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Kanpur News : क्या होता है डिस्लेक्सिया और बच्चों में इस समस्या को कैंसे करें दूर, आईआईटी बता रहा उपाय

डिस्लेक्सिया एक तरह की लर्निंग डिसएबिलिटी है, जो खासकर पढ़ाई से जुड़ी समस्याओं से संबंधित होती है। बच्चों में होने वाली इस न्यूरोलॉजिकल स्थिति को समय पर पहचानकर मदद करनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है जागरूकता। 

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Abhishek kumar
डिस्लेक्सिया को लेकर आईआईटी कानपुर ने कार्यक्रम शुरू किया है।

आईआईटी कानपुर ने सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को प्रशिक्षण देने की पहल की है। Photograph: (वाईबीएन)

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कानपुर, वाईबीएन संवाददाता (Kanpur News)

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डिस्लेक्सिया एक तरह की लर्निंग डिसएबिलिटी है, जो खासकर पढ़ाई से जुड़ी समस्याओं से संबंधित होती है। बच्चों में होने वाली इस न्यूरोलॉजिकल स्थिति को समय पर पहचानकर मदद करनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है जागरूकता क्योंकि ज्यादातर लोग ऐसी स्थिति में बच्चों का स्वभाव समझने में असमर्थ होते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर की ओर से डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के लिए पहल की गई है। कानपुर के ग्रामीण क्षेत्र, वाराणसी, गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम में सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर परामर्शदाता के तौर पर तैयार किया जाएगा। इसकी शुरुआत कानपुर के NLK अकादमी से हो चुकी है