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डोनाल्ड ट्रम्प की एक गलती और फिर से जिंदा हो गया ब्रिक्स

अरसे से ब्रिक्स को ढीला समूह माना जाता था। सदस्य देश एक दूसरे को शंका की नजरों से देखते थे। लेकिन, अब यह पुराना हो चुका है। एक साझे दुश्मन ने उनको एकजुट कर दिया।

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Shailendra Gautam
ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत | यंग भारत न्यूज

ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत | यंग भारत न्यूज

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः दुनिया भर के सामरिकी विशेषज्ञ ब्रिक्स को एक कागज पर चलने वाला गठबंधन मानते थे। देशों के बीच व्यापार बहुत कम था। लेकिन, ट्रम्प के टैरिफ बम ने इस ग्रुप में जान फूंक दी है। चीन-रूस व्यापार पिछले साल रिकॉर्ड 244.8 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। चीन और भारत रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदार बने हुए हैं। चीन ब्राजील का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। कुल मिलाकर जो हालात दिख रहे हैं वो ट्रम्प के लिए चिंताजनक हैं। 

ब्रिक्स की दीवार से टकराए ट्रम्प 

डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत और ब्राजील पर सबसे ज्यादा 50% टैरिफ लगाया है। दक्षिण अफ्रीका पर 30% टैरिफ लगने का खतरा मंडरा रहा है। चीन पहले ही अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध में उलझा हुआ है, जबकि रूस पर और प्रतिबंध लगने की आशंका है। ब्रिक्स देश ट्रम्प के टैरिफ युद्ध के निशाने पर रहे हैं, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति अनजाने में ही इस समूह के एकीकरण के सूत्रधार बन गए हैं। दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद से ट्रम्प लगातार ब्रिक्स गठबंधन पर निशाना साध रहे हैं। जबकि इसका वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 32% का हिस्सा है। ट्रम्प की यह चिढ़ उनकी इस चिंता से उपजी है कि यह समूह अमेरिकी डॉलर के लिए खतरा है। उन्होंने इस समूह पर 100% टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है।

यह ट्रम्प की एक खास रणनीति है। इन देशों पर भारी टैरिफ लगाकर उन्हें इस कगार पर धकेलना ताकि वे ऐसे व्यापार समझौतों पर सहमत हो जाएं जो अमेरिका के पक्ष में हो। हालांकि, ट्रम्प के लिए यह बहुत निराशाजनक था कि देशों ने इस संकट को घनिष्ठ संबंध बनाने और ब्रिक्स को नया रूप देने के अवसर में बदल दिया है। अरसे से इसे एक ढीले-ढाले ढांचे वाला समूह माना जाता था। इसमें विश्वास न के बराबर था। सदस्य देश एक दूसरे को शंका की नजरों से देखते थे। लेकिन, अब यह पुराना हो चुका है। एक साझे दुश्मन ने उनको एकजुट कर दिया।

ब्रिक्स सदस्यों ने आर्थिक समन्वय और यहां तक कि व्यक्तिगत कूटनीति को भी बढ़ाया है। ट्रम्प जिस चीज को उलटना चाहते थे, वही उन्हें उलट गई। शीर्ष अर्थशास्त्री जेफरी सैक्स ये कहना गलत नहीं था कि ट्रम्प के टैरिफ ने रातोंरात ब्रिक्स देशों को पहले से ज्यादा एकजुट कर दिया।

भारत ने रूस के साथ संबंधों को मजबूत किया

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ट्रम्प की इस बेतुकी शेखीबाजी से शायद भारत सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है, जिसके कारण संबंधों में दरार आ गई है। रूसी तेल की खरीद पर 25% पारस्परिक शुल्क और अतिरिक्त 25% शुल्क का सामना करने के अलावा अमेरिका की नजरें बारत के कृषि और डेयरी क्षेत्रों तक भी है।
हालांकि, भारत ने पीछे हटने से इनकार कर दिया है। भारत ने रूस और चीन दोनों के साथ राजनयिक संबंध बढ़ाए हैं। एनएसए अजीत डोभाल की रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ बातचीत के कुछ दिनों बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर मास्को की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं। 

