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स्वतंत्र बलूचिस्तान : पाकिस्तान के जुल्मों की दास्तां का जीता-जागता उदाहरण

बलूचिस्तान में लंबे समय से आवाज उठ रही थी कि ‘आतंकवाद जैसे कैंसर को थोपने वाले पाकिस्तान से मुक्त हुआ जाए’। बलूचिस्तान, पाकिस्तान के पश्चिमी भाग में स्थित वह क्षेत्र है जहां सालों से आज़ादी की चिंगारी सुलग रही है।

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Mukesh Pandit
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बलोच लेखक मीर यार का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें वो भारत की आतंकवाद के ख़िलाफ़ की गई जवाबी कार्रवाई का समर्थन कर रही हैं तो अपने लोगों से पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादियों के ख़िलाफ़ नैतिक, कूटनीतिक, राजनीतिक और अपने वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए पूरी दम से लड़ने का आह्वान करती नजर आ रही हैं। यह इस बात की गवाही है कि दहशतगर्दों के खिलाफ भारत ने जो बिगुल बजाया है वो आतंक की फैक्ट्री में आखिरी कील साबित होगा। 

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Photograph: (फाइल फोटो)

क्या यह भारत की रणनीतिक बढ़त है

बलूचिस्तान में लंबे समय से आवाज उठ रही थी कि ‘आतंकवाद जैसे कैंसर को थोपने वाले पाकिस्तान से मुक्त हुआ जाए’। बलूचिस्तान, पाकिस्तान के पश्चिमी भाग में स्थित वह क्षेत्र है जहां सालों से आज़ादी की चिंगारी सुलग रही है। भारत द्वारा आतंकवाद को दिए जा रहे मुंहतोड़ जवाब के चलते यह चिंगारी शोले में बदलती नज़र आ रहा है। रणनीतिक तौर पर भारत के लिए ये बड़ी बढ़त है। balochistan news | balochistan liberation army | Balochistan history | Balochistan conflict
mir yar balooch

2016 में ही दे दिया था संकेत

आज पाकिस्तान जिस तरह से अपने घर में ही घिर गया है उसके पीछे आतंक के ख़िलाफ़ दृढ़ इच्छा शक्ति है। हाल के वर्षों में भारत ने बलूचिस्तान मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना शुरू किया। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बलूचिस्तान का उल्लेख करना एक कूटनीतिक संकेत था कि भारत अब पाकिस्तान के आंतरिक मुद्दों को वैश्विक पटल पर उजागर करेगा।

दो मोर्चों की लड़ाई में घिरा पाकिस्तान

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पहलगाम की कायरतापूर्ण घटना के बाद भारत ने पाकिस्तान की जिस तरह हर नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया है, उससे बलूचिस्तान में सक्रिय विद्रोही समूह जैसे बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलोच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलोचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) पाकिस्तान की सेना और सी-पैक (CPEC) के हौसले बुलंद हुए हैं। भारत के लिए यह रणनीतिक रूप से लाभदायक साबित होगा, क्योंकि इससे पाकिस्तान की सेना को पश्चिमी सीमा पर व्यस्त रखा जा सकता है, जिससे वह कश्मीर या पंजाब में पूर्ण फोकस न कर पाए। बलूच स्वतंत्रता सेनानियों का यह संघर्ष पाकिस्तान के लिए एक ‘दो मोर्चों की लड़ाई’ बन चुका है, जो भारत के लिए सामरिक रूप से अनुकूल है।

पाकिस्तान अब तक बलूचिस्तान को कुचलता रहा है

पूरी दुनिया वाकिफ है कि 1948 से अब तक बलूचिस्तान, पाकिस्तान की सैन्य दमन नीति का शिकार रहा है। पाकिस्तान ने बलूच जनता के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों को न केवल छीना है बल्कि हर आवाज को बेरहमी से दबाया है। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, बलूचिस्तान में पिछले दो दशकों में हज़ारों लोग लापता हुए हैं। पाकिस्तान की ISI पर बलूच छात्रों, लेखकों और कार्यकर्ताओं को अगवा करने और ‘एनकाउंटर’ में मारने के आरोप हैं। कई बार सामूहिक कब्रें भी मिली हैं। वहां न स्वास्थ्य सेवाएं हैं, न शिक्षा का ढांचा और न ही मूलभूत सुविधाएं। प्राकृतिक संसाधनों जैसे गैस, कोयला और खनिजों से भरपूर होने के बावजूद बलूच लोग गरीबी में जी रहे हैं, जबकि इन संसाधनों से बाकी पाकिस्तान समृद्ध हो रहा है।

