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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः यह बात भले ही हैरान करने वाली लगे, लेकिन 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान जिस पाकिस्तानी सैनिक को कब्र में जगह देने से मना कर दिया गया था, उसे अब पाकिस्तानी फील्ड मार्शल सम्मान दे रहे है।
शेरखान को अपनाने से पाकिस्तान ने कर दिया था इन्कार
पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर ने शनिवार को पूरे सैन्य अधिकारियों के साथ कारगिल के हीरो कैप्टन करनाल शेर खान को उनकी शहादत की 26वीं वर्षगांठ पर श्रद्धांजलि दी। हालांकि एक समय पाकिस्तान ने उसका शव लेने तक से इनकार कर दिया था, लेकिन यह एक भारतीय सेना अधिकारी था, जिसने शेरखान को उसकी सही जगह दिलाई। भारतीय अफसर का पत्र पाकिस्तानी सैनिक की जेब में रखा हुआ था, जिससे उसकी वीरता का पता चला। इस पत्र ने वर्ष 2000 में शेर खान को मरणोपरांत निशान-ए-हैदर से सम्मानित किए जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ब्रिगेडियर बाजवा ने पाक सरकार के लिए शेरखान की जेब में रखी थी चिट्ठी
सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल को पाकिस्तानी कब्जे से वापस लेने के लिए भारतीय सेना का नेतृत्व कर रहे थे। वो 29 वर्षीय खान के साहस से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने पाकिस्तानी सरकार को एक पत्र लिखा और शहीद सैनिक के शव को वापस किए जाने से पहले उसे उनकी जेब में रख दिया। कारगिल युद्ध के दौरान 1947 और 1965 की तरह ही पाकिस्तान ने शुरू में अपनी सेना की भागीदारी से इनकार किया था। उसका दावा था कि घुसपैठिए मुजाहिदीन थे।
अब मुनीर पहुंचे शेरखान को श्रद्धांजलि देने उसके गांव
शनिवार को पाकिस्तानी सेना और सरकार ने खैबर पख्तूनख्वा के स्वाबी में स्थित कैप्टन करनाल शेर खान की 26वीं शहादत की वर्षगांठ पर उनके मकबरे पर सैन्य सम्मान के साथ श्रद्धांजलि दी। फील्ड मार्शल मुनीर ने कारगिल युद्ध के नायक को श्रद्धांजलि दी, जिन्हें मरणोपरांत निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया गया था। पाकिस्तान के डीजी-आईएसपीआर ने एक्स पर पोस्ट किया कि 1999 में कारगिल संघर्ष के दौरान अदम्य साहस और देशभक्ति के प्रतीक कैप्टन करनाल शेर खान शहीद ने अद्वितीय वीरता के साथ मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। वो सशस्त्र बलों और राष्ट्र के लिए प्रेरणा के शाश्वत स्रोत बने हुए हैं।
कारगिल युद्ध में बाजवा हुए थे शेर खान से काफी ज्यादा प्रभावित
1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना के करनाल शेर खान ने 12वीं उत्तरी लाइट इन्फैंट्री के साथ एक कैप्टन के रूप में काम किया। गुलटारी में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर वो अपनी यूनिट का नेतृत्व कर रहे थे। जब भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए एक हमला किया। कैप्टन शेर खान की यूनिट संख्या में बहुत कम थी। नजदीकी लड़ाई के दौरान मशीन-गन की फायरिंग में बुरी तरह घायल होने के बाद खान ने 5 जुलाई को अपनी जान गंवा दी।
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