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Explainer : POK में भूख से फैली विद्रोह की आग क्या पाकिस्तान संभाल पाएगा आंदोलन की ज्वाला? | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आग लग चुकी है। आटे की बढ़ती कीमतों से भड़की चिंगारी अब 38 मांगों वाली आंदोलन की ज्वाला बन गई है। हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं, हड़ताल और कर्फ्यू ने इलाके को ठप कर दिया है। हिंसा में दो मौतें, दर्जनों घायल हुए हैं। क्या यह पाकिस्तान से अलगाव की शुरुआत है?
Young Bharat News के इस एक्सप्लेनर में जानिए POK में चल रही इस उथल-पुथल की पूरी कहानी।
कल्पना कीजिए, जब आपके घर की रोटी ही बोझ बन जाए। यही हाल POK के लाखों निवासियों का है। 25 सितंबर को सरकार से बातचीत विफल होने के बाद, 29 सितंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू हो गई है। कश्मीर संयुक्त नागरिक कमेटी जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी ने इसे लीड किया है। शुरू में यह आटे की महंगाई पर था, लेकिन जल्द ही यह दशकों के दमन की आवाज बन गया। सड़कें खाली, दुकानें बंद, वाहन रुके- पूरी तरह 'शटर डाउन, व्हील जैम'।
इंडिया टुडे के अनुसार, दशकों का दर्द पीओके, जो भारत का अभिन्न हिस्सा है, पाकिस्तान के कब्जे में दशकों से सांस ले रहा है। यहां बुनियादी सुविधाएं सपना हैं- बिजली, पानी, स्वास्थ्य सेवाएं। लोग कहते हैं, "हम पाकिस्तान के लिए कर चुकाते हैं, लेकिन फायदा कहां?"
जल विद्युत परियोजनाओं से अरबों कमाई होती है, लेकिन रॉयल्टी का एक धेला भी POK में रहने वालों को मिलता है। यह आंदोलन नया नहीं है। साल 1947 के बंटवारे से लेकर आज तक पीओके के लोग अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं।
लेकिन, इस बार कुछ अलग है। युवा पीढ़ी सोशल मीडिया से जागरूक हुई है। वे पूछते हैं "क्यों हमारा वोट पाकिस्तानी सैनिकों के लिए?" यह दर्द सिर्फ आर्थिक नहीं, भावनात्मक भी है। एक स्थानीय निवासी ने कहा, "हम कश्मीरी हैं, पाकिस्तानी नहीं।" क्या आप जानते हैं, इस आंदोलन ने भारत में भी बहस छेड़ दी है? आगे जानिए 38 मांगों की पूरी लिस्ट।
38 मांगें सिर्फ आटा नहीं, हक की लड़ाई
आंदोलनकारी सिर्फ कीमतों पर नहीं रुके। उन्होंने सरकार के सामने एक लंबी सूची रखी है जो पीओके की जड़ों को छूती है। यहां कुछ प्रमुख मांगें हैं।
आटे और बिजली की कीमतें कम करें: महंगाई ने लोगों का जीना हराम कर दिया। आटा 50 प्रतिशत महंगा हो गया है, जबकि आमदनी स्थिर है।
वीआईपी कल्चर खत्म हो: नेता महंगे काफिलों में घूमते हैं, जबकि सड़कें टूटी पड़ी हैं। मांग है- सादगी लाएं।
प्रवासियों के लिए आरक्षित सीटें समाप्त कर पाकिस्तानी घुसपैठिए विधानसभा में सीटें हथिया रहे हैं, स्थानीय लोगों का हक छीना जा रहा।
जल विद्युत रॉयल्टी स्थानीय लोगों को नहीं, क्यों परियोजनाओं से पाकिस्तान कमाता है, पीओके को कुछ नहीं मिलता है। 50 प्रतिशत हिस्सा मांग रहे हैं।
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मोबाइल और इंटरनेट पर पाबंदी हटाएं: आंदोलन के दौरान सेवाएं बंद दमन का हथियार बन गया है।
मानवाधिकार उल्लंघन पर कार्रवाई: गायब लोग कहां हैं, जबरन गिरफ्तारियां- सभी पर जांच हो।
ये मांगें सिर्फ कागज पर नहीं, दिल की पुकार हैं।
कमेटी के नेता साजिद यूसुफ ने मीडिया से कहा, "हम शांति चाहते हैं, लेकिन दबाव नहीं।" लेकिन सरकार ने क्या किया है? बातचीत टाल दी है।
अब सवाल उठता है- हिंसा क्यों भड़की?
