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Pakistan में बाढ़ और महंगाई का कहर: दिहाड़ी मजदूरों के लिए कैसे मुहाल हुई रोटी? | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पाकिस्तान में सियासी उठापटक और बाढ़ की मार के बीच अब आम जनता की थाली से रोटी और चीनी भी गायब हो रही है। देश में आटे और चीनी की कीमतों ने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो गया है। जबकि सत्ताधारी और रसूखदार नेताओं की जिंदगी पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा। क्या है पाकिस्तान के इस बड़े संकट की वजह, और कैसे आम जनता की थाली खाली हो रही है? पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट।
समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, पाकिस्तान में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। राजनीतिक अस्थिरता, भीषण बाढ़ और आतंकी गतिविधियों से जूझ रहे इस मुल्क में अब आटे और रोटी की बढ़ती कीमतों ने जनता की कमर तोड़ दी है। आलम ये है कि दिहाड़ी मजदूर और गरीब तबके के लोग अपनी रोजमर्रा की रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं, जबकि सरकार और बड़े नेता अपनी सियासत में मस्त हैं।
हाल ही में चीनी की कीमतों में ऐतिहासिक उछाल के बाद अब आटे की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिससे आम पाकिस्तानी नागरिक त्राहिमाम कर रहा है।
रोटी-नाश्ते के लिए भी संघर्ष
कराची में तंदूर और होटल चलाने वालों ने नान, शीरमाल और चपाती की कीमतों में भारी बढ़ोतरी कर दी है। जो चपाती पहले 11-12 रुपये में मिलती थी अब उसकी कीमत 14-15 रुपये हो गई है। जबकि, 180 ग्राम का नान 25 रुपये में बिक रहा है।
सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी मजदूरों पर हो रहा है, जो अक्सर इन्हीं छोटे भोजनालयों से खाना खाते हैं।
आटा और चीनी की कीमतें बेकाबू: ब्रांडेड आटे की कीमतों में सिर्फ एक महीने में 200 रुपये का उछाल आया है, 5 किलो का बैग 500 रुपये से बढ़कर 700 रुपये हो गया है।
चीनी की कड़वाहट: चीनी की कीमतें 180 रुपये से बढ़कर 200 रुपये प्रति किलो हो गई हैं।
घी भी महंगा: 16 किलो घी का टिन अब 6,500 की जगह 7,900 रुपये में मिल रहा है।
बाढ़ नहीं, जमाखोरी है असली विलेन
पाकिस्तानी बाजार विश्लेषकों का मानना है कि इस गेहूं संकट की वजह हाल ही में आई बाढ़ नहीं है। बल्कि, जमाखोरों और बड़े व्यापारियों ने गेहूं की जमाखोरी करके कृत्रिम कमी पैदा कर दी है, ताकि बढ़ी हुई कीमतों से मुनाफा कमा सकें।
पाकिस्तान में नई फसल मार्च-अप्रैल में आ गई थी, लेकिन कालाबाजारी और मुनाफाखोरी के चलते कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जिससे आम जनता की थाली खाली हो रही है। सत्ताधारी और आम जनता के बीच की खाई एक तरफ पाकिस्तानी सरकार और राजनेता सत्ता की लड़ाई में व्यस्त हैं, तो दूसरी तरफ आवाम अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रही है।
देश में महंगाई चरम पर है, लेकिन सत्ताधारी वर्ग के ऐशो-आराम में कोई कमी नहीं आई है। पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था सालों से आईएमएफ के बेलआउट पैकेज पर निर्भर है। राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के कारण देश की अर्थव्यवस्था का सुधार मुश्किल होता जा रहा है।
पाकिस्तान की जीडीपी, लेकिन जनता की थाली खाली
आईएमएफ के अनुसार, पाकिस्तान की जीडीपी 2.6% की दर से बढ़ी है और इसका आकार 373.08 बिलियन डॉलर हो गया है। लेकिन जीडीपी के आंकड़ों के बावजूद, बढ़ती महंगाई, विदेशी कर्ज और सत्ता की लड़ाई आम नागरिकों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रही है।
यही वजह है कि आर्थिक आंकड़ों और जमीनी हकीकत के बीच एक बड़ी खाई दिख रही है, जहां अमीर और रसूखदार लोगों की जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ रहा, लेकिन गरीब जनता एक-एक रोटी के लिए तरस रही है।
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