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पाकिस्तान-सऊदी अरब में NATO जैसी डील : भारत के लिए क्या हैं इसके मायने? | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए एक ऐतिहासिक रक्षा समझौते ने वैश्विक कूटनीति में खलबली मचा दी है। यह समझौता सिर्फ सैन्य सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि एक-दूसरे की सुरक्षा की सीधी गारंटी देता है। आइए जानते हैं कि इस समझौते के क्या मायने हैं और भारत पर इसका क्या असर होगा। भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान और सउदी अरब डील के बारे में बताया है कि इसकी खबर हमें है और हम पूरा अध्ययन कर रहे हैं। भारत अपने देश की संप्रभुता और सुरक्षा को भली भांति समझता और जानता है।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुआ रक्षा समझौता किसी साधारण डील से कहीं बढ़कर है। यह दो मुस्लिम देशों के बीच एक ऐतिहासिक कदम है, जिसमें एक-दूसरे की संप्रभुता और सुरक्षा की सीधी गारंटी दी गई है।
कई विशेषज्ञ इसे 'मुस्लिम नाटो' की दिशा में पहला ठोस कदम मान रहे हैं, जो पश्चिम से अपनी दूरी बना सकता है। यह समझौता न सिर्फ मध्य-पूर्व बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन को बदल सकता है।
आखिर यह समझौता इतना खास क्यों है?
इस समझौते की सबसे खास बात यह है कि अगर किसी एक देश पर हमला होता है तो दूसरा उसे अपने ऊपर हमला मानेगा। यह एक ऐसी शर्त है जो आम तौर पर सिर्फ नाटो जैसे सैन्य गठबंधनों में ही देखी जाती है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच हुई मुलाकात के बाद यह घोषणा की गई है।
हालांकि समझौते की विस्तृत शर्तें अभी सार्वजनिक नहीं हुई हैं, लेकिन इसका मकसद दोनों देशों के बीच रक्षा, सुरक्षा, और खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान को गहरा करना है।
सऊदी और पाकिस्तान के रिश्ते: एक लंबा इतिहास
पाकिस्तान और सऊदी अरब का रिश्ता दशकों पुराना है। सऊदी अरब ने हमेशा से पाकिस्तान को आर्थिक और राजनीतिक रूप से समर्थन दिया है। चाहे कश्मीर मुद्दा हो या फिर आर्थिक संकट, सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है।
बदले में, पाकिस्तान ने सऊदी अरब को सैन्य प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता दी है। इस नए समझौते से यह सहयोग और मजबूत होगा, खासकर ऐसे समय में जब सऊदी अरब का ईरान के साथ तनाव लगातार बढ़ रहा है।
यह समझौता कैसे बदल सकता है समीकरण?
ईरान पर दबाव: यह समझौता ईरान जैसे देशों के लिए एक कड़ा संदेश है। सऊदी अरब और ईरान के बीच की तनातनी जगजाहिर है। पाकिस्तान जैसे शक्तिशाली सहयोगी को साथ लेकर सऊदी अरब इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
पाकिस्तान की आर्थिक और सैन्य मजबूती: पाकिस्तान के लिए यह समझौता आर्थिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर फायदेमंद है। सऊदी अरब से मिलने वाला समर्थन पाकिस्तान को उसकी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा।
पश्चिमी देशों पर निर्भरता में कमी: कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समझौता मुस्लिम देशों के बीच एक ऐसे गठबंधन की शुरुआत है जो पश्चिमी शक्तियों, खासकर अमेरिका, पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं।
भारत के लिए क्या हैं इसके मायने?
यह समझौता भारत के लिए निश्चित तौर पर चिंता का विषय है। पाकिस्तान की सैन्य ताकत में कोई भी बढ़ोतरी सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। यदि पाकिस्तान को सऊदी अरब का पूरा समर्थन मिलता है, तो यह क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ा सकता है।
कश्मीर और सीमा विवादों के मद्देनजर, भारत को इस नई स्थिति पर बारीकी से नजर रखनी होगी। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल प्रतीकात्मक है, जिसका मकसद ईरान को संदेश देना है, वहीं कुछ इसे मुस्लिम देशों के बीच एक बड़ी रणनीति का हिस्सा मानते हैं।
इसका जवाब तो आने वाला वक्त ही देगा, लेकिन एक बात तय है कि इस समझौते ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है और अब हर कोई यह जानने को उत्सुक है कि आगे क्या होगा। आपका इस खबर पर क्या नजरिया है? क्या आपको लगता है कि यह सच में 'मुस्लिम नाटो' की शुरुआत है? अपने विचार नीचे कमेंट में साझा करें।
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