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Palestinian State Recognition : फिलिस्तीन के पक्ष में दुनिया - क्या बदलेगी तस्वीर?

इजरायल की सैन्य कार्रवाई गाजा में जारी है दूसरी ओर फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाले देशों की संख्या लगातार बढ़ रही है। फिलिस्तीन के पक्ष में बढ़ते समर्थन ने कई सवालों को जन्म दिया है।

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Manish kumar
PALESTINE

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । फिलिस्तीन के लिए दुनिया भर में समर्थन बढ़ रहा है। पिछले चार दिनों में कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस समेत कुछ अन्य देशों ने फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र, संप्रभु राष्ट्र के तौर पर मान्यता दी है। फिलिस्तीन के पक्ष में जब भी वैश्विक स्तर पर समर्थन मजबूत होता है तो इजरायल समर्थक अक्सर इजरायल-अमेरिकी गठबंधन की दलील देते हैं। वे दावा करते हैं कि जब तक इजरायल के साथ वाशिंगटन खड़ा है जमीन पर फिलिस्तीन राज्य नामुमकिन है।

इजरायल समर्थकों के दावे में दम है। इसे कुछ यूं भी समझा जा सकता है कि सोमवार को संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में इजरायल और फिलिस्तीन के रूप में 'दो राष्ट्र समाधान' पर उच्चस्तरीय चर्चा हुई लेकिन इजरायल पर कोई असर नहीं पड़ा। उसकी सैन्य कार्रवाई गाजा में जारी है। 

बीबीसी ने मंगलवार को बताया कि इजरायल की सेना गाजा शहर पर पूर्ण रूप से कब्जा करने के लिए अपना जमीनी हमला जारी रखे हुए है। रिपोर्ट के मुताबिक चश्मदीदों का कहना है कि इजरायली टैंक उत्तर और दक्षिण से शहर के केंद्र में घुस आए हैं। 

यह स्पष्ट करता है फिलहाल इजरायल गाजा को लेकर अपनी रणनीति में कोई बदलाव करने नहीं जा रहा है। लेकिन सच यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 156 (लगभग 80%) देश फिलिस्तीन को एक मुल्क के तौर पर मान्यता दे चुके हैं। लगातार बढ़ते समर्थन से इजरायल गहरे नैतिक दबाव में है। 

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ऐसे में इस सवाल पर गंभीरता के साथ आकलन करने की जरुरत है कि फिलिस्तीनियों द्वारा देखा गया आजाद मुल्क का सपना सच साबित होगा या अमेरिका-इजरायल गठबंधन के मंसूबे जीतेंगे। 

आइए सबसे पहले जानते हैं कि विभिन्न देशों के समर्थन के बावजूद क्या नहीं बदलने वाला है : - 

क्या नहीं बदलेगा? 

जमीनी हालात : इजरायल गाजा में सैन्य अभियान जारी रखेगा। इजरायल वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी जेरूसलम से कब्जा छोड़ने वाला है। 

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इजरायल-अमेरिकी संबंध : अमेरिका हर तरह से इजरायल के साथ खड़ा है। दोनों देशों के बीच कई कारणों से इतने गहरे संबंध है जिसके उदाहरण विश्व राजनीति में कम ही मिलते हैं। वित्तीय और सैन्य सहायता के अलावा, अमेरिका बड़े पैमाने पर इजरायल को राजनीतिक समर्थन प्रदान करता है। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने वीटो पावर का इस्तेमाल 83 बार किया, जिसमें से 42 बार इजरायल की निंदा करने वाले प्रस्तावों को रोकने के लिए यह ताकत इस्तेमाल की गई। 1991 से 2011 के बीच, अमेरिका ने 24 बार वीटो का इस्तेमाल किया, जिसमें से 15 बार इजरायल को बचाने के लिए था। 2021 तक, अमेरिका ही सुरक्षा परिषद का एकमात्र स्थायी सदस्य है जिसने गोलान हाइट्स को इजरायल का गैर-अधिकृत संप्रभु क्षेत्र माना, जेरूसलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी, और 2018 में अपनी एम्बेसी को तेल अवीव से वहां ट्रांसफर किया। अमेरिका ने इजरायल को प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी के रूप में भी नामित किया है।