बलूचिस्तान का 9000 साल पुराना इतिहास

बलूचिस्तान का इतिहास 9,000 साल पुराना माना जाता है। यह क्षेत्र प्राचीन काल में मकरान और गंधार सभ्यता का भाग था। सिकंदर भी इस क्षेत्र से होकर भारत आया था। समय के साथ यह क्षेत्र अफ़ग़ानों, ईरानियों और बाद में अंग्रेजों के नियंत्रण में आया। बलूच लोग अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के लिए सदियों से संघर्ष करते आए हैं। 17वीं और 18वीं शताब्दी में यहां कालात राज्य का गठन हुआ, जिसने कई दशकों तक शासन किया। हालांकि, ब्रिटिश साम्राज्य ने धीरे-धीरे इसे अधीन कर लिया।

भारत का हिस्सा रहा है बलूचिस्तान 

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इतिहास में बलूचिस्तान सीधे तौर पर ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा था। 1876 में ब्रिटिश राज ने ‘खान ऑफ कालात’ के साथ एक संधि कर बलूचिस्तान को एक रियासत के रूप में अधीनस्थ बना लिया था। यह रियासत भारतीय उपमहाद्वीप के नक्शे पर स्थित थी और इसे ब्रिटिश इंडिया की प्रोटेक्टर स्टेट माना जाता था। यह क्षेत्र भले ही स्वतंत्र रूप से शासित था लेकिन इसकी विदेशी नीति और सुरक्षा पर ब्रिटिश कंट्रोल था। इसलिए जब 1947 में भारत विभाजन हुआ, बलूचिस्तान की स्थिति भी अन्य रियासतों की तरह थी या तो भारत में विलय हो या पाकिस्तान में।

बलूचिस्तान भारत से कैसे अलग हुआ?

1947 में भारत विभाजन के समय, बलूचिस्तान की रियासत ‘खान ऑफ कालात’ ने खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया। 15 अगस्त 1947 को कालात राज्य ने स्वतंत्रता की घोषणा की और पाकिस्तान में शामिल होने से इनकार कर दिया। हालांकि, पाकिस्तान ने खान पर भारी दबाव डाला और 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान पर हमला कर उसे जबरन मिला लिया। इसे बलूच राष्ट्रवादियों ने ‘बलूचिस्तान पर कब्जा’ बताया और यहीं से स्वतंत्रता संग्राम की नींव पड़ी।

पाकिस्तान ने कैसे बलूचिस्तान पर कब्जा किया?

पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पहले बलूचिस्तान को एक स्वायत्त राज्य के रूप में मान्यता दी थी लेकिन कालात राज्य के स्वतंत्र रहने की घोषणा के बाद जिन्ना और पाकिस्तान की सेना ने राजनीतिक दबाव के साथ-साथ सैन्य हस्तक्षेप शुरू कर दिया। 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को जबरन अपने साथ मिला लिया। खान ऑफ कालात ने इस विलय का विरोध किया लेकिन अंततः उन्हें मजबूरन पाकिस्तान में विलय स्वीकार करना पड़ा। इसके बाद बलूच नेताओं और जनजातियों में असंतोष फैल गया और विद्रोह शुरू हुआ।

बलूचिस्तान का मौजूदा स्वतंत्रता आंदोलन

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बलूचिस्तान में अब तक पांच बड़े विद्रोह हो चुके हैं। 1948, 1958, 1963, 1973 और अब 2004 से जारी चल रहा सबसे लंबा और संगठित आंदोलन है। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA), और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे संगठन इस संघर्ष को चला रहे हैं। इनका मकसद है बलूचिस्तान की स्वतंत्रता। ये संगठन पाकिस्तान के आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक ढांचों को निशाना बना रहे हैं। खासकर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का जबरदस्त विरोध है क्योंकि बलूच राष्ट्रवादियों का मानना है कि यह परियोजना उनकी ज़मीन पर विदेशी कब्जे को मजबूत कर रही है। 2021 में यूनाइटेड नेशंस और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने बलूचिस्तान की स्थिति पर चिंता जताई थी। भारत में भी कई बार इन आंदोलनकारियों को नैतिक समर्थन दिए जाने की आवाज़ उठी है।

पाकिस्तान की असलियत दिखाता बलूचिस्तान

बलूचिस्तान केवल पाकिस्तान का एक उपेक्षित प्रांत नहीं है बल्कि मानवता के लिए खतरा बनते जा रहे पाकिस्तान की असल तस्वीर दिखाता एक जीता जागता उदाहरण है। पाकिस्तान के ऐतिहासिक अन्याय, सैन्य दमन और संसाधनों की लूट ने वहां के लोगों में विद्रोह की आग जलाई है। भारत के लिए यह एक कूटनीतिक अवसर है, जहां वह पाकिस्तान के अंदरूनी विरोध को वैश्विक मंच पर उजागर कर सकता है। हालांकि किसी देश की आंतरिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप की नीति भारत की नहीं है लेकिन बलूचिस्तान की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार की दृष्टि से हस्तक्षेप योग्य बन चुकी है। दुनिया को अब इस संघर्ष को केवल ‘आंतरिक मामला’ नहीं मानना चाहिए, बल्कि इसे इंसानियत और न्याय का प्रश्न मानकर समर्थन देना चाहिए।

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