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इस्लाम में हराम शराब, फिर भी क्यों दीवाने हैं ये मुस्लिम देश? हैरान कर देंगे आंकड़े

इस्लाम में शराब हराम है, फिर भी UAE, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश गैर-मुस्लिमों को परमिट पर इसे बेच रहे हैं। कजाखस्तान और किर्गिस्तान में तो मुस्लिम आबादी भी भारी खपत करती है। जानें दोहरे नियमों का पूरा सच।

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Ajit Kumar Pandey
ISLAM ME SHARAB HARAM KYON

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । इस्लाम धर्म में शराब का सेवन सख्त हराम निषिद्ध है, बावजूद इसके दुनिया के कई मुस्लिम-बहुल देशों में शराब बड़े पैमाने पर बिकती और पी जाती है। यह विरोधाभास क्यों? संयुक्त अरब अमीरात UAE और पाकिस्तान जैसे देश सख्त नियमों के बीच कैसे परमिट के ज़रिए इसकी अनुमति देते हैं, जबकि कजाखस्तान और किर्गिस्तान जैसे कुछ देश मुस्लिम आबादी के बावजूद भारी खपत के लिए जाने जाते हैं। यह एक्सक्लूसिव रिपोर्ट इन देशों के हैरान करने वाले नियमों और खपत के पैटर्न को उजागर करती है। इस्लाम और शराब 'हराम' होने के बावजूद क्यों है इतना बड़ा कारोबार?

इस्लामिक आस्था का मूल सिद्धांत यह है कि शराब पीना मना है। पवित्र क़ुरान में स्पष्ट तौर पर शराब खमर को शैतान का काम बताया गया है, जो इंसान की बुद्धि और विवेक को भ्रष्ट कर देता है। यही कारण है कि सऊदी अरब और कुवैत जैसे कई रूढ़िवादी मुस्लिम देशों ने शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है।लेकिन, जैसे ही आप पश्चिम एशिया से मध्य एशिया या दक्षिण एशिया की ओर बढ़ते हैं, ये नियम जटिल और लचीले होते जाते हैं। यह लचीलापन उन देशों में सबसे ज़्यादा दिखता है जहां पर्यटन Tourism का राजस्व एक बड़ा आर्थिक आधार है या जहां गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी अधिक है। 

सवाल उठता है कि जब धर्म ने साफ मना किया है, तो इन देशों में शराब की बिक्री कैसे हो रही है? इसका सीधा जवाब 'भेदभाव वाले नियम' हैं, जो मुस्लिम नागरिकों और गैर-मुस्लिम निवासियों या पर्यटकों के बीच अंतर करते हैं। यह एक ऐसा संतुलन साधने का प्रयास है, जहां धार्मिक सिद्धांतों का सम्मान भी हो और वैश्विक आर्थिक या सामाजिक ज़रूरतों को भी नज़रअंदाज़ न किया जाए। 

किर्गिस्तान मुस्लिम देश होने के बावजूद वोडका के शौकीन 

मध्य एशिया का देश किर्गिस्तान इस मामले में सबसे अलग है। यहां की आबादी का बड़ा हिस्सा मुस्लिम है, लेकिन शराब की खपत चौंकाने वाली है।Facts And Details की एक रिपोर्ट के अनुसार, किर्गिज लोग, मुस्लिम पहचान रखने के बावजूद, भारी मात्रा में शराब पीने के लिए जाने जाते हैं। यहां सार्वजनिक रूप से नशे की हालत में दिखना भी सर्दियों के दौरान एक आम नज़ारा है। 

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वोडका का दबदबा: किर्गिस्तान में सबसे ज़्यादा वोडका पिया जाता है, इसके बाद बीयर और मीठी वाइन का नंबर आता है।

उत्सव का अनिवार्य हिस्सा: हर खुशी के अवसर या उत्सव में वोडका को शामिल करना यहां अनिवार्य माना जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के साल 2022 के आंकड़ों के अनुसार, किर्गिस्तान में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 9 लीटर थी, जो कई अन्य मुस्लिम देशों से कहीं अधिक है। हालांकि, पिछले एक दशक में इसमें मामूली कमी आई है, लेकिन यह आंकड़ा धार्मिक निषेध के बावजूद वहां की सामाजिक स्वीकृति को दर्शाता है। 

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यूएई पर्यटन और अर्थव्यवस्था का संतुलन: संयुक्त अरब अमीरात UAE अपने वैश्विक पर्यटन और व्यापार हब के रूप में जाना जाता है। यहां शराब पर प्रतिबंध को काफी हद तक 'रिलेक्स' किया गया है, लेकिन यह रियायत मुख्य रूप से गैर-मुस्लिम निवासियों और पर्यटकों के लिए है। 

UAE में शराब के नियम: मुसलमानों के लिए हराम 

मुस्लिम नागरिकों के लिए शराब का सेवन आज भी हराम माना जाता है और इस पर पाबंदी है। 

गैर-मुस्लिमों को परमिट: गैर-मुस्लिम निवासियों और पर्यटकों को लाइसेंस प्राप्त रेस्तरां, होटलों या बार में नियंत्रित तरीके से शराब पीने की अनुमति है।

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सार्वजनिक स्थानों पर सख़्ती: सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीना या नशे की हालत में दिखना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाता है। 

World Population Review के मुताबिक, साल 2022 में UAE में प्रति व्यक्ति 0.8 लीटर शराब की खपत दर्ज की गई। यह दिखाता है कि भले ही नियम लचीले हों, लेकिन सार्वजनिक खपत पर नियंत्रण है। 