यूएन सदस्यता : फिलिस्तीन अभी भी यूएन का पूर्णकालिक सदस्य नहीं है। इसे 2012 से नॉन-मेंबर ऑब्जर्वर स्टेट (non-member observer state) का दर्जा प्राप्त है। इसके बाद इसे और भी अधिकार मिले हैं लेकिन पूर्ण सदस्यता का लक्ष्य अभी दूर है। 

यूएन में पूर्ण सदस्यता की राह में सबसे बड़ी बाधा है सुरक्षा परिषद में अमेरिका की वीटो पावर। सुरक्षा परिषद में किसी प्रस्ताव को पारित होने के लिए परिषद के कम से कम नौ सदस्यों का समर्थन जरूरी है। इसके साथ ही स्थायी सदस्यों में से किसी को भी अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बता दें चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं। 

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यूएन सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में केवल अमेरिका ही फिलिस्तीनी राज्य का विरोध करता है। हर बार वह इसके लिए कोई न कोई तर्क जुटा लेता है। पिछले साल 18 अप्रैल को भी अमेरिका ने फिलिस्तीनी राज्य के दर्ज की मांग वाले प्रस्ताव पर वीटो लगा दिया था। 

क्या बदलेगा : 


तमाम चुनौतियों के बावजूद सच यह भी है कि फिलिस्तीनी कौम का आजादी का सपना मर नहीं सकता है। आज भले ही अमेरिकी की पीठ पर सवार होकर इजरायल अपनी मनमानी कर ले लेकिन हालात फिलिस्तीनियों के पक्ष में बदलेंगे ऐसा मानने कई ठोस वजहें हैं : - 

1-फिलिस्तीन को विश्व स्तर पर मिल रही मान्यताएं उसे अतंरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करेंगी। अमेरिका के कई करीबी सहयोगी देशों ने भी इस मुद्दे पर फिलिस्तीन का साथ दिया है। इससे इजरायल पर दो-राष्ट्र समाधान (टू-स्टेट सॉल्यूशन) के लिए दबाव बढ़ेगा, और उसकी अवैध बस्तियों (सेटलमेंट्स) पर सवाल उठेंगे। कई देश गाजा युद्ध शुरू होने के बाद से अपने राजनयिकों को वापस बुला चुके हैं। यह राजनयिक बहिष्कार अब और बढ़ सकता है। 

2-फिलिस्तीन की वैश्विक स्थिति मजबूत होगी। उसकी पीढ़ी में नई आशा का संचार होगा जो युवाओं में राजनीतिक भागीदारी बढ़ा सकती है। इजरायल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फिलिस्तीन को बड़ा समर्थन हासिल होगा। फिछले महीने ही तुर्की ने गाजा में युद्ध के विरोध में इजरायल के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंध पूरी तरह तोड़ने का ऐलान किया था। भविष्य में ऐसा कदम दूसरे मुल्क भी उठा सकते हैं खासकर वे जहां जनता में फिलिस्तीन के प्रति अत्याधिक समर्थन है। 

3-इजरायल तमाम कोशिशों के बाद भी गाजा यु्द्ध में अपना मकसद हासिल नहीं कर पाया है। वह हमास को खत्म नहीं कर पाया है, इसके साथ ही 7 अक्टूबर 2023 के हमले के सभी बंधकों को छुड़ा नहीं पाया है। अल जजीरा के मुताबिक अक्टूबर 2023 से अब तक गाजा में इजरायली हमलों में कम से कम 65,344 लोग मारे गए हैं और 166,795 घायल हुए हैं। माना जा रहा है कि हज़ारों लोग मलबे में दबे हुए हैं। ऐसे में इजरायल को लगातार सैन्य संसधानों,आर्थिक स्रोतों की तलाश रहेगी। जो फिलहाल उसे अमेरिकी मदद से मिल रहे हैं लेकिन लेकिन ग्लोबल साउथ और यूरोप का विरोध बढ़ रहा है ऐसे में भविष्य में क्या होगा ये कोई नहीं बता सकता। 

1948 में इजरायल की स्थापना के बाद से यहूदी राष्ट्र के खाते में कई सैनिक कामयाबियां दर्ज है। वहीं फिलिस्तीनी कौम के खाते में आया है अंतहीन संघर्ष, जिसको उसने पूरी ताकत से जारी रखा है और यह मानने का कोई कारण नहीं है उनका संघर्ष आजाद मुल्क की स्थापना से पहले खत्म होगा।  

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