30 सितंबर का काला दिन हिंसा की आग 29 सितंबर को शांतिपूर्ण हड़ताल थी। लेकिन 30 सितंबर को मुजफ्फराबाद में सब बदल गया। विरोधी गुटों के बीच टकराव हुआ फिर पाकिस्तानी रेंजर्स और आर्मी सड़कों पर। गोलियां चलीं, आंसू गैस के गोले फेंके गए। नतीजा? दो मौतें, 22 से ज्यादा घायल। एक युवक की मौत ने पूरे इलाके को झकझोर दिया।
चश्मदीदों का कहना है, "हम नारे लगा रहे थे, जवाब गोलियां मिलीं।" इंटरनेट ब्लैकआउट ने खबरें दबाने की कोशिश की , लेकिन वीडियो बाहर आ गए । एक्स पूर्व ट्विटर पर POKProtest ट्रेंड कर रहा है। पाकिस्तान सरकार का दावा—'शांति बहाल' है। लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं, "यह दमन है, न्याय नहीं।"
भारत का नजरिया POK हमारा, दर्द हमारा
भारत हमेशा से कहता आया है POK भारत का हिस्सा है। यह आंदोलन दिल्ली में गूंज रहा है। विदेश मंत्रालय ने कहा, "हम POK के लोगों के हक के लिए खड़े हैं।" सोशल मीडिया पर VoiceForPOK हैशटैग वायरल हो रहा।
जानकारों का कहना है कि, "यह पाकिस्तान की आंतरिक कमजोरी दिखाता है। आर्मी का इस्तेमाल साबित करता है- लोकतंत्र नाम का ढोंग।" भारत ने यूएन में भी आवाज उठाई है। लेकिन सवाल यह- क्या यह अवसर है? या मानवीय संकट? आगे देखते हैं आंदोलन के प्रभाव।
ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाकिस्तान की निंदा की है। यह आंदोलन सिर्फ POK तक सीमित नहीं- बलूचिस्तान और सिंध में भी गूंज रहा है। क्या पाकिस्तान का फेडरल ढांचा टूटेगा? प्रमुख मांगों पर गहराई से नजर डालिए।
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चलिए, कुछ मांगों को और समझें।
वीआईपी कल्चर क्यों निशाने पर? क्योंकि नेता हेलीकॉप्टर से आते हैं, जबकि स्थानीय लोग पैदल।
जल विद्युत का मुद्दा बड़ा है: मंगल डैम से पाकिस्तान बिजली बेचता है, POK अंधेरे में।
आर्थिक प्रभाव: महंगाई 30 प्रतिशत ऊपर, बेरोजगारी 40 प्रतिशत है। सामाजिक प्रभाव युवा गुस्से में, महिलाएं आगे आ रही हैं।
राजनीतिक प्रभाव: शहबाज शरीफ सरकार पर दबाव है। आर्मी चीफ आसिम मुनीर की भूमिका सवालों में है। ये आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, जिंदगियां हैं।
आंदोलनकारी कहते हैं- हम शांति चाहते हैं, लेकिन मांगे पूरी हों। सरकार ने वार्ता का ऐलान किया है, लेकिन विश्वास की कमी है।
विशेषज्ञों का मानना- अगर दमन चला तो विद्रोह फैलेगा।
यूएन की भूमिका? या भारत की कूटनीति?
POK के लोग पूछते हैं "कब तक इंतजार?" यह सवाल सिर्फ उनका नहीं , हम सबका है। क्योंकि कश्मीर का दर्द सीमा पार नहीं करता। क्या कल सुबह नई उम्मीद आएगी या आग और भड़केगी? वक्त ही बताएगा।
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