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कहां गए 40000 अमेरिकी प्रोफेशनल्स? White House का बड़ा खुलासा

ट्रंप प्रशासन ने 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत एच-1बी वीज़ा शुल्क में भारी बढ़ोतरी की है। व्हाइट हाउस का दावा है कि कई कंपनियों ने अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी करके उनकी जगह कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त किया है।

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Ajit Kumar Pandey
कहां गए 40000 अमेरिकी प्रोफेशनल्स? White House का बड़ा खुलासा | यंग भारत न्यूज

कहां गए 40000 अमेरिकी प्रोफेशनल्स? White House का बड़ा खुलासा | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में एच-1बी वीज़ा शुल्क में एक बड़ी बढ़ोतरी की घोषणा करके वैश्विक प्रौद्योगिकी और आईटी उद्योग में हलचल मचा दी है। इस कदम का सीधा असर उन हजारों विदेशी पेशेवरों पर पड़ेगा, जो अमेरिका में काम करने की इच्छा रखते हैं, और विशेष रूप से भारतीय पेशेवरों पर, जिनके लिए एच-1बी वीज़ा एक प्रमुख मार्ग रहा है। 

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, व्हाइट हाउस ने इस फैसले को 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया है, जिसका लक्ष्य अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियों को सुरक्षित करना है। सरकार का दावा है कि कई अमेरिकी कंपनियों ने जानबूझकर अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाला और उनकी जगह कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त किया, जिससे देश में बेरोजगारी बढ़ी। 

व्हाइट हाउस द्वारा जारी किए गए डेटा चौंकाने वाले हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, एक प्रमुख अमेरिकी कंपनी को 5,189 एच-1बी वीज़ा मिले, जबकि उसी दौरान उसने 16,000 से अधिक अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी की। 

एक अन्य कंपनी, जिसे 1,698 वीज़ा स्वीकृतियां मिली थीं, ने ओरेगन में 2,400 नौकरियों में कटौती की। सबसे बड़ा खुलासा एक तीसरी कंपनी के बारे में हुआ, जिसे 25,075 एच-1बी वीज़ा परमिशन मिली और उसने 2022 से अब तक 27,000 अमेरिकी कर्मचारियों की संख्या कम कर दी। 

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ये आंकड़े न केवल एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम के दुरुपयोग की ओर इशारा करते हैं, बल्कि इस बात को भी उजागर करते हैं कि कैसे विदेशी कर्मचारियों को लाना अमेरिकी श्रमिकों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। 

अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत

ट्रंप प्रशासन का मानना है कि एच-1बी वीज़ा शुल्क में वृद्धि करने से कंपनियों के लिए विदेशी कर्मचारियों को लाना महंगा हो जाएगा। इससे वे अमेरिकी श्रमिकों को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित होंगे। यह तर्क दिया जाता है कि जब तक विदेशी श्रम सस्ता उपलब्ध रहेगा, कंपनियां घरेलू प्रतिभाओं को अवसर नहीं देंगी। 

इस रणनीति का उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों को प्राथमिकता देना और यह सुनिश्चित करना है कि देश के संसाधन और अवसर पहले अमेरिकियों के लिए हों। इस फैसले के पीछे का एक और महत्वपूर्ण पहलू अमेरिकी आईटी कर्मचारियों को कथित तौर पर अवैध रूप से विदेशी श्रमिकों को प्रशिक्षण देने के लिए मजबूर किया जाना है। 

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रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिकी कर्मचारियों को अपनी नौकरी बचाने के लिए ऐसे विदेशी श्रमिकों को प्रशिक्षित करना पड़ा, जिन्हें बाद में कम वेतन पर उनकी जगह रखा गया। इस तरह की प्रथाओं ने न केवल अमेरिकी श्रमिकों के मनोबल को गिराया है, बल्कि उन्हें एक अनिश्चित भविष्य की ओर भी धकेला है। 

सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह नई शुल्क वृद्धि केवल 21 सितंबर के बाद जमा की गई नई एच-1बी याचिकाओं पर लागू होगी। पहले से जमा किए गए आवेदनों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। साथ ही, अमेरिका के बाहर रहने वाले मौजूदा एच-1बी वीज़ा धारकों को देश में दोबारा प्रवेश करने के लिए अतिरिक्त शुल्क नहीं देना होगा। 

यह निर्णय विशेष रूप से नए आवेदकों को प्रभावित करेगा और उन भारतीय कंपनियों पर भी दबाव डालेगा, जो अमेरिका में अपने कर्मचारियों को भेजना चाहती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से भारतीय आईटी सेवा कंपनियों पर भी दबाव बढ़ेगा, जिन्हें अब अमेरिका में अपने कर्मचारियों को भेजने के लिए अधिक लागत वहन करनी होगी। इससे उनके मुनाफे पर असर पड़ सकता है और वे अपनी भर्ती नीतियों में बदलाव करने पर मजबूर हो सकते हैं। 

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वहीं, कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि यह कदम अमेरिका में तकनीकी प्रतिभाओं की कमी को बढ़ा सकता है, क्योंकि कंपनियां अब शीर्ष विदेशी प्रतिभाओं को आकर्षित करने में हिचकिचा सकती हैं। कुल मिलाकर, एच-1बी वीज़ा शुल्क में वृद्धि एक ऐसा कदम है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे और यह अमेरिका और भारत दोनों के प्रौद्योगिकी उद्योगों को प्रभावित करेगा। 

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