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US हर हाल में इज़राइल के साथ क्यों? इन 10 सवालों के जवाब में छिपा है गहरा रहस्य | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । ऐसा क्या है जो अमेरिका को हर कदम पर, सही और गलत, इज़राइल के साथ खड़ा रखता है? जिस तरह से अमेरिका इज़राइल का समर्थन करता है, वह इस छोटे से देश के प्रति उसके गहरे सम्मान को दर्शाता है। इसके निर्माण से लेकर इसके सुदृढ़ीकरण तक, इज़राइल के विकास में अमेरिका हमेशा एक प्रमुख व्यक्ति रहा है।
इसे हर साल संयुक्त राज्य अमेरिका से पर्याप्त वित्तीय सहायता मिलती है। जिन कारणों से अमेरिका दूसरे देशों को फटकार लगाता है और उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करने को तैयार रहता है, वही कारण इज़राइल के मामले में संतुलन बदल देते हैं। जिस तरह से अमेरिका ने इस बार ईरान के खिलाफ़ इज़राइल का खुलकर साथ दिया है, उससे यह सवाल उठता है कि वह हर परिस्थिति में इज़राइल का समर्थन क्यों करता है।
हाल ही में हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में फिलिस्तीन को मान्यता देने के लिए फ्रांस और सउदी अरब के प्रस्ताव का अमेरिका ने समर्थन नहीं किया बल्कि इजराइल की भाषा बोलते हुए कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दी जा सकती है।
इससे पहले आपको याद होगा जब ईरान एक सैन्य संघर्ष में इज़राइल को बुरी तरह से हराता हुआ दिखाई दे रहा था, तब संयुक्त राज्य अमेरिका ने तुरंत इज़राइल का साथ दिया। अमेरिकी बमवर्षकों ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमला किया।
यह पहली बार नहीं है जब वाशिंगटन ने तेल अवीव का पक्ष लिया है। वास्तव में, इज़राइल की स्थापना के बाद से, अमेरिका उसका सबसे बड़ा रणनीतिक और राजनीतिक सहयोगी रहा है। वह क्या कारण है जो अमेरिका हर समय, हर परिस्थिति में इज़राइल के साथ खड़ा रहता है? इसका उत्तर देने के लिए, हमें इतिहास के कुछ पन्ने पलटने होंगे।
आइए जानते हैं वरिष्ठ पत्रकार रामबोल तोमर से फोन हुई वार्ता और 10 सवालों के जवाब....
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इज़राइल के साथ हमेशा क्यों खड़ा रखता है अमेरिका? Watch
01 : अमेरिका ने इज़राइल की स्थापना के दौरान उसका समर्थन कैसे किया?
- 1948 में जब इस क्षेत्र पर ब्रिटिश शासन समाप्त हुआ तब डेविड बेन गुरियन ने इज़राइल को स्वतंत्र घोषित कर दिया। अमेरिका केवल 11 मिनट के भीतर इस नए राष्ट्र को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया। तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने न केवल मान्यता प्रदान दी बल्कि इसके पक्ष में कूटनीतिक दबाव भी डाला। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यहूदी समुदाय के लिए एक सुरक्षित राष्ट्र की मांग को अमेरिका में राजनीतिक, धार्मिक और नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ। अमेरिका में प्रभावशाली यहूदी लॉबी और वोट बैंक ने भी इसमें भूमिका निभाई।
02 : अमेरिकी यहूदियों ने इज़राइल के निर्माण का खुलकर समर्थन कैसे किया और संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी खुले दिल से इसका समर्थन कैसे किया?
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने साल 1947 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 181 (पैलेनक योजना) का समर्थन किया, जिसमें फ़िलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव था। यदि ऐसा नहीं होता तो यहूदियों का इज़राइल नामक एक अलग राज्य कभी नहीं होता। फ़िलिस्तीन वास्तव में अलग हो गया था, लेकिन समय के साथ इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष जारी है।
03 : संयुक्त राज्य अमेरिका ने शुरुआती वर्षों में इज़राइल को वित्तीय सहायता कैसे प्रदान की?
– संयुक्त राज्य अमेरिका ने शुरुआती वर्षों में इज़राइल को वित्तीय सहायता प्रदान की, जिससे नए देश की अर्थव्यवस्था स्थिर हुई। अमेरिकी यहूदी समुदाय ने निजी तौर पर और संगठनों के माध्यम से धन जुटाया। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड ज्यूइश अपील (UJA) जैसे संगठनों ने इज़राइल के लिए बड़े पैमाने पर धन एकत्रित किया।
हालांकि साल 1948 में प्रत्यक्ष सैन्य सहायता सीमित थी बाद के वर्षों में (विशेषकर 1950 और 1960 के दशक में) अमेरिका ने इज़राइल को हथियार और सैन्य तकनीक प्रदान की।
04 : इसमें अमेरिकी यहूदी समुदाय की क्या भूमिका थी?
– अमेरिकी यहूदियों ने इज़राइल का खुलकर समर्थन किया। उन्होंने न केवल धन जुटाया बल्कि राजनीतिक पैरवी में भी भाग लिया। अमेरिकी ज़ायोनी संगठन ने अमेरिकी सरकार पर इज़राइल का समर्थन करने का दबाव डाला। द्वितीय विश्व युद्ध के दिग्गजों सहित कई यहूदी स्वयंसेवक इज़राइल गए और उसकी सेना के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अमेरिकी यहूदी समुदाय ने इज़राइल को एक यहूदी मातृभूमि के रूप में प्रचारित किया, जिससे अमेरिका में इज़राइल के लिए जन समर्थन बढ़ा।
05 : इज़राइल ने एक वफ़ादार सहयोगी की भूमिका कैसे निभाई और अमेरिका ने इसे कैसे मज़बूत करना जारी रखा?
- साल 1950 और 60 के दशक में जब पश्चिम एशिया (मिस्र, सीरिया, इराक) सोवियत प्रभाव में आ रहे थे तब अमेरिका को इस क्षेत्र में एक स्थिर और वफ़ादार साझेदार की ज़रूरत थी। इज़राइल ने यह भूमिका बखूबी निभाई। साल 1967 के छह दिवसीय युद्ध के दौरान अमेरिका ने इज़राइल को सैन्य सहायता प्रदान की। 1973 के योम किप्पुर युद्ध के दौरान अमेरिका ने ऑपरेशन निकेल ग्रास शुरू किया, जिसके तहत इज़राइल को गोला-बारूद और हथियार पहुंचाए गए। अरब देशों के विरोध के बावजूद अमेरिका ने इज़राइल को हथियार और आर्थिक सहायता देना जारी रखा। इज़राइल धीरे-धीरे पश्चिम एशिया में अमेरिका का एक सैन्य अड्डा और रणनीतिक केंद्र बन गया।
06 : यहूदी समुदाय अमेरिका में किस प्रकार प्रभावशाली स्थिति रखता है? क्या यह सरकार पर महत्वपूर्ण प्रभाव और दबाव डालता है?
– यहूदी समुदाय अर्थशास्त्र, मीडिया, शिक्षा और राजनीति में एक शक्तिशाली स्थान रखता है। अमेरिकन इज़राइल पब्लिक अफेयर्स कमेटी जैसे लॉबी संगठनों का अमेरिकी कांग्रेस और व्हाइट हाउस में व्यापक प्रभाव है। अमेरिका में लगभग 70 लाख यहूदी रहते हैं। हर राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ही इज़राइल समर्थक रुख अपनाते हैं। यहूदी लॉबी चुनावी फंडिंग, मीडिया समर्थन और विदेश नीति पर प्रभाव डालती है। परिणामस्वरूप, अमेरिका में इज़राइल विरोधी नीतियों को अपनाना राजनीतिक रूप से जोखिम भरा कदम बन गया है।
07 :डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद अमेरिका ने पूरी दुनिया को सैन्य सहायता रोक दी लेकिन इज़राइल को दी जाने वाली यह सहायता निर्विरोध रही?
– हां, ऐसा ही है। अमेरिका ने इज़राइल को 4 अरब डॉलर की वार्षिक सैन्य सहायता प्रदान करने के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। इज़राइल को अमेरिका के सबसे उन्नत हथियार (F-35 लड़ाकू विमान, आयरन डोम और मिसाइल रक्षा प्रणालियां) प्रदान किए जाते हैं। इज़राइल अमेरिकी हथियारों के परीक्षण के लिए एक अप्रत्यक्ष प्रयोगशाला भी बन गया है।
08 :क्या इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसी, मोसाद और अमेरिकी सीआईए के बीच घनिष्ठ मित्रता है?
– इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसी, मोसाद और अमेरिकी सीआईए के बीच घनिष्ठ साझेदारी है। 2010 से, दोनों देशों ने गुप्त मिशन, साइबर हमले (जैसे स्टक्सनेट वायरस) और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए अभियान साझा किए हैं।
09 : अमेरिका में इवेंजेलिकल कौन हैं जो इज़राइल के प्रबल समर्थक हैं और जिन पर अमेरिकी नेता हमेशा समर्थन के लिए निर्भर रहते हैं?
– ईसाई इवेंजेलिकल, जो अमेरिका का एक बड़ा वर्ग है, इनका मानना ​​है कि इज़राइल का अस्तित्व मसीहा के आगमन की भविष्यवाणी को पूरा करेगा। अमेरिका की लगभग 25% आबादी इवेंजेलिकल है, जिन्हें इज़राइल समर्थक माना जाता है। अमेरिकी राजनेताओं को चुनाव जीतने के लिए उनके समर्थन की आवश्यकता होती है।
यह धार्मिक विश्वास अमेरिकी विदेश नीति में इज़राइल को "ईश्वर की भूमि" के रूप में देखने के दृष्टिकोण को मज़बूत करता है। यह लॉबी राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनावों में धन, मीडिया और जनमत में एक प्रमुख भूमिका निभाती है।
ईसाई धर्म प्रचारकों का मानना ​​है कि बाइबिल की भविष्यवाणियों की पूर्ति के लिए इज़राइल का अस्तित्व आवश्यक है। इज़राइल को "ईश्वर की भूमि" और "यहूदियों का वास्तविक निवास" माना जाता है।
10 : अमेरिका की इज़राइल नीति क्या है जिसे उसकी राष्ट्रीय प्राथमिकता माना जाता है?
- अमेरिका की इज़राइल नीति को उसकी "राष्ट्रीय प्राथमिकता" कहा जाता है। इसका अर्थ है पश्चिम एशिया में इज़राइल की सुरक्षा, अस्तित्व और सैन्य श्रेष्ठता को हर कीमत पर बनाए रखना और उसे संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थायी रणनीतिक सहयोगी बनाए रखना। यह नीति अमेरिकी सरकारों (चाहे रिपब्लिकन हों या डेमोक्रेटिक) के लिए एक अटूट राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गई है।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी आधिकारिक नीति में स्पष्ट रूप से कहा है कि इज़राइल का अस्तित्व अमेरिका के राष्ट्रीय हित से जुड़ा है। अपनी सैन्य श्रेष्ठता बनाए रखना आवश्यक है। यदि कोई भी देश (ईरान, हिज़्बुल्लाह, हमास) इज़राइल के लिए खतरा पैदा करता है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका उसे सैन्य, आर्थिक और राजनयिक सहायता प्रदान करेगा।
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