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मुंबई, वाईबीएन डेस्क।मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) के तहत दर्ज मामले में अपना निर्णय सुनाते हुए टिप्पणी की है कि सिर्फ आई लव यू कहने को यौन उत्पीड़न का इरादा नहीं माना जा सकता, और इसी आधार पर आरोपी को बरी कर दिया गया। हाई कोर्ट लगभग एक दशक पहले हुई घटना की सुनवाई कर रही थी।
जुबान से नहीं, कृत्य भी झलकना भी चाहिए: कोर्ट
हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने में एक अदालत की अध्यक्षता करने वाली न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के ने कहा कि जैसा कि कानून में माना जाता है, ‘आई लव यू' जैसे शब्द अपने आप में ‘यौन उत्पीड़न के इरादे’ के समान नहीं माने जा सकते। अगर बोले गए शब्दों को यौन इरादे के रूप में लिया जाए, तो इसके साथ कुछ और भी होना चाहिए, जो यह स्पष्ट करे कि असली इरादा सेक्स के पहलू को घसीटना है। अर्थात, कृत्य से यह झलकना चाहिए।
कोर्ट ने आरोपी को किया बरी
बार एंड बैंच की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने यह कहते हुए 2015 में भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) के तहत दर्ज मामले में उस व्यक्ति को बरी कर दिया, जिसकी उम्र अब लगभग 35 वर्ष है। सुनवाई के दौरान सोनाली खोबरागड़े अपीलकर्ता की वकील थीं, जबकि अतिरिक्त लोक अभियोजक एमजे खान प्रतिवादी/राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
जानिए क्या है पूरा मामला
वर्ष 2017 में नागपुर की एक सत्र अदालत ने अपीलकर्ता को तीन वर्ष का कठोर कारावास तथा 5,000 का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया था। इस घटना के समय पीड़िता 17 वर्ष की थी और नागपुर जिले के काटोल की रहने वाली थी। जबकि आरोपित की उम्र उस समय लगभग 25 वर्ष थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपित ने मोटरसाइकिल पर उसका पीछा किया। उससे उसका नाम बताने पर जोर दिया। फिर उसका दाहिना हाथ पकड़ लिया और कहा ‘आई लव यू’। इसके बाद पीड़िता अपने घर गई और उसने अपने पिता को घटना बताई। इसके बाद रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी।
कोर्ट ने कहा- पोक्सो के तहत नहीं बनता कोई केस
न्यायाधीश ने 26 पन्नों के फैसले में कहा है कि पीड़िता के साक्ष्य की प्रकृति को देखते हुए पोक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत अपराध भी नहीं बनता है। क्योंकि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने यौन उत्पीड़न के इरादे से पीड़िता के निजी अंग को छुआ हो। इसलिए धारा 8 के तहत अपराध भी नहीं बनता है।
अभियोजन पक्ष द्वारा पीड़िता पर यौन उत्पीड़न साबित नहीं किया जा सका है। न्यायाधीश ने आरोपित को बरी करते हुए अपने आदेश में कहा कि आरोपित के खिलाफ न तो आईपीसी की धारा 354-ए और 354-डी के तहत और ना ही पोक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत कोई अपराध बनता है।