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UBI की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा : जानिए — Crude oil की कीमतों में उछाल से भारत की जेब पर कितना असर?

कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भारत के चालू खाते के घाटे (CAD) के लिए चिंता का सबब बन गई हैं। UBI की रिपोर्ट बताती है कि हर $10 की बढ़ोतरी से CAD में $15 बिलियन का इजाफा हो सकता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ रहा है।

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Ajit Kumar Pandey
UBI की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा : जानिए — तेल की कीमतों में उछाल से भारत की जेब पर कितना असर? यंग भारत न्यूज

UBI की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा : जानिए — तेल की कीमतों में उछाल से भारत की जेब पर कितना असर? यंग भारत न्यूज

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ते ही हमारी सांसें अटकने लगती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका असर सिर्फ आपकी गाड़ी की टंकी पर नहीं, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है? हाल ही में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (UBI) की एक रिपोर्ट ने कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर भारत के लिए एक बड़ी चेतावनी जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में हर $10 की बढ़ोतरी होती है, तो भारत का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit - CAD) चौंकाने वाले $15 बिलियन तक बढ़ सकता है। यह आंकड़ा सीधे तौर पर हमारी आर्थिक स्थिरता और भविष्य पर सवालिया निशान लगाता है।

चालू खाता घाटा: क्यों है चिंता का विषय?

चलिए इसे आसान भाषा में समझते हैं। चालू खाता घाटा तब होता है जब कोई देश विदेशों से जितनी वस्तुएं और सेवाएं खरीदता है (आयात), उससे कम वस्तुएं और सेवाएं बेचता है (निर्यात)। यानी, हम खर्च ज्यादा कर रहे हैं और कमा कम रहे हैं। कच्चे तेल का आयात भारत के कुल आयात का एक बड़ा हिस्सा है। जब तेल महंगा होता है, तो हमें उसे खरीदने के लिए ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है, जिससे हमारा चालू खाता घाटा बढ़ जाता है।

UBI की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि तेल की कीमतों में यह उछाल भारत के लिए एक 'जोखिम' है। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि करोड़ों भारतीयों के जीवन पर सीधा असर डालने वाली बात है। महंगा तेल मतलब महंगाई, जो आपकी रसोई से लेकर आपकी जेब तक हर जगह महसूस होती है।

महंगाई का बढ़ता साया: आपकी रसोई से अर्थव्यवस्था तक

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कच्चे तेल की ऊंची कीमतें कई मायनों में भारत के लिए परेशानी का सबब बनती हैं। सबसे पहले, यह सीधे तौर पर ईंधन की खुदरा कीमतों को प्रभावित करती हैं, जिससे पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस महंगी हो जाती है। इसका सीधा असर परिवहन लागत पर पड़ता है, जो हर वस्तु की कीमत को बढ़ा देता है। सब्जियां, अनाज, फल – सब कुछ महंगा हो जाता है। यह आम आदमी की जेब पर एक अतिरिक्त बोझ डालता है और उसकी खरीदने की शक्ति को कम करता है।

दूसरे, चालू खाता घाटा बढ़ने से रुपए पर दबाव आता है। जब CAD बढ़ता है, तो विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ जाती है और रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होने लगता है। कमजोर रुपया आयात को और महंगा कर देता है, जिससे महंगाई का दुष्चक्र शुरू हो जाता है। यह विदेशी निवेश को भी हतोत्साहित कर सकता है, जो देश के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत की तेल निर्भरता: एक चुनौती

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और आयातक है। हमारी अर्थव्यवस्था ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर आयातित तेल पर निर्भर करती है। भू-राजनीतिक तनाव, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान या प्रमुख तेल उत्पादक देशों में उत्पादन में कटौती जैसे कारक अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों को तुरंत प्रभावित करते हैं। इन सभी का सीधा असर भारत पर पड़ता है। यह निर्भरता हमें वैश्विक तेल बाजार की अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बनाती है।

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सरकार ने अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने पर जोर देकर इस निर्भरता को कम करने की कोशिश की है। हालांकि, यह एक लंबी प्रक्रिया है और निकट भविष्य में भारत की तेल पर निर्भरता बनी रहेगी। ऐसे में, तेल की कीमतों में हर उतार-चढ़ाव हमारे लिए बड़ी चुनौती लेकर आता है।

आगे की राह: क्या हैं विकल्प?

इस चुनौती से निपटने के लिए भारत को बहुआयामी रणनीति अपनाने की जरूरत है। सबसे पहले, हमें अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए घरेलू तेल और गैस उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। दूसरा, अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा में निवेश बढ़ाना और उन्हें बड़े पैमाने पर अपनाना महत्वपूर्ण है। इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने के लिए प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचा तैयार करना भी आवश्यक है।

इसके अलावा, सरकार को अपनी राजकोषीय नीति में विवेकपूर्ण रहना होगा। तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती जैसे अल्पकालिक उपाय किए जा सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान हमारी ऊर्जा नीति में बदलाव में निहित हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल उत्पादक देशों के साथ कूटनीतिक संबंध मजबूत करना और स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रयास करना भी महत्वपूर्ण है।

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यह समझना होगा कि तेल की बढ़ती कीमतें सिर्फ सरकारों या बड़ी कंपनियों की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह सीधे तौर पर आपकी और हमारी जेब को प्रभावित करती हैं। हमें एक समाज के तौर पर ऊर्जा के अधिक विवेकपूर्ण उपयोग की आदत डालनी होगी। सार्वजनिक परिवहन का अधिक उपयोग करना, कार पूलिंग करना, और अपने घरों में ऊर्जा बचाने वाले उपकरणों का उपयोग करना - ये सभी छोटे कदम मिलकर बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं।

कच्चे तेल की कीमतें भारत के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई हैं। UBI की रिपोर्ट हमें इस वास्तविकता से रूबरू कराती है कि हर $10 की बढ़ोतरी से हमारे चालू खाता घाटे पर $15 बिलियन का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। यह न केवल हमारी अर्थव्यवस्था पर दबाव डालता है, बल्कि सीधे तौर पर महंगाई को बढ़ाता है और आम आदमी के जीवन को प्रभावित करता है। सरकार को इस पर तुरंत ध्यान देना होगा और दीर्घकालिक रणनीतियों के साथ-साथ अल्पकालिक राहत उपायों पर भी काम करना होगा।

क्या आप इससे सहमत हैं? क्या आपको लगता है कि भारत इस चुनौती से निपटने के लिए तैयार है? कमेंट करके हमें बताएं! 

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