नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क ।
Tahawwurrana news: मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकवादी हमलों के आरोपी Tahawwur Rana की प्रत्यर्पण प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गई है। US Supreme Court अगले महीने उनकी उस याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें उन्होंने भारत को प्रत्यर्पित किए जाने की प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की है। यह मामला न केवल भारत के लिए बल्कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी महत्वपूर्ण है।
तहव्वुर राणा पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक
Tahawwur Rana एक पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक हैं, जिनकी उम्र 64 वर्ष है। वे वर्तमान में लॉस एंजिल्स के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद हैं। राणा पर 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों में शामिल होने का आरोप है, जिसमें 166 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। वे डेविड कोलमैन हेडली के करीबी सहयोगी हैं, जो हमलों के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक है।
प्रत्यर्पण प्रक्रिया की पृष्ठभूमि
भारत सरकार ने राणा के प्रत्यर्पण की मांग की है ताकि उन्हें मुंबई हमलों में उनकी भूमिका के लिए मुकदमे का सामना करना पड़े। अमेरिकी अदालत ने पहले ही उनके प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है, लेकिन राणा ने इसे रोकने के लिए कानूनी लड़ाई जारी रखी है।
न्यायिक प्रक्रिया
प्रारंभिक याचिका: राणा ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के एसोसिएट जस्टिस एलेना कागन के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर रोक लगाने के लिए एक आपातकालीन आवेदन प्रस्तुत किया। कागन ने इस आवेदन को अस्वीकार कर दिया।
नवीनीकृत याचिका: राणा ने अपनी आपातकालीन अर्जी को नवीनीकृत किया और इसे चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स के समक्ष प्रस्तुत करने का अनुरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित एक आदेश के अनुसार, राणा के नवीनीकृत आवेदन पर 4 अप्रैल 2025 को सुनवाई होगी।
तहव्वुर राणा के तर्क
यातना का खतरा: राणा का दावा है कि यदि उन्हें भारत प्रत्यर्पित किया जाता है, तो उन्हें यातना का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने तर्क दिया है कि उनके पाकिस्तानी मूल और मुस्लिम होने के कारण उन्हें विशेष रूप से निशाना बनाया जाएगा।
स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं: राणा ने अपनी गंभीर चिकित्सा स्थिति का हवाला देते हुए कहा है कि भारतीय हिरासत में प्रत्यर्पण उनके लिए मृत्युदंड के समान होगा। उन्होंने कहा कि उनकी स्वास्थ्य स्थिति भारतीय हिरासत केंद्रों में उचित देखभाल के लिए उपयुक्त नहीं है।
कानूनी आधार: तहव्वुर राणा ने तर्क दिया है कि उनका प्रत्यर्पण अमेरिकी कानून और यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का उल्लंघन होगा।
कानूनी दृष्टिकोण
रवि बत्रा का दृष्टिकोण: न्यूयॉर्क के भारतीय-अमेरिकी वकील रवि बत्रा का मानना है कि राणा का आवेदन खारिज हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही राणा के प्रत्यर्पण की घोषणा की थी। बत्रा को उम्मीद है कि चीफ जस्टिस रॉबर्ट्स राणा को अमेरिका में रहने और भारत में न्याय का सामना करने से बचने की अनुमति नहीं देंगे।
कानूनी प्रक्रिया की जटिलता: प्रत्यर्पण मामलों में कानूनी प्रक्रिया जटिल होती है और इसमें कई स्तरों पर न्यायिक समीक्षा शामिल होती है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राणा के मामले की सुनवाई में कानूनी और राजनयिक पहलुओं पर विचार किया जाएगा।
भारत ने की यह मांग
- भारत सरकार ने राणा के प्रत्यर्पण की मांग को लगातार उठाया है।
- भारत का तर्क है कि राणा मुंबई आतंकवादी हमलों में शामिल थे और उन्हें भारतीय कानून के तहत मुकदमे का सामना करना चाहिए।
- भारत ने अमेरिकी सरकार से सहयोग की अपील की है ताकि राणा को न्याय के कटघरे में लाया जा सके।
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका
- राणा का मामला अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
- यह दर्शाता है कि आतंकवादी गतिविधियों में शामिल लोगों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग कितना महत्वपूर्ण है।
- यह मामला आतंकवाद को रोकने और भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने के लिए एक मजबूत संदेश देता है।
संभावित परिणाम
- सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद, अदालत या तो राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे सकती है या इसे रोक सकती है।
- यदि प्रत्यर्पण को मंजूरी दी जाती है, तो राणा को भारत में मुकदमे का सामना करना पड़ेगा।
- यदि प्रत्यर्पण को रोका जाता है, तो यह भारत और अमेरिका के बीच राजनयिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
Tahawwurrana की प्रत्यर्पण याचिका अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। यह मामला न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी इसका गहरा महत्व है। भारत सरकार न्याय की मांग कर रही है, और यह मामला यह निर्धारित करेगा कि क्या राणा को मुंबई आतंकवादी हमलों में उनकी भूमिका के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।