नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे एक परिवार के छह सदस्यों को पाकिस्तान वापस भेजने जैसी कोई दंडात्मक कार्रवाई न करें, जब तक कि उनकी नागरिकता के दावों का सत्यापन नहीं हो जाता। यह परिवार कथित तौर पर वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी भारत में रह रहा है।
दस्तावेजों की जांच के आदेश
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अधिकारियों से कहा कि वे परिवार के पहचान दस्तावेजों जैसे पासपोर्ट, आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि और उनके संज्ञान में लाए गए अन्य प्रासंगिक तथ्यों का सत्यापन करें। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश को मिसाल के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।
मामले के मानवीय पहलू को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने परिवार को यह परिवार को यह स्वतंत्रता दी कि अगर वे दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया से असंतुष्ट हैं तो वे जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
कोर्ट में याचिकाकर्ता की दलील
परिवार की ओर से पेश हुए वकील नंद किशोर ने दावा किया कि उनके पास वैध पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं। पीठ ने प्राधिकारियों को दस्तावेजों का सत्यापन जल्द से जल्द करने का निर्देश दिया है, हालांकि इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील से सवाल किया, 'इनके पिता भारत कैसे आए? आपका कहना है कि वे पहले पाकिस्तान में थे।' इस पर वकील नंद किशोर ने बताया कि परिवार के मुखिया 1987 में वैध वीजा पर भारत आए थे और उन्होंने सीमा पर अपना पाकिस्तानी पासपोर्ट जमा कर दिया था। ऑनलाइन माध्यम से सुनवाई में शामिल परिवार के एक सदस्य ने यह भी दावा किया कि उनके पिता मुजफ्फराबाद से भारत आए थे।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह उचित होगा कि याचिकाकर्ता पहले संबंधित प्राधिकारियों से संपर्क करें ताकि उनके दावों का सत्यापन हो सके। उन्होंने पीठ को आश्वासन दिया कि दस्तावेजों पर निर्णय आने तक याचिकाकर्ता परिवार के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
क्या है मामला
यह मामला अहमद तारिक बट और उनके परिवार के पांच अन्य सदस्यों की याचिका पर आधारित था। याचिकाकर्ता परिवार कश्मीर में रहता है और उनके परिवार में कुल 6 लोग हैं। दो बेटे बैंगलोर में काम करते हैं। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वैध भारतीय दस्तावेज़ होने के बावजूद उन्हें हिरासत में लिया गया और पाकिस्तान भेजने के लिए वाघा सीमा तक ले जाया गया। न्यायालय ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए इस बात पर भी ध्यान दिया कि पहलगाम में हुए हमले के बाद केंद्र सरकार ने 25 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें उल्लिखित कुछ लोगों को छोड़कर, शेष सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए गए थे और उन्हें वापस भेजने के लिए समय-सीमा भी निर्धारित की गई थी।
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