गुरुवार को, जयशंकर ने रूसी कंपनियों से अपने भारतीय समकक्षों के साथ जुड़ने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि देशों को अपने व्यापार में विविधता लानी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि द्विपक्षीय व्यापार 2021 में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से पांच गुना से अधिक बढ़कर 2024-25 में 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। केंद्रीय मंत्री अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से भी मिलने वाले हैं। बैठक के एजेंडे में ट्रम्प के लिए एक बारीक संदेश है। रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत से बातचीत परिवहन, रसद, बैंकिंग और वित्तीय संपर्कों और श्रृंखलाओं के विकास को सुगम बनाने पर केंद्रित होगी। 

भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल की थोक खरीद पर ट्रम्प के आक्रामक रुख के बावजूद मास्को से नई दिल्ली तक तेल की निर्बाध आपूर्ति जारी रही है। चीन के बाद भारत रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है। उसकी ऊर्जा जरूरतों का 40% हिस्सा रूस से आता है। रूस ने भारत को 5% की छूट देकर इस सौदे को और भी बेहतर बना दिया है। रूस ने अमेरिका के भारी टैरिफ के बीच भारत को अपने उत्पादों का निर्यात करने के लिए रेड कारपेट भी बिछा दिया है। रूसा ने कहा- अगर भारतीय सामान अमेरिका नहीं जा सकते, तो वे रूस जा सकते हैं।

हिंदी-चीनी भाई-भाई फिर से

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ट्रम्प के टैरिफ वार के बीच भारत और चीन भी एक दूसरे के करीब आ रहे हैं। बावजूद इसके कि दोनों के बीच सीमा को लेकर तनातनी है। हिंदी चीनी भाई भाई का नारा फिर से गूंजने लगा है। सभी की निगाहें इस महीने के अंत में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के लिए प्रधानमंत्री मोदी की चीन की महत्वपूर्ण यात्रा पर टिकी होंगी। यह सात वर्षों में उनकी पहली यात्रा है।

हालांकि पहले के अमेरिकी प्रशासनों ने एशिया में चीन के प्रतिकार के रूप में भारत के साथ अपने संबंधों को और मजबूत किया था। ऐसा लगता है कि ट्रम्प ने अकेले ही भारत के प्रति वाशिंगटन की वर्षों की रणनीतिक पहल को विफल कर दिया है।

भू-राजनीतिक विशेषज्ञ फरीद जकारिया ने हाल ही में सीएनएन पर कहा- अगर ट्रम्प अपना रुख बदलते भी हैं, तो भी नुकसान हो चुका है। भारत का मानना ​​है कि अमेरिका ने अपना असली रंग दिखा दिया है। भारत को लगेगा कि उसे अपनी शर्तें लगाने की जरूरत है। रूस के साथ नजदीकी बनाए रखें और चीन के साथ सुलह करें।

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दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील ने ट्रम्प की बात मानने से इनकार किया है। दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील भी किया से अछूते नहीं रहे। इससे चीन को इन देशों के साथ अपने व्यापार को बढ़ाने का मौका मिल गया है। चीन ने घोषणा की है कि वह अपने लगभग सभी अफ्रीकी साझेदारों के आयात पर शुल्क लगाना बंद कर देगा। दोनों देशों ने एक व्यापार और निवेश पैकेज को भी अंतिम रूप दिया है। ट्रम्प ने ब्राजील पर भी दबाव बढ़ा दिया है। भारत और रूस की तरह ब्राजील के नेता ने भी झुकने से इनकार कर दिया है। कहा है कि वह एकतरफा जवाब देने के बजाय, सामूहिक रूप से ट्रम्प की धमकियों का विरोध करने के लिए अपने ब्रिक्स समकक्षों के साथ तालमेल करेंगे। 

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