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PAK-तुर्की दोस्ती में दरार? जानें, जनरल आसिम मुनीर की 'उस' गलती का सच

पाक-तुर्की दोस्ती अब संकट में! अंकारा में अफगान वार्ता के दौरान पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के अतार्किक बर्ताव से तुर्की खुफिया एजेंसी MIT प्रमुख नाराज हैं। क्या जनरल आसिम मुनीर को कड़ा संदेश सैन्य सहयोग कम करना है?

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Ajit Kumar Pandey
PAKISTAN TURKEY

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पाकिस्तान और तुर्की की दशकों पुरानी रणनीतिक दोस्ती टूटने की कगार पर है। अंकारा में हुई अफगानिस्तान शांति वार्ता के दौरान पाकिस्तानी सैन्य प्रतिनिधियों के गैर-पेशेवर बर्ताव से तुर्की की खुफिया एजेंसी MIT बुरी तरह नाराज हो गई है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि MIT प्रमुख ने सीधे जनरल आसिम मुनीर को कड़ा संदेश दिया है, जिसके बाद तुर्की ने पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था से अपनी सक्रिय भागीदारी अचानक कम कर दी है। इस कूटनीतिक गतिरोध ने क्षेत्रीय समीकरणों में नई अनिश्चितता पैदा कर दी है। क्यों उबल पड़ा तुर्की? अंकारा में हुआ क्या था? 

पाकिस्तान और तुर्की को अक्सर 'दो शरीर, एक आत्मा' जैसे उपमाओं से नवाजा जाता रहा है। कश्मीर मुद्दे पर तुर्की का हमेशा पाकिस्तान को खुला समर्थन रहा है, और सैन्य सहयोग भी दोनों देशों के रिश्ते की नींव रहा है। लेकिन, हालिया घटनाक्रम ने इस अटूट भरोसे पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला तुर्की और कतर की मध्यस्थता से चल रही पाकिस्तान-अफगानिस्तान शांति वार्ता से जुड़ा है।

दोनों देशों ने मिलकर एक अत्यंत नाजुक कूटनीतिक मेज तैयार की थी, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हालिया सीमा तनाव और अन्य सुरक्षा चिंताओं को कम करना था। क्या पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने जानबूझकर ऐसा किया या यह सिर्फ एक कूटनीतिक चूक थी? सवाल बड़ा है और जवाब से रिश्तों की अगली दिशा तय होगी। आसिम मुनीर की 'पसंद' पर उठे सवाल। 

सूत्रों का दावा है कि अंकारा में हुई इस महत्वपूर्ण बैठक में जो पाकिस्तानी सैन्य प्रतिनिधिमंडल शामिल था, वह पूरी तरह से जनरल आसिम मुनीर की व्यक्तिगत पसंद पर चुना गया था। इसका मतलब है कि टीम की हर हरकत, हर बयान, सीधे तौर पर पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व की राय और मंशा को दर्शाती थी। लेकिन, बातचीत में पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के बर्ताव ने तुर्की को अंदर तक हिला दिया। रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह 'अति-उत्साहित' टीम बातचीत के दौरान बार-बार ऐसे कदम उठा रही थी जो कूटनीतिक शिष्टाचार के विरुद्ध थे। 

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अतार्किक मांगें: पाकिस्तानी प्रतिनिधियों ने मेज पर ऐसी मांगें रखीं जो पूरी तरह से अतार्किक और अव्यावहारिक थीं। 

मध्यस्थों की अनदेखी: उन्होंने कई बार तुर्की और कतर के मध्यस्थों की भूमिका को नजरअंदाज किया, जो एक गंभीर कूटनीतिक अपमान माना जाता है।

शिष्टाचार का उल्लंघन: मीटिंग के दौरान अपनाए गए रवैये में पेशेवर डिप्लोमैटिक शिष्टाचार की कमी साफ दिखी, जिससे पूरी प्रक्रिया को गहरा नुकसान पहुंचा। 

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तुर्की, जो क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए बड़ी मेहनत कर रहा था, उसके प्रयासों को इस रवैये से सीधा धक्का लगा। 

जब MIT प्रमुख ने दिखाया आईना, कड़ी नाराजगी का मैसेज 

यह घटना सिर्फ कूटनीतिक मेज तक सीमित नहीं रही। सूत्रों के मुताबिक, तुर्की की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी MIT के प्रमुख, जिनकी क्षेत्रीय कूटनीति में बड़ी भूमिका होती है, ने इस बर्ताव को सीधी बेइज्जती के रूप में लिया। खुफिया मामलों में MIT प्रमुख का हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि यह मामला कितना गंभीर था। यह सिर्फ 'बैड मैनर्स' का मामला नहीं था अंकारा ने इसे 'भरोसे में आई कमी' के तौर पर देखा है। इसका असर सिर्फ कूटनीति पर नहीं, बल्कि रक्षा सौदों पर भी पड़ सकता है। 

