तेल की खपत का लगभग पांचवां हिस्सा होगा।
एक बैरल 159 लीटर के बराबर होता है, और यही वह इकाई है जिसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के कारोबार के लिए होता है। कल्पना कीजिए, इतनी बड़ी मात्रा में तेल का प्रवाह रुक जाए तो क्या होगा? सबसे पहले आपूर्ति में देरी होगी, जिससे शिपिंग की लागत बढ़ेगी और अंततः वैश्विक स्तर पर तेल और गैस की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि होगी। इससे महंगाई बढ़ेगी, उद्योगों पर बुरा असर पड़ेगा और आम आदमी की जेब पर सीधा बोझ आएगा। यही वजह है कि अमेरिकी नौसेना का पांचवां बेड़ा बहरीन के मनामा में रहकर इस जलडमरूमध्य की लगातार निगरानी करता है, ताकि किसी भी तरह की रुकावट को रोका जा सके।
ईरान का सामरिक नियंत्रण और द्वीपों का विवाद
होर्मुज जलडमरूमध्य में कुल आठ प्रमुख द्वीप हैं, जिनमें से सात पर ईरान का नियंत्रण है। अबू मूसा, ग्रेटर टुंब और लेसर टुंब द्वीप विशेष रूप से रणनीतिक महत्व रखते हैं, और इनको लेकर ईरान और संयुक्त अरब अमीरात के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। 1970 के दशक से ही ईरान ने इन द्वीपों पर अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है। इसके अलावा, ईरान के नौसैनिक अड्डे चाबहार, बंदर अब्बास और बुशहर में स्थित हैं, जिससे ईरानी नौसेना को इस महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग पर मजबूत पकड़ बनाने में मदद मिलती है।
यह नियंत्रण ईरान को एक शक्तिशाली स्थिति में रखता है, जिससे वह आवश्यकता पड़ने पर इस मार्ग को बाधित करने की धमकी दे सकता है। हालांकि, यह कदम वैश्विक स्तर पर बड़े परिणामों को जन्म देगा, जिसकी वजह से ईरान को भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
/filters:format(webp)/young-bharat-news/media/media_files/2025/06/18/IRAN KA MAHATVA-1538100a.jpg)
क्या ईरान सच में होर्मुज को बंद कर सकता है?
इजरायल द्वारा ईरान पर किए गए हालिया हमलों के बाद, जिसमें कई ईरानी सैन्य ठिकाने और परमाणु कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं, बौखलाए ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है। लेकिन क्या ईरान वास्तव में ऐसा करेगा? विशेषज्ञ मानते हैं कि इसकी संभावना कम है, और इसके पीछे कई कारण हैं।
सबसे पहले, चीन के साथ संबंध। चीन ईरान के तेल का सबसे बड़ा आयातक है, जो उसके कुल निर्यात का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा खरीदता है। यदि जलडमरूमध्य बंद होता है, तो चीन के लिए भी आपूर्ति बाधित होगी, जिससे ईरान को अपने सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार से हाथ धोना पड़ सकता है।
दूसरा, ओमान के साथ रिश्ते। ओमान समुद्री मार्गों के जरिए व्यापार की आजादी का समर्थन करता रहा है और होर्मुज जलडमरूमध्य के दक्षिणी हिस्से पर उसका नियंत्रण है। ईरान द्वारा इस मार्ग को बंद करने से ओमान के साथ उसके रिश्ते खराब हो सकते हैं।
तीसरा, ईरान पर ही भारी पड़ने वाला बोझ। इजरायल के साथ तनाव के चलते ईरान पहले से ही कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है। ऐसे में अगर यह रास्ता बंद होता है, तो ईरान को भी भारी आर्थिक कीमतों को झेलना पड़ेगा। इससे यह मुल्क भी आर्थिक अस्थिरता के संकट से जूझने लगेगा। अपनी ही अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना किसी भी देश के लिए समझदारी भरा कदम नहीं होगा।
दुनिया के ज्यादातर देश इस बात को बखूबी जानते हैं कि होर्मुज जलडमरूमध्य में कोई भी रुकावट वैश्विक संकट को जन्म दे सकती है। ऐसे में ईरान अपनी धमकी को हकीकत में बदलने से पहले कई देशों के साथ अपने बचे-खुचे रिश्तों से भी हाथ धो सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव और अपने ही देश की आर्थिक स्थिरता को देखते हुए ईरान के लिए यह एक मुश्किल फैसला होगा।
सऊदी अरब और यूएई की वैकल्पिक पाइपलाइनें: क्या वे पर्याप्त हैं?
