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चीन का खतरनाक दांव! क्या थाईलैंड-कंबोडिया युद्ध अब तय है?

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच दशकों पुराने शिव मंदिर विवाद पर तोप-गोले बरस रहे हैं, जंग का खतरा मंडरा रहा है। अब चीन ने दखल दिया है। क्या ड्रैगन का दांव इस भीषण संघर्ष को रोकेगा या भड़काएगा? जानें इस संवेदनशील सीमा विवाद का पूरा सच और चीन की रणनीतियां।

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Ajit Kumar Pandey
चीन का खतरनाक दांव! क्या थाईलैंड-कंबोडिया युद्ध अब तय है? | यंग भारत न्यूज

चीन का खतरनाक दांव! क्या थाईलैंड-कंबोडिया युद्ध अब तय है? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । थाईलैंड और कंबोडिया के बीच एक प्राचीन शिव मंदिर, प्रीह विहार, दशकों से विवाद की जड़ बना हुआ है। सीमा पर लगातार तोप-गोलों की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं, जो एक बड़े संघर्ष का संकेत दे रही हैं। अब चीन इस विवाद में एक अहम भूमिका निभाने की तैयारी में है। क्या चीन के दखल से यह पुराना विवाद सुलझेगा, या फिर आग में घी डालने का काम होगा?

प्रीह विहार मंदिर सिर्फ एक ढांचा नहीं, बल्कि दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासत और पहचान का प्रतीक है। 11वीं शताब्दी में बना यह शिव मंदिर कंबोडिया की तरफ एक ऊंचे पठार पर स्थित है, लेकिन थाईलैंड का दावा है कि मंदिर का प्रवेश द्वार उनकी सीमा में है। 1962 में, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा घोषित किया, लेकिन इसके आसपास का इलाका अभी भी विवादित है। इसी सीमा विवाद के चलते आए दिन झड़पें होती रहती हैं, जिससे दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।

तोप-गोलों की गड़गड़ाहट: क्या युद्ध के मुहाने पर हैं थाईलैंड-कंबोडिया?

पिछले कुछ हफ्तों से थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर तनाव अपने चरम पर है। सैन्य अभ्यास और तोप-गोलों की आवाज़ें आम हो गई हैं, जिससे सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों में डर का माहौल है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वे हर पल किसी बड़ी अनहोनी की आशंका में जीते हैं। दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे पर उकसाने का आरोप लगा रही हैं, जिससे स्थिति और भी विस्फोटक होती जा रही है। 

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चीन का अप्रत्याशित प्रवेश: क्या है ड्रैगन की रणनीति?

ऐसे नाजुक मोड़ पर, चीन ने इस विवाद में अपनी रुचि दिखाई है। चीन के विदेश मंत्रालय ने हाल ही में एक बयान जारी कर दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है, लेकिन कई विशेषज्ञ इसे सिर्फ एक कूटनीतिक चाल मान रहे हैं। चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करने की फिराक में है, और इस विवाद में मध्यस्थता करके वह दोनों देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। क्या चीन का यह कदम शांति लाएगा, या फिर वह अपने भू-राजनीतिक हितों को साधने के लिए इस स्थिति का फायदा उठाएगा? यह एक बड़ा सवाल है, जिस पर दुनिया की निगाहें टिकी हैं।

इतिहास से सीख: क्या बातचीत ही एकमात्र रास्ता है?

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इतिहास गवाह है कि सैन्य टकराव कभी भी स्थायी समाधान नहीं देता। प्रीह विहार मंदिर विवाद को सुलझाने के लिए अतीत में कई बार बातचीत की कोशिशें हुई हैं, लेकिन वे असफल रहीं। अब जबकि चीन जैसे बड़े खिलाड़ी की एंट्री हुई है, तो क्या एक नया रास्ता निकल सकता है? विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों देशों को तुरंत बातचीत की मेज पर आना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करते हुए इस मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकालना चाहिए। अन्यथा, यह छोटा सा विवाद पूरे क्षेत्र की शांति भंग कर सकता है।

थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर जारी यह तनाव सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं है। अगर जंग छिड़ती है, तो इसका असर पूरे आसियान क्षेत्र की स्थिरता पर पड़ सकता है। व्यापार, पर्यटन और सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में, वैश्विक समुदाय को भी इस मुद्दे पर ध्यान देना होगा और दोनों देशों को शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रोत्साहित करना होगा। चीन की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी, और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह एक निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में उभरता है, या फिर अपने हितों को प्राथमिकता देता है।

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