रिपोर्ट बताती है कि MIT प्रमुख ने पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व को यह साफ और कड़ा संदेश भिजवा दिया है कि "अगर आपसी सम्मान और कूटनीतिक मर्यादा का पालन नहीं होगा, तो सहयोग की उम्मीद भी नहीं की जा सकती।" 

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यह मैसेज पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के लिए एक सीधा झटका माना जा रहा है, क्योंकि यह टीम उन्हीं की पसंद थी। 

दोस्ती पर ब्रेक: सहयोग में अचानक आई कमी 

इस घटना का असर तत्काल देखने को मिला है। तुर्की ने तुरंत बाद पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था से अपनी प्रत्यक्ष भागीदारी कम कर दी है। तुर्की और पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग और संयुक्त अभ्यास की लंबी परंपरा रही है। 

बैकडोर बातचीत ठप: हालिया हफ्तों में दोनों देशों के सैन्य नेतृत्व के बीच चल रही कई बैकडोर बातचीत लगभग ठप बताई जा रही है। 

रक्षा सौदों पर छाया संकट: भविष्य के महत्वपूर्ण रक्षा सौदे, जिनमें तुर्की से होने वाली सैन्य खरीद भी शामिल है, अब अनिश्चितता के घेरे में आ गई हैं।

खुफिया सहयोग में कमी: दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान और समन्वय भी धीमा पड़ सकता है। 

पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ा रणनीतिक नुकसान है, खासकर ऐसे समय में जब वह क्षेत्रीय अलगाव से जूझ रहा है। 

PAK ARMY CHIEF ASIM MUNIR

क्षेत्रीय राजनीति पर गहरा असर: समीकरण बदल रहे हैं? 

तुर्की और पाकिस्तान के रिश्ते में आई इस खटास का असर केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा। यह घटना क्षेत्रीय कूटनीति में नई अनिश्चितता पैदा कर सकती है। 

अफगानिस्तान मुद्दा: तुर्की का मध्यस्थता से पीछे हटना अफगान शांति प्रक्रिया को और जटिल बना सकता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव कम करने का एक महत्वपूर्ण चैनल बंद हो गया है। 

भारत-पाक संदर्भ: मई महीने में जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा था, तब तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था। अब जब अंकारा खुद इस्लामाबाद से नाराज है, तो यह देखना होगा कि भविष्य में भारत के साथ उसके संबंध किस दिशा में जाते हैं। 

क्षेत्रीय शक्ति संतुलन: तुर्की, ईरान और कतर जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ पाकिस्तान के संबंधों का नाजुक संतुलन अब बिगड़ सकता है। 

क्या आसिम मुनीर की 'नाराजगी' सिर्फ एक कूटनीतिक गलती थी या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक चाल थी? दुनिया की निगाहें अब अंकारा और इस्लामाबाद के अगले कदम पर टिकी हैं। 

क्या थी मुनीर की मंशा? जनरल आसिम मुनीर एक मजबूत और रणनीतिक सोच वाले नेता माने जाते हैं। ऐसे में उनकी पसंद के प्रतिनिधिमंडल द्वारा ऐसी 'नासमझी' भरा बर्ताव करना कई सवाल खड़े करता है। 

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पाकिस्तान की ओर से एक जानबूझकर किया गया कदम हो सकता है। हो सकता है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ बातचीत में किसी भी प्रगति को टालना चाहता हो, या फिर वह मध्यस्थों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा हो। 

हालांकि, यह तरीका उल्टा पड़ गया है और इसने सबसे पहले उसके भरोसेमंद दोस्त को नाराज कर दिया। वहीं, दूसरी राय यह है कि यह टीम की अनुभवहीनता और अहंकार का परिणाम था, जिसे जनरल मुनीर ने ठीक से मॉनिटर नहीं किया। 

जो भी हो, इस घटना ने पाकिस्तान की कूटनीतिक परिपक्वता पर गंभीर संदेह पैदा कर दिया है। डैमेज कंट्रोल कितना संभव? फिलहाल, दोनों पक्षों के बीच बैकडोर बातचीत ठप है। पाकिस्तान को अब डैमेज कंट्रोल के लिए भारी प्रयास करने होंगे। 

उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल: जनरल मुनीर को खुद या अपने किसी वरिष्ठ अधिकारी को तुरंत अंकारा भेजना पड़ सकता है ताकि MIT प्रमुख और अन्य तुर्की अधिकारियों से सीधे बात हो सके। 

माफी और सम्मान: पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से अपनी गलती माननी होगी और मध्यस्थता प्रक्रिया में तुर्की की भूमिका के प्रति गहरा सम्मान जताना होगा।

प्रतिनिधिमंडल में बदलाव: भविष्य की वार्ताओं में प्रतिनिधिमंडल को बदलना और पेशेवर कूटनीतिज्ञों को शामिल करना आवश्यक होगा। अगर पाकिस्तान जल्द ही यह डैमेज कंट्रोल नहीं कर पाया, तो तुर्की के साथ उसके रिश्ते में आई दरार स्थायी हो सकती है, जिसका क्षेत्रीय और सैन्य समीकरणों पर दूरगामी असर देखने को मिलेगा। 

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