होर्मुज जलडमरूमध्य के महत्व को देखते हुए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने इस रास्ते को बायपास करने के लिए कुछ बुनियादी ढांचा तैयार कर रखा है। इसके तहत पाइपलाइनें बिछाई गई हैं जो इस रास्ते में आने वाली अड़ंगों को कुछ हद तक कम कर सकती हैं।
यदि किसी कारणवश होर्मुज जलडमरूमध्य में कोई व्यवधान आता है, तो सऊदी अरब और यूएई इन पाइपलाइनों का उपयोग करके प्रतिदिन 260 लाख बैरल तेल के आवागमन की क्षमता रखते हैं। हालांकि, ये पाइपलाइनें पूरी तरह से संचालित नहीं होतीं और इनकी क्षमता होर्मुज से होने वाले कुल व्यापार की तुलना में काफी कम है। वे केवल आंशिक रूप से ही इस कमी को पूरा कर सकती हैं।
इसका मतलब यह है कि अगर होर्मुज जलडमरूमध्य पूरी तरह से बंद हो जाता है, तो इन वैकल्पिक रास्तों से भी पूरी आपूर्ति सुनिश्चित करना संभव नहीं होगा। दुनिया को अभी भी तेल की कमी और बढ़ी हुई कीमतों का सामना करना पड़ेगा, भले ही इन देशों के पास कुछ बैकअप योजनाएं हों।
भारत के लिए क्या हैं चुनौतियां?
भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह संकट एक बड़ी चुनौती है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से आयात करता है, और होर्मुज जलडमरूमध्य इस आपूर्ति श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि यह मार्ग बाधित होता है, तो भारत को तेल की कमी और बढ़ती कीमतों का सामना करना पड़ेगा, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
यह संकट भारत के लिए एक अवसर भी है कि वह अपनी रणनीतिक साझेदारी को बेहतर बनाए और नए ऊर्जा स्रोतों पर काम करे। ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विविधता लाना और वैकल्पिक आपूर्ति मार्गों पर विचार करना भारत की प्राथमिकता होनी चाहिए।
भविष्य की अनिश्चितता और भू-राजनीतिक उथल-पुथल
होर्मुज जलडमरूमध्य की भू-राजनीतिक स्थिति इसे लगातार तनाव का केंद्र बनाए रखती है। मध्य पूर्व में जैसे-जैसे तनाव बढ़ रहा है, इस जलडमरूमध्य का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। दुनिया की निगाहें ईरान और इजरायल के बीच चल रहे घटनाक्रम पर टिकी हैं, क्योंकि उनके बीच कोई भी बड़ी सैन्य कार्रवाई वैश्विक तेल बाजार को हिला सकती है।
जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियां भी इस क्षेत्र को चुनौतीपूर्ण बनाती हैं। ईरानी खाड़ी के तट पर अत्यधिक गर्म और शुष्क जलवायु होती है, खासकर जुलाई और अगस्त में। धूल, सुबह की धुंध और धुंधलापन भी दृश्यता को प्रभावित करते हैं, जिससे शिपिंग और निगरानी और भी कठिन हो जाती है।
यह सब मिलकर एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जहाँ भविष्य की अनिश्चितता और भू-राजनीतिक उथल-पुथल का सीधा असर हर आम इंसान पर पड़ने वाला है। तेल की कीमतें केवल आंकड़े नहीं हैं, वे हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
क्या आप सहमत हैं कि होर्मुज जलडमरूमध्य का बंद होना वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक विनाशकारी कदम होगा? कमेंट करें और अपनी राय बताएं!
Iran Israel Conflict | Iran Israel conflict 2025 | Iran Israel Conflict Explained |