पाकिस्तान अल्पसंख्यक परमिट की कहानी 

पाकिस्तान में आजादी के बाद तीन दशकों तक शराब पर कोई प्रतिबंध नहीं था, लेकिन 1977 में इसे पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। वर्तमान में, पाकिस्तान में मुस्लिम समुदाय के लिए शराब बनाना, बेचना या पीना पूरी तरह प्रतिबंधित है। लेकिन एक छोटा-सा दरवाजा खुला है। 

गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को परमिट: गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को शराब का परमिट लेने की अनुमति है। ये परमिट अक्सर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करते हैं। 

तय मात्रा की सीमा: World Atlas के अनुसार, गैर-मुस्लिमों को महीने में लगभग 5 बोतल शराब और 100 बोतल बीयर रखने की अनुमति दी जाती है।

World Population Review के आंकड़ों के अनुसार, साल 2022 में पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति 1 लीटर की खपत दर्ज की गई है, लेकिन यह कारोबार अल्पसंख्यक परमिट के ज़रिए चलता है। 

2020 के वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन (WHO) के डेटा के मुताबिक, कज़ाकिस्तान में शराब की खपत सबसे ज़्यादा है। किर्गिस्तान और तुर्कमेनिस्तान दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं, इसके बाद ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान हैं।

कज़ाकिस्तान: 2010 में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 9.3 लीटर थी, जो 2016 में घटकर 7.7 लीटर और 2022 में 5.4 लीटर हो गई।

किर्गिस्तान: यहां भी गिरावट देखी गई है। 2010 में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 10.2 लीटर थी, जो 2016 में घटकर 6.2 लीटर और 2022 में 3.9 लीटर हो गई।

उज़्बेकिस्तान: 2010 में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 3.2 लीटर से घटकर 2016 में 2.7 लीटर हो गई। 2022 में, यह घटकर 2.1 लीटर हो गई।

तुर्कमेनिस्तान: 2010 में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 6 लीटर थी, जो 2016 में घटकर 5.4 लीटर और 2022 में 3.0 लीटर हो गई।

ताजिकिस्तान: प्रति व्यक्ति शराब की खपत 2010 में 2.4 लीटर से बढ़कर 2016 में 3.3 लीटर हो गई, और 2022 में घटकर 0.7 लीटर हो गई।

मॉरिटानिया: पश्चिमी उत्तरी अफ्रीका में स्थित इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ मॉरिटानिया में, मुसलमानों के लिए शराब रखना, पीना, बेचना या बनाना पूरी तरह से मना है। हालाँकि, गैर-मुसलमानों को अपने घरों में या उन होटलों और रेस्टोरेंट में शराब पीने की इजाज़त है जिनके पास वैलिड शराब परमिट है।

मिस्र: मिस्र में शराब पीना कानूनी है, लेकिन सार्वजनिक जगहों पर यह मना है, और रमज़ान के दौरान मुसलमानों को शराब बेचना बंद कर दिया जाता है। होटलों, बार और मंज़ूर टूरिस्ट जगहों पर शराब मिलती है, और कुछ रेस्टोरेंट भी इसे परोसते हैं। सड़कों पर या गाड़ी में शराब पीना गैर-कानूनी है और इसके लिए जुर्माना लग सकता है। 2022 वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के अनुसार, देश में 2022 में हर साल 0.1 लीटर शराब की खपत हुई।

बांग्लादेश: बांग्लादेश में भी मुसलमानों के लिए शराब पीने के सख्त नियम हैं। गैर-मुस्लिम सिर्फ़ परमिट लेकर शराब खरीद सकते हैं और उनकी उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए। देश में सिर्फ़ एक शराब कंपनी है - केरू।

पाबंदियों के बावजूद, 2024 में, केरू ने अपनी शुरुआत (ब्रिटिश काल के दौरान) के बाद से अपना सबसे बड़ा मुनाफ़ा कमाया—लगभग $10 मिलियन (Rs 84 करोड़)।

दिलचस्प बात यह है कि देश की एकमात्र शराब बनाने वाली कंपनी केरू ब्रिटिश काल से स्थापित ने 2024-25 में अपनी स्थापना के बाद से सबसे बड़ा मुनाफ़ा कमाया- लगभग 10 मिलियन डॉलर। 

बांग्लादेश की आबादी का लगभग 10 परसेंट हिस्सा गैर-मुस्लिम है और यही समूह प्रमुख उपभोक्ता है। कंपनी का दावा है कि उनकी शराब सिर्फ पहले से पीने वालों को ही बेची जाती है, इसकी मार्केटिंग नहीं की जाती। इस सरकारी कंपनी का बड़ा मुनाफा साफ दर्शाता है कि सख्त नियमों के बावजूद, एक छोटा बाज़ार और विदेशी मांग इस कारोबार को फलने-फूलने का मौका दे रही है। 

मिस्र और मॉरिटानिया परमिट का जालमिस्र यहां शराब पीना कानूनी है , लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर मनाही है। शराब होटलों, बारों और अनुमोदित पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध होती है। रमजान के दौरान मुसलमानों के लिए बिक्री रोक दी जाती है। 

मॉरिटानिया मुसलमानों के लिए पूरी तरह प्रतिबंधित, लेकिन गैर-मुसलमान अपने घरों में या वैध परमिट वाले होटलों में पी सकते हैं। इन सभी उदाहरणों से एक बात स्पष्ट होती है वैश्विक अर्थव्यवस्था और पर्यटन की ज़रूरतें अब उन मुस्लिम देशों में धार्मिक निषेध पर हावी हो रही हैं, जहां आय का बड़ा स्रोत बाहरी दुनिया से आता है। हालांकि, यह संतुलन बनाने के लिए नियम जटिल और अक्सर दोहरे होते हैं, लेकिन दुनिया की हक़ीक़त यही है कि धार्मिक आस्था के साथ-साथ आर्थिक ज़रूरतें भी बड़ी भूमिका निभाती हैं। 

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