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Thousand Cuts Policy की आग में खुद झुलस रहा पाकिस्तान, क्या है प्रॉक्सी वॉर? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । एक कहावत है, 'बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होये'। यह कहावत इन दिनों पाकिस्तान पर पूरी तरह से फिट बैठ रही है। उसने भारत को अस्थिर, कमजोर करने और 'हजार छोटे घाव देकर' खून बहाने के लिए जो रणनीति बनाई थी, आज वह उन्हीं की लपटों में खुद झुलस रहा है।
यह कहानी है पाकिस्तान की उस 'हजार जख्म' की नीति की, जिसने उसे फर्श से अर्श पर नहीं, बल्कि गहरे गड्ढे में पहुंचा दिया है। कभी पाकिस्तान के सैन्य और खुफिया नेतृत्व को यह भरोसा था कि सीधे युद्ध में भारत को हराना नामुमकिन है, तो क्यों न 'छुपी हुई जंग' लड़ी जाए। उनकी रणनीति थी आतंकवाद को सरकारी संरक्षण देना, प्रॉक्सी वॉर छेड़ना और दुनिया को कश्मीर के नाम पर गुमराह करना।
लेकिन आज, तस्वीर 180 डिग्री उलट चुकी है। भारत पहले से कहीं ज्यादा मज़बूत, आत्मविश्वासी और तकनीकी रूप से सक्षम है, जबकि पाकिस्तान अपनी ही बनाई दलदल में फंस गया है।
साल 1980 का वो सपना जो अब बन गया है दुःस्वप्न
'हजार घाव' की पाकिस्तानी नीति कोई नई नहीं है। इसका बीज साल 1980 के दशक में तत्कालीन तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक़ ने बोया था। उनका सपना था कि भारत को 'धीरे-धीरे कमजोर' किया जाए, उसे आर्थिक और सामाजिक रूप से इतना अस्थिर कर दिया जाए कि वह खुद टूट जाए। रणनीति का आधार सीधे युद्ध से बचना। मुख्य हथियार कश्मीर में आतंकवाद को हवा देना, सीमा पार से घुसपैठ और भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दुष्प्रचार।
नतीजा एक पूरी पीढ़ी को आतंक की नर्सरी में पाला गया, जिसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जाना था। पाकिस्तान यह भूल गया कि आतंक एक सांप की तरह होता है जिसे पाला नहीं जा सकता, वह एक दिन पलटकर काटता जरूर है। उसकी दशकों पुरानी यह निवेश अब बर्बादी का सबब बन चुका है।
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भारत की बदलती रणनीति 'आंख के बदले आंख'
पाकिस्तान ने सालों तक मान लिया था कि भारत सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर शिकायत करेगा, लेकिन सीमा पार कोई ठोस कार्रवाई नहीं करेगा। साल 2014 के बाद, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में एक निर्णायक बदलाव आया। पुरानी 'रणनीतिक संयम' की नीति को त्याग कर 'निर्णायक और दंडात्मक प्रतिक्रिया' की नीति अपनाई गई। यह परिवर्तन तब स्पष्ट हुआ जब भारत ने उरी और पुलवामा हमलों के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसी कार्रवाई की।
यह संदेश सीधा और स्पष्ट था अब आतंक की जन्मभूमि को वहीं जाकर नष्ट किया जाएगा, चाहे वह पाकिस्तान के भीतर क्यों न हो।
'ऑपरेशन सिंदूर' : जब पाकिस्तान को उसकी असली जगह दिखाई गई
'ऑपरेशन सिंदूर' भारतीय सेना के बढ़े हुए आत्मविश्वास और क्षमता का प्रतीक है। यह सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक रणनीतिक घोषणा थी कि पाकिस्तान अब भारत को 'ब्लैकमेल' नहीं कर सकता। ऑपरेशन सिंदूर की पहचान टारगेटेड स्ट्राइक PoK के आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करना।
गहन प्रहार: पाकिस्तान की सीमा के भीतर गहराई तक जाकर हमला करना।
मनोबल तोड़ना: पाकिस्तान की सेना और उसके सरपरस्त आतंकी संगठनों के हौसले पस्त करना।
पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में किया गया यह ऑपरेशन, पाकिस्तान के लिए एक कड़वी सच्चाई थी कि भारत अब सिर्फ defensive रक्षात्मक नहीं, बल्कि Proactive सक्रिय बन चुका है। अब पाकिस्तान को अपने ही पाले हुए आतंकियों से अपनी ज़मीन बचानी थी।
खुद के जाल में उलझता पाकिस्तान 'दोहरी जंग' का संकट
पाकिस्तान की 'हजार जख्म' नीति का सबसे बड़ा साइड-इफ़ेक्ट यह है कि आज वह भारत से नहीं, बल्कि अपने ही भीतर कई मोर्चों पर जूझ रहा है। उसकी सीमाएं अब सिर्फ भारत से नहीं, अफगानिस्तान और ईरान से भी लहूलुहान हैं।
संकट के प्रमुख मोर्चे: अफगान सीमा तालिबान
जिस तालिबान को पाकिस्तान ने दशकों तक 'रणनीतिक गहराई' Strategic Depth के लिए पाला, वह अब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान TTP के नाम पर उसी की सेना पर हमला कर रहा है। विश्वासघात की यह चोट सबसे गहरी है।
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ईरान सीमा: बलूचिस्तान
बलूचिस्तान नेशनलिस्ट आर्मी BLA का विद्रोह लगातार बढ़ रहा है। पाकिस्तान की सेना और संसाधनों का बड़ा हिस्सा अब बलूचिस्तान में आंतरिक सुरक्षा पर खर्च हो रहा है।
PoK में गुस्सा: पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर PoK में बिजली, महंगाई और बुनियादी सुविधाओं के अभाव को लेकर जनता का गुस्सा फूट पड़ा है। वे अब खुलेआम पाकिस्तान की सेना के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं।
यह 'दोहरी जंग' Two-Front War पाकिस्तान को अंदर से खोखला कर रही है। वह एक ऐसी नाव में सवार है जो हर तरफ से लीक हो रही है।
पाक सेना की गिरती साख और तालिबान का गुरिल्ला वार
पाकिस्तान की सेना, जिसे हमेशा देश की 'अस्ली ताकत' माना जाता था, आज सवालों के घेरे में है। फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के नेतृत्व में भी सेना तालिबान, TTP और BLA के खिलाफ कोई ठोस जीत हासिल नहीं कर पा रही है। तालिबान की जंग पारंपरिक नहीं है। वे गुरिल्ला वारफेयर में माहिर हैं। वे नियमों से नहीं, मौकों से लड़ते हैं और पाकिस्तान की आधुनिक सेना को अपनी ही ज़मीन पर संघर्ष करना पड़ रहा है।
पाकिस्तान की सबसे बड़ी भूल यह थी कि उसने आतंक को धर्म और राष्ट्रवाद की आड़ में पाला, लेकिन यह भूल गया कि आतंक का कोई दोस्त नहीं होता।
ढहती अर्थव्यवस्था: जनता का टूटता विश्वास
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस समय वेंटिलेटर पर है। यह सिर्फ सैन्य संकट नहीं, बल्कि एक गहरा आर्थिक और सामाजिक संकट भी है।
आर्थिक बदहाली: विदेशी मुद्रा भंडार ख़त्म होने की कगार पर है। महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर है।
IMF का शिकंजा: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष IMF की सख्त शर्तें जनता के लिए 'नए जख्म' छोड़ रही हैं, सब्सिडी खत्म हो रही है और टैक्स बढ़ रहे हैं।
भारत से तुलना: जहां भारत तेज़ी से निवेश, तकनीक और 'आत्मनिर्भरता' के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, वहीं पाकिस्तान विदेशी मदद के बिना एक कदम भी नहीं चल पा रहा है।
जनता का भरोसा सरकार और सेना दोनों से उठ चुका है। उन्हें अब यह साफ दिख रहा है कि उनके नेताओं ने विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के बजाय सिर्फ 'भारत-विरोध' की नीति पर पैसा और ऊर्जा बर्बाद की है।
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भारत की मजबूती वैश्विक मंच पर पाकिस्तान का एकाकीपन
भारत ने अपनी कूटनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में बड़ा बदलाव कर पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया है।
आतंक पर ज़ीरो टॉलरेंस: भारत ने सुनिश्चित किया कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद पर चर्चा हो और पाकिस्तान की भूमिका बेनकाब हो।
FATF का दबाव: फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स FATF की निगरानी सूची का डर पाकिस्तान पर हमेशा बना रहता है, जिसने उसकी आर्थिक मदद पर रोक लगाई है।
स्पष्ट संदेश: भारत का संदेश साफ है- 'हम पहले वार नहीं करेंगे, लेकिन अगर किया गया तो जवाब ऐसा होगा कि दूसरा मौका नहीं मिलेगा।'
पाकिस्तान की भूल यही थी कि उसने पिछले 75 वर्षों में अपनी सारी ऊर्जा सिर्फ भारत को नीचा दिखाने में लगा दी। अगर उसने उसी जोश को शिक्षा, विकास और स्थिरता में लगाया होता, तो आज उसका भविष्य कुछ और होता।
यह कहानी केवल दो देशों की प्रतिद्वंद्विता की नहीं है, बल्कि यह रणनीति बनाम जुनून की कहानी बन गई है।
भारत ने सोचा, सीखा और आगे बढ़ा, जबकि पाकिस्तान अपने ही भ्रमों और जुनूनी विरोध में बिखर गया। भारत आज आत्मविश्वास से भरा है, जबकि पाकिस्तान अपनी 'हजार ज़ख्मों' की नीति के जख्म खुद सह रहा है।
सचमुच, जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वह खुद उसमें गिरता है। पाकिस्तान के लिए यह अब कड़वी सच्चाई बन चुकी है।
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