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Trump को शांति पुरस्कार देने की मांग के बीच नोबेल समिति का बड़ा बयान- 'फैसला सिर्फ योग्यता पर आधारित'

क्या ट्रंप को मिलेगा नोबेल? कमेटी का बयान उन दावों पर लगाम लगा सकता है, जहां उन्होंने कई युद्ध खत्म करने का श्रेय लिया था। 10 अक्टूबर को होने वाली घोषणा से पहले जानें, कमेटी क्यों नहीं दे सकती उन्हें यह सम्मान।

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Ajit Kumar Pandey
Trump को शांति पुरस्कार देने की मांग के बीच नोबेल समिति का बड़ा बयान- 'फैसला सिर्फ योग्यता पर आधारित' | यंग भारत न्यूज

Trump को शांति पुरस्कार देने की मांग के बीच नोबेल समिति का बड़ा बयान- 'फैसला सिर्फ योग्यता पर आधारित' | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । अमेरिकी प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार के दावे पर नोबेल कमेटी ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि मीडिया का दबाव उनके फैसले को प्रभावित नहीं करेगा। कमेटी के सचिव क्रिस्टियन बर्ग हारपविकेन ने साफ किया है कि पुरस्कार का चयन उम्मीदवार की व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर होता है न कि उसके इर्द-गिर्द हो रही चर्चाओं के आधार पर। 

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, पिछले कुछ महीनों से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार दावा कर रहे हैं कि उन्होंने सात युद्धों को समाप्त करवाया है और इसलिए वह नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं। इन युद्धों में भारत-पाकिस्तान और आर्मेनिया-अजरबैजान के बीच संघर्ष भी शामिल हैं। 

हालांकि, नोबेल पीस प्राइज कमेटी के सचिव क्रिस्टियन बर्ग हारपविकेन ने समाचार एजेंसी एएफपी को दिए एक इंटरव्यू में इन दावों पर महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने साफ किया कि कमेटी का फोकस किसी व्यक्ति की योग्यता पर होता है न कि मीडिया में उसकी लोकप्रियता पर। 

‘सिर्फ नामांकन से कुछ नहीं होता!’ 

ट्रंप के समर्थकों का कहना है कि उन्हें कई देशों से समर्थन मिल रहा है जिसमें पाकिस्तान, कंबोडिया, इजरायल और अजरबैजान जैसे देश शामिल हैं। यहां तक कि इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ट्रंप को नामित करते हुए कहा था कि वह शांति स्थापित कर रहे हैं।

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इस पर हारपविकेन ने कहा, "सिर्फ नामित होना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है, असली उपलब्धि तो विजेता बनना है।" उनका यह बयान उन लोगों के लिए एक सीधा जवाब है जो ट्रंप के नामांकन को ही बड़ी जीत मान रहे हैं। 

क्या भारत-पाकिस्तान विवाद में ट्रंप का रोल था? 

डोनाल्ड ट्रंप ने मई महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने का श्रेय भी लिया था। लेकिन, भारत ने कई बार स्पष्ट किया है कि दोनों देशों के बीच तनाव को द्विपक्षीय बातचीत से ही कम किया गया था। 

व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने भी हाल ही में कहा था कि अगर ट्रंप हस्तक्षेप नहीं करते तो यह संघर्ष परमाणु युद्ध में बदल सकता था। 

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इस तरह के दावों के बावजूद नोबेल कमेटी अपने स्वतंत्र चयन प्रक्रिया पर अडिग है। 

नोबेल कमेटी का चयन प्रक्रिया क्या है? 

नोबेल कमेटी के सचिव ने बताया कि पुरस्कार विजेता का चयन पूरी तरह से ज्ञान और तथ्यों पर आधारित होता है। हारपविकेन के अनुसार, "चर्चा का आधार ज्ञान होता है। यह नहीं कि पिछले 24 घंटों में किस मीडिया रिपोर्ट को सबसे ज्यादा ध्यान मिला है।" उन्होंने यह भी बताया कि हर साल कई अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन कमेटी यह सुनिश्चित करती है कि ये अभियान उनके निर्णय को प्रभावित न करें। 

इस साल 338 व्यक्तियों और संगठनों की लंबी सूची में से विजेता का चुनाव 10 अक्टूबर को होगा। राजनीतिक दबाव और कमेटी की स्वतंत्रता नॉर्वे की संसद नोबेल कमेटी के पांच सदस्यों का चयन करती है, लेकिन कमेटी का कहना है कि उनके फैसले पार्टी की राजनीति और मौजूदा सरकार से पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं। 

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नॉर्वेजियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के रिसर्च डायरेक्टर हालवार्ड लीरा ने एएफपी को बताया कि इस तरह का दबाव अक्सर उल्टा पड़ जाता है। "अगर कमेटी अब ट्रंप को पुरस्कार देती है, तो उस पर अपनी स्वतंत्रता से समझौता करने का आरोप लगेगा।" 

हारपविकेन के बयान से यह साफ है कि नोबेल कमेटी किसी भी तरह के बाहरी दबाव में नहीं आएगी। ट्रंप के समर्थकों के तमाम दावों और मीडिया की सुर्खियों के बावजूद कमेटी केवल उम्मीदवार की योग्यता और विश्व शांति में उसके योगदान को देखेगी। 

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