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दक्षिण कोरिया में अचानक राष्ट्रपति चुनाव: लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा शुरू!

दक्षिण कोरिया में आज असमय राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं। मार्शल लॉ के बाद बर्खास्त राष्ट्रपति की जगह जनता नया नेता चुन रही है। लोकतंत्र, स्थिरता और नेतृत्व की परीक्षा का दिन आ गया है।

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Ajit Kumar Pandey
SOUTH KOREA ELECTION 2025
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । दक्षिण कोरिया की राजनीति में एक बार फिर बवंडर मचा है। जनता अब एक नया राष्ट्रपति चुनने के लिए तैयार है। पिछले राष्ट्रपति को हटाने के बाद असमय चुनाव हो रहे हैं। मार्शल लॉ ने देश में लोकतंत्र पर सवाल खड़े कर दिए। अब देखना है कि जनता किसे सत्ता की कुर्सी सौंपती है?

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दक्षिण कोरिया में आज मंगलवार 3 जून 2025 को राष्ट्रपति पद के लिए असामयिक चुनाव हो रहे हैं। पिछले राष्ट्रपति यून सुक योल को देश में विवादित ढंग से मार्शल लॉ लगाने के कारण पद से हटा दिया गया था। अब देश में अस्थिरता के बीच जनता वोटिंग के जरिए नए नेतृत्व का चयन कर रही है। यह चुनाव दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र और भविष्य के लिए बेहद निर्णायक माना जा रहा है।

क्यों हो रहे हैं समय से पहले चुनाव?

दक्षिण कोरिया में आमतौर पर राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होता है, लेकिन इस बार हालात अलग हैं। पूर्व राष्ट्रपति यून सुक योल ने कानून-व्यवस्था के नाम पर मार्शल लॉ लगाया, जिससे लोकतंत्र खतरे में आ गया। इसके बाद विपक्षी दलों और आम नागरिकों के भारी विरोध के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा।

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जनता की प्रतिक्रिया क्या कहती है?

सियोल से लेकर छोटे शहरों तक, आम लोग इस बार बेहद सजग और भावुक हैं। एक तरफ वे लोकतंत्र की रक्षा करना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर वे एक स्थिर और मजबूत नेतृत्व की तलाश में हैं। सोशल मीडिया पर #NewPresidentSouthKorea और #DemocracyWins जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।

मुख्य दावेदार कौन-कौन हैं?

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इस चुनाव में कई प्रमुख चेहरे सामने आए हैं।

ली जे-म्युंग (Liberal उम्मीदवार): सामाजिक न्याय और रोजगार पर फोकस।

ह्वांग क्यो-आन (Conservative उम्मीदवार): सुरक्षा और पारंपरिक मूल्यों की बात।

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कई युवा स्वतंत्र उम्मीदवार भी मैदान में हैं, जो लोकतंत्र के पुनर्निर्माण की बात कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय नज़रें क्यों टिकी हैं इस चुनाव पर?

दक्षिण कोरिया सिर्फ एशिया का आर्थिक पावरहाउस नहीं है, बल्कि उत्तर कोरिया के साथ तनाव और अमेरिका-चीन समीकरण के कारण यह चुनाव वैश्विक दृष्टि से भी अहम बन गया है। विश्लेषक इसे एशियाई लोकतंत्र की परीक्षा मान रहे हैं।

लोकतंत्र बनाम सत्ता की जंग

यह चुनाव सिर्फ चेहरा बदलने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि लोकतंत्र और सत्ता के टकराव की कहानी भी है। क्या जनता फिर से किसी सत्तावादी नेतृत्व को चुनेगी या लोकतंत्र की नई सुबह का फैसला करेगी — यह आज तय होगा।

वोटिंग में रिकॉर्ड तोड़ उत्साह

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सुबह 8 बजे तक ही 32% से ज्यादा मतदान हो चुका था। महिलाओं, युवाओं और पहली बार वोट डालने वालों में खासा उत्साह देखा गया। सभी पोलिंग बूथ पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं।

क्या आप इससे सहमत हैं?

जनता लोकतंत्र को बचाने के लिए खड़ी है। आप क्या सोचते हैं — क्या ऐसा फैसला भारत में भी कभी ज़रूरी हो सकता है?

अपनी राय नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें। 

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