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अफगानिस्तान में जब से तालिबान सत्ता में आया है, तब से तालिबान दुनिया को यह बताने की कोशिश कर रहा है कि वह बदला हुआ तालिबान है। यह तालिबान पहले जितना कट्टर नहीं रहा। कई मौकों पर तालिबान ने यह दिखाने की कोशिश की है कि उसने भारत और दूसरे देशों के साथ संबंधों को नए स्तर पर ले जाने की कोशिश की है। इस बीच तालिबान के उप नेता का बयान आया है जिसमें कहा गया है कि लड़कियों और बच्चों की शिक्षा पर रोक लगाने की कोई वजह नहीं है।
तालिबान नेता ने क्या कहा?
हाल ही में तालिबान नेता और विदेश मंत्रालय में राजनीतिक डिप्टी शेर अब्बास स्टानिकजई ने दक्षिण-पूर्वी खोस्त प्रांत में एक भाषण में यह बात कही। स्टानिकजई ने एक धार्मिक स्कूल में आयोजित समारोह में कहा कि महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा से वंचित करने का कोई कारण नहीं है,
"जिस तरह अतीत में इसके लिए कोई औचित्य नहीं था और अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।"
क्या तालिबान बदल गया है?
तालिबान के इस बयान के बाद और नए तालिबान के काम करने के तरीकों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि क्या तालिबान बदल गया है? क्या इस नए तालिबान में 1996 से 2021 के दौर के तालिबान जितनी कट्टरता नहीं है? लेकिन इससे पहले यह समझने की कोशिश करते हैं कि पुराना तालिबान कैसा था।
पुराना तालिबान कैसा था?
तारीख थी 25 नवंबर 1996 की जब तालिबान पहली बार अफगानिस्तान में सत्ता में आया था। सत्ता में आते ही तालिबान ने बारात के करीबी नेता कहे जाने वाले नजबुल्लाह को गोली मार दी और उसकी लाश को बेरहमी से क्रेन पर लटका दिया।
इस मामले पर किंग्स कॉलेज लंदन में रक्षा अध्ययन के प्रोफेसर अविनाश पालीवाल ने अपनी पुस्तक 'एनिमीज एनिमी' में इस घटना का जिक्र किया है और कहा है कि
"इसका तत्काल प्रभाव यह हुआ कि भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया। 2001 तक, जब तक तालिबान सत्ता में था, भारत ने अपना राजदूत वहाँ नहीं भेजा। इतना ही नहीं, उसने सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 1076 का समर्थन किया, जिसमें मानवाधिकारों और महिला अधिकारों के उल्लंघन के लिए तालिबान की आलोचना की गई थी। इसके अलावा, उसने तालिबान के स्थान पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त रब्बानी सरकार को मान्यता दी और अपने राजनीतिक साथी मसूद खलीली को भारत में अफ़गानिस्तान का प्रतिनिधि स्वीकार किया। साथ ही, उसने तालिबान के खिलाफ़ संयुक्त मोर्चे को सैन्य, वित्तीय और चिकित्सा सहायता भी प्रदान की।"
महिलाओं के लिए घर जेल में तब्दील हो गया
तालिबान ने सत्ता में आते ही महिलाओं, युवतियों और लड़कियों के लिए एक के बाद एक फतवे जारी करने शुरू कर दिए, जिसमें महिलाओं के हाई हील्स और जूते पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
इतना ही नहीं, जूतों से होने वाली आवाज के लिए भी उन्हें सजा देने का प्रावधान था। उन पर मेकअप और फैशनेबल कपड़े पहनने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
''आप लोग अपने घर से बाहर नहीं निकलेंगे। अगर आपका घर से बाहर निकलना बहुत जरूरी हो जाता है तो आपको इस्लामिक शरिया कानून के मुताबिक खुद को पूरी तरह ढककर निकलना होगा। महिला मरीजों को महिला डॉक्टरों के पास ही जाना होगा। कोई भी ड्राइवर अपनी गाड़ी में ऐसी महिलाओं को नहीं बैठाएगा जिन्होंने बुर्का नहीं पहना हो। अगर वह ऐसा करता है तो ड्राइवर के साथ-साथ महिला के पति को भी सजा दी जाएगी।''
1996 से 2001 तक तालिबान द्वारा जारी किए गए फतवों की सूची देखें
लंबी दाढ़ी न रखने पर सज़ा
