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Kanpur News: कनपुरियों को लगा दिल्ली का स्वाद, रोजाना चट कर रहे डेढ़ से दो लाख रोटी

दिलखुश शहर कानपुर में त्योहार कोई भी हो, यहां के लोग स्वाद से समझौता नहीं करते हैं। यही वजह है कि रमजान माह के दिनों में दिल्ली के हाथों की स्पेशल रोटी हर जुबां की पहली पसंद बनी है। आलम यह है कि रोजाना लोग डेढ़ से दो लाख रोटी चट कर जा रहे हैं।

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Vibhoo Mishra
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कानपुर, वाईबीएन संवाददाता। 

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दिलखुश शहर कानपुर में त्योहार कोई भी हो, यहां के लोग स्वाद से समझौता नहीं करते हैं। यही वजह है कि रमजान माह के दिनों में दिल्ली के हाथों की स्पेशल रोटी हर जुबां की पहली पसंद बनी है। आलम यह है कि रोजाना लोग डेढ़ से दो लाख रोटी चट कर जा रहे हैं। ये स्पेशल रोटियां एक दो नहीं बल्कि सात तरह से बनाई जा रही हैं, जिन्हें बनाने के लिए दिल्ली के खास करीगर इन दिनों शहर के अलग अलग होटलों में डेरा डाले हुए हैं। आइए आपकों बताते हैं कि क्या है इन रोटियों का राज!

रोटी बनाने दिल्ली से आए कारीगर

रमजान का महीना शुरू होते ही इन स्पेशल रोटियों की मांग शुरू हो जाती है, शहर के बीच यतीम खाने से लेकर तलाक महल चैराहे तक शाम से छोटे-बड़े होटल गुलजार हो जाते हैं। यहां पर खास कारीगर इन रोटियों को खास तरीके से बनाते हैं। होटल संचालकों ने इन कारीगरों को दिल्ली, लखनऊ, बहराइच समेत आसपास के जिलों से बुलाया है, शहर में इन दिनों डेढ़ सौ से दो सौ कारीगर बाहर से आ हुए हैं, जो चमनगंज, बेकनगंज, रूपम टाकीज चैराहे से कोतवाली तक के होटलों में काम कर रहे हैं, कुछ कारीगर जाजमउ और रामादेवी के होटलों में भी अपने हाथों का हुनर दिखा रहे हैं।

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सात किस्म की रोटी बनाते कारीगर

अभी तक दो या तीन तरह की रोटी के बारे में जानते आए हैं लेकिन दिल्ली से आए ये कारीगर सात अलग अलग किस्म की रोटियां बना रहे हैं। इसमें गिरदा, कुलचा, शिरमाल, बाकरखानी, पाफदान, अंघेरी और रुमाली आदि प्रकार की रोटी हैं। इसके अलावा लच्छा पराठा और तंदूरी रोटी भी शामिल हैं। इन खास प्रकार की रोटियों का स्वाद वैसे तो दिल्ली में हमेशा मिलता है लेकिन रमजान का महीना शुरू होते ही कानपुर में भी इनकी मांग बढ़ जाती है। 

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खास तरीके से बनती है गिरदा और बाकरखानी रोटी

रोटियों में गिरदा और बाकरखानी की मांग अधिक रहती है, इनके बनाने की विधि भी खास है। कारीगर फिरोज बताते हैं गिरदा रोटी बनाने के लिए मैदा आटा गूंदने में कारीगरी होती है। इसमें पहले घी बराबर से डाला जाता है और फिर उसका जाल खोलकर गूंथा जाता है। इसके बाद उसकी परत बनाई जाती है। इसी तरह खास तरीके से बाकरखानी रोटी बनाई जाती है, इसे मेवे वाली रोटी भी कहा जाता है। इसके लिए मैदा आटा को दूध से गूंथने के साथ उसमें काजू, बादाम, किशमिश आदि मेवा मिलाई जाती है। इसके बाद तैयार लोई को रोटी बनाने के बाद उसमें उपर से चिरौंजी समेत सभी मेवा लेकर परत चिपका दी जाते है और फिर उसे तंदूर में पकने के लिए लगाया जाता है।

100 रुपये की है मेवा वाली रोटी

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इन खास रोटियों के लजीज स्वाद के आगे उनके दाम मायने नहीं रखते हैं। मेहनत और करीगरी से बनने वाली रोटी पांच रुपये से शुरू होकर सौ रुपये तक बिक रही हैं। इसमें सबसे महंगी मेवा वाली रोटी है, जिसकी एक रोटी की कीमत सौ रुपये तक है। वहीं गिरदा, कुलचा और लच्छा पराठा पचास रुपये तक में बिक रहा है।  शाम होते ही होटल गुलजार हो जाते हैं और रोटी की मांग शुरू हो जाती है। होटल संचालक बताते हैं कि रोटी की पैकिंग के आर्डर ज्यादा आते हैं।

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बीस हजार से 60 हजार मेहनताना ले रहे कारीगर

खास किस्म की रोटी बनाने वाले कारीगरों का मेहनताना भी खास है। आमतौर होटल में दस से पंद्रह हजार में काम करने वाले कारीगर होते हैं। लेकिन, खास तरह की रोटियां बनाने के लिए बुलाए गए कारीगर मेहनताना भी मनमाफिक ले रहे हैं। अलग अलग होटलों में काम कर रहे कारीगर अपने हुनर के मुताबिक बीस हजार रुपये से 60 हजार रुपये प्रतिमाह का मेहनताना ले रहे हैं। हालांकि होटल मालिक भी उन्हें मुंहमांगा मेहनताना देने से गुरेज नहीं कर रहे हैं क्योंकि रोटियों की मांग इतनी ज्यादा है कि उन्हें भी खूब मुनाफा हो रहा हैं। होटल संचालकों की मानें तो रोजाना डेढ़ लाख से दो लाख रोटियों की खपत हो रही है।

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