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Photograph: (IANS)
वाशिंगटन, आईएएनएस। ‘यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम’ (USCIRF) ने ट्रंप प्रशासन से से पाकिस्तान के साथ मिलकर उसके ईशनिंदा (ब्लैस्पेमी) कानून में बदलाव करने या उसे रद्द करने की अपील की। आयोग ने चेतावनी दी कि यह कानून पाकिस्तान में भीड़ की हिंसा, बेगुनाह लोगों की गिरफ्तारी और ईसाइयों, अहमदिया मुसलमानों तथा अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बढ़ते खतरों का मुख्य कारण बना हुआ है। यह अपील उस समय दोहराई गई जब पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) नामक कट्टरपंथी संगठन पर प्रतिबंध लगाया है। यह संगठन अक्सर ईशनिंदा कानून के नाम पर हिंसक भीड़ इकट्ठा करने के लिए जाना जाता है।
टीएलपी ने अल्पसंख्यकों पर हमला कराने की कोशिश
यूएससीआईआरएफ ने कहा कि टीएलपी ने कई बार भीड़ को भड़काकर धार्मिक अल्पसंख्यकों को डराने-धमकाने और उन पर हमला कराने की कोशिश की है। कई मौकों पर उसने ईशनिंदा कानून तोड़ने वालों को मौत की सज़ा देने की मांग भी की है। आयोग के अनुसार, ऐसी गतिविधियां पाकिस्तान के गैर-मुस्लिम समुदायों और अहमदियों के लिए लंबे समय से खतरा बनी हुई हैं। अहमदियों को कानूनी रूप से खुद को मुसलमान बताने की अनुमति भी नहीं है। आयोग का मानना है कि ऐसे माहौल में बिना किसी प्रमाण के लगाए गए आरोप भी दंगे भड़का सकते हैं या किसी की जान ले सकते हैं।
अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भड़काना गलतः आसिफ महमूद
यूएससीआईआरएफ के उपाध्यक्ष आसिफ महमूद ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान तभी संभव है, जब दोषियों को सजा मिले। उन्होंने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भड़काना या उसका इस्तेमाल करना, राजनीतिक या सामाजिक कामकाज का वैध तरीका नहीं हो सकता। जो लोग राजनीतिक दलों या गतिविधियों की आड़ लेकर हिंसा भड़काते हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराना चाहिए। आयोग ने यह भी बताया कि ईशनिंदा के मामलों में कानूनी सज़ाओं के अलावा सामाजिक नुकसान और भी गहरे होते हैं। पाकिस्तान में कई लोग निजी झगड़े निपटाने के लिए भी ईशनिंदा के झूठे आरोप लगा देते हैं। ऐसे मामलों के कारण अक्सर बिना मुकदमे के भीड़ द्वारा हत्या या हिंसा हो जाती है, जिसका सबसे ज़्यादा असर धार्मिक अल्पसंख्यकों पर पड़ता है।
कमीशन ने वाशिंगटन से दखल देने की मांग की
कमीशन ने वाशिंगटन से खास सुधारात्मक कदमों को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम एक्ट के तहत इस्लामाबाद के साथ एक जरूरी समझौते पर विचार करने का आग्रह किया, ताकि सुधार के ठोस कदम उठाए जा सकें। जैसे कि ईशनिंदा के आरोप में जेल में बंद लोगों को रिहा कराना, भीड़ की हिंसा पर रोक लगाना और अंत में ईशनिंदा कानून को समाप्त करने की दिशा में बढ़ना। आयोग के सदस्य एम. सोलोविचक ने कहा कि अभी, ईशनिंदा के आरोपों में जेल में बंद लोगों को अक्सर मौत की सज़ा या एकांत कारावास में लंबी सजा होती है। उन्होंने अमेरिकी प्रशासन से आग्रह किया कि वह पाकिस्तान सरकार से मिलकर इन लोगों की रिहाई की कोशिश करे और भीड़ हिंसा में शामिल लोगों को सजा दिलवाए।
आयोग ने कहा- पाकिस्तान को सूचीबद्ध करे अमेरिका
यूएससीआईआरएफ की 2025 की वार्षिक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अमेरिका पाकिस्तान को फिर से "सिस्टमैटिक, लगातार और गंभीर" धार्मिक-आजादी के उल्लंघन के लिए खास चिंता वाले देश के रूप में सूचीबद्ध करे। इस सूची में आने से किसी देश पर कूटनीतिक या आर्थिक दबाव बढ़ सकता है। आयोग ने यह भी बताया कि सितंबर में जारी एक विस्तृत रिपोर्ट में पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों और उनके लिए लगातार बिगड़ते माहौल की जानकारी दी गई है। इन समुदायों को पहले से ही भेदभाव और राजनीतिक उपेक्षा का सामना करना पड़ता है।
ईशनिंदा कानून की आलोचना करते हैं मानवाधिकार संगठन
पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून, खासकर धारा 295-सी में मौत की सजा का प्रावधान है। दुनिया भर में मानवाधिकार संगठन इसकी आलोचना करते रहे हैं। पाकिस्तान ने भले ही अब तक इस प्रक्रिया को लागू नहीं किया है, लेकिन कई लोग मौत की सजा का इंतजार कर रहे हैं। कई मामलों में भीड़ ने अदालत तक बात पहुंचने से पहले ही आरोपित लोगों पर हमला कर दिया या उन्हें मार दिया। america news | pakistan | blasphemy law | Pakistan Minority Security
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