तालिबान ने आते ही पुरुषों के लिए लंबी दाढ़ी रखने का प्रावधान किया, जिसमें कहा गया कि अगर दाढ़ी लंबी नहीं हुई तो सज़ा दी जाएगी। तालिबान का मानना था कि छोटी दाढ़ी पश्चिमी सभ्यता का प्रतीक है।
खेलों पर प्रतिबंध
तालिबान के शासन में खेलों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था, कहा गया था कि अगर खेल के दौरान नमाज़ का समय हो जाए तो खेल रोक दिया जाना चाहिए और खिलाड़ी और दर्शक दोनों को एक साथ नमाज़ पढ़नी चाहिए। इसके अलावा अफ़गानिस्तान में प्रचलित पतंगबाज़ी और खेलों में महिलाओं की भागीदारी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। तालिबान के लिए इन आदेशों पर सवाल उठाना इस्लाम पर सवाल उठाने के बराबर हो गया था।
स्कूल बंद
तालिबान शासन के दौरान स्कूल बंद कर दिए गए, जिसके कारण कई लोग बेरोजगार हो गए। संयुक्त राष्ट्र ने इस मामले पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया
"तालिबान के सत्ता में आने के तीन महीने के भीतर, काबुल में 63 स्कूल बंद कर दिए गए, जिसके कारण 11,200 शिक्षकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा, जिनमें 7,800 महिलाएँ भी शामिल थीं।"
जिसके बाद वर्ष 1998 में यूनेस्को द्वारा एक और रिपोर्ट जारी की गई, इस रिपोर्ट में कहा गया
"तालिबान के आने के कुछ महीनों के भीतर, अफ़गानिस्तान की शिक्षा प्रणाली पूरी तरह से बिखर गई और दस में से नौ लड़कियाँ और तीन में से दो लड़के स्कूल में दाखिला नहीं ले पाए।"
बच्चों को सैनिक के रूप में भर्ती करना
एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तालिबान ने अपनी सेना में ज़्यादातर बच्चों को ही शामिल किया है। इस मुद्दे पर तब बवाल मच गया जब रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि ज़्यादातर लड़के 12 साल से कम उम्र के थे।
संगीत सुनने और फ़िल्में देखने पर प्रतिबंध
1996 से 2001 तक, जैसे ही तालिबान सत्ता में आया, सड़कों पर संगीत सुनना, फ़िल्म देखना या संगीत बजाना प्रतिबंधित कर दिया गया। इस मामले पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद हनीफी ने एक साक्षात्कार में क्या कहा, यहाँ पढ़ें:
"हम जानते हैं कि लोगों को कुछ मनोरंजन की ज़रूरत है। इसके लिए वे पार्कों में जा सकते हैं और फूलों को देख सकते हैं। तालिबान संगीत के ख़िलाफ़ है क्योंकि यह दिमाग़ में तनाव पैदा करता है और इस्लाम की शिक्षा में बाधा डालता है।"
बामियान में बुद्ध की प्रतिमा को नष्ट करना
तालिबान की कट्टरता का सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिला जब मार्च 2001 में उन्होंने बामियान में बुद्ध की दो विशाल प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया, इस घटना ने पूरी दुनिया पर गहरा असर डाला।
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अब आइए समझते हैं कि नया तालिबान कैसा है।
नए तालिबान का चेहरा पुराने तालिबान से बिल्कुल अलग दिख रहा है। पुराना तालिबान जहां कट्टर इस्लामी शासन के साथ चल रहा था, वहीं नया तालिबान थोड़े प्रगतिशील जनादेश के साथ आगे बढ़ रहा है। भारत और दुनिया के सभी बड़े देश विकास परियोजनाओं, निवेश आदि को मंजूरी देने जैसी बातों पर बात कर रहे हैं। नए तालिबान के शासन में धार्मिक कट्टरता कम हुई है।
महिलाओं के मुद्दों पर प्रगतिशील सोच दिखी
कुछ मामले ऐसे भी आए जब तालिबान ने अपनी पुरानी सोच दिखाई, लेकिन नए तालिबान के बयानों से लगता है कि तालिबान बदल गया है। नया तालिबान विकास की बात कर रहा है, नया तालिबान महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों की बात कर रहा है। अब आने वाले समय में देखना यह होगा कि तालिबान ने जो कुछ कहा है, क्या वह उसे पूरा कर पाएगा या नहीं।