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"पाकिस्तान के 4.5 करोड़ जिंदा भूत! पढ़िए — 'अदृश्य' नागरिकों की दर्दनाक दास्तां"

पाकिस्तान में 4.5 करोड़ लोग 'अदृश्य' जीवन जीने को मजबूर हैं। ऐसे नागरिकों को यूनिसेफ मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयास कर रहा है, जो उन्हें पहचान दिलाकर बेहतर भविष्य के साथ इनकी पहचान कायम करने की उम्मीद जगा रहा है।

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Ajit Kumar Pandey
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"पाकिस्तान के 4.5 करोड़ जिंदा भूत! पढ़िए — 'अदृश्य' नागरिकों की दर्दनाक दास्तां" | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।कल्पना कीजिए एक ऐसी ज़िंदगी की, जहां आपका कोई नाम नहीं, कोई पहचान नहीं, और न ही कोई अधिकार। पाकिस्तान में करीब 4.5 करोड़ लोग ऐसे ही हालात में जीने को मजबूर हैं — वे न तो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हैं, न स्कूलों में पढ़ सकते हैं, न अस्पतालों में इलाज पा सकते हैं और न ही किसी सरकारी मदद के हकदार हैं। वे ज़िंदा हैं, मगर सिस्टम की नजर में 'अस्तित्वहीन'। इन्हें लोग ‘जिंदा भूत’ कहते हैं — ऐसे नागरिक जिनका कोई पहचान पत्र, कोई जन्म प्रमाण पत्र, कोई आधिकारिक वजूद नहीं है।

इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं, बच्चे, धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक शामिल हैं। इस पहचानहीनता के कारण ये लोग शोषण, गरीबी और अपराध के दुष्चक्र में फंसे हुए हैं। यूनिसेफ और कुछ सामाजिक संगठन ज़रूर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन चुनौती बहुत बड़ी है।

यह कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि उन करोड़ों टूटे सपनों की है जो सिर्फ एक पहचान के लिए तरसते हैं। पढ़िए — पाकिस्तान के अदृश्य नागरिकों की ये कड़वी और करुण सच्चाई।

ये कड़वी सच्चाई है कि पाकिस्तान में 4.5 करोड़ लोग अपनी पहचान मोहताज़ हैं, वे 'भूत' बनकर किसी तरह से जिंदगी जिए जा रहे हैं। शिक्षा, नौकरी और सरकारी मदद से वंचित इन अदृश्य नागरिकों का जीवन नारकीय हो गया है। जानिए कैसे यूनिसेफ इनकी मदद कर रहा है और इनके सामने क्या हैं चुनौतियां।

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पाकिस्तान में एक ऐसी हकीकत है, जो चौंकाने वाली और दिल दहला देने वाली है। यहां लगभग 4.5 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनका कोई आधिकारिक वजूद नहीं है। न उनके पास पहचान पत्र है, न जन्म प्रमाण पत्र। सरकार की नजर में वे 'भूत' हैं, जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं। सोचिए, एक ऐसी जिंदगी जहां आपको कोई पहचानता ही न हो, जहां आपके पास कोई अधिकार न हो। यह एक ऐसी त्रासदी है जो लाखों जिंदगियों को अंधेरे में धकेल रही है।

पहचान का संकट: क्यों इतने लोग बेनाम हैं?

यह सुनकर शायद आपको हैरानी हो, लेकिन यह पाकिस्तान की कड़वी सच्चाई है। इन 4.5 करोड़ लोगों के पास राष्ट्रीय पहचान पत्र (NIC) नहीं है। बिना पहचान पत्र के वे न तो स्कूल जा सकते हैं, न नौकरी ढूंढ सकते हैं और न ही किसी सरकारी योजना का लाभ ले सकते हैं। उनका जीवन एक चक्रव्यूह में फंसा हुआ है, जहां हर कदम पर उन्हें अपनी 'पहचान' की कमी महसूस होती है। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत स्तर पर दुखद है, बल्कि देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में भी बड़ी बाधा है।

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"पाकिस्तान के 4.5 करोड़ जिंदा भूत! पढ़िए — 'अदृश्य' नागरिकों की दर्दनाक दास्तां" | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

शिक्षा और रोज़गार से वंचित: एक दुष्चक्र

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कल्पना कीजिए एक बच्चे की, जो स्कूल जाने का सपना देखता है, लेकिन पहचान पत्र न होने के कारण उसे दाखिला नहीं मिलता। या एक युवा, जो मेहनत करके कुछ कमाना चाहता है, लेकिन कोई कंपनी उसे बिना पहचान के नौकरी नहीं देती। ये 'अदृश्य' नागरिक एक ऐसे दुष्चक्र में फंस गए हैं, जहां शिक्षा और रोजगार दोनों उनके लिए दूर के सपने बन गए हैं। वे न तो अपनी किस्मत बदल सकते हैं और न ही समाज में कोई जगह बना सकते हैं।

शिक्षा का अभाव: बिना पहचान पत्र के स्कूल में दाखिला असंभव।

रोजगार के अवसर नहीं: कंपनियां और संस्थान बिना वैध पहचान के नौकरी नहीं देते।

स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित: सरकारी अस्पतालों में इलाज मिलना मुश्किल।

सरकारी योजनाओं से बाहर: गरीबी और अभाव में भी कोई मदद नहीं।

यूनिसेफ की उम्मीद की किरण: बदलती जिंदगियां

इस गंभीर समस्या के बीच, यूनिसेफ (UNICEF) एक उम्मीद की किरण बनकर सामने आया है। वे इन 'अदृश्य' नागरिकों की पहचान बनाने के लिए काम कर रहे हैं। यूनिसेफ ऐसे समुदायों में पहुंच रहा है, जहां लोगों के पास पहचान पत्र नहीं हैं, और उन्हें यह बनवाने में मदद कर रहा है। यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यूनिसेफ के प्रयास रंग ला रहे हैं। वे लोगों को शिक्षित कर रहे हैं और सरकारी एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर रहे हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों को उनकी पहचान मिल सके।

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यह सिर्फ एक पहचान पत्र की बात नहीं है, यह उनके अधिकारों की बात है। पहचान मिलने से उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के अवसर मिलेंगे। वे समाज का एक सक्रिय हिस्सा बन पाएंगे और अपने जीवन को बेहतर बना पाएंगे।

मुख्यधारा में लाने की चुनौतियां और आगे की राह

यूनिसेफ के प्रयासों के बावजूद, चुनौतियां अभी भी बहुत हैं। जागरूकता की कमी, दूरदराज के इलाकों तक पहुंचना और सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलता कुछ ऐसी बाधाएं हैं जिनसे निपटना होगा। पाकिस्तान सरकार को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। एक राष्ट्रीय अभियान चलाकर इन 4.5 करोड़ लोगों को मुख्यधारा में लाना होगा।

यह सिर्फ कागजों पर एक नंबर नहीं है; यह लाखों इंसानों की बात है, जिनके पास अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है। जब तक हर नागरिक को उसकी पहचान नहीं मिल जाती, पाकिस्तान के विकास की राह अधूरी रहेगी। इस मुद्दे पर दुनिया भर का ध्यान आकर्षित करना और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन प्राप्त करना भी महत्वपूर्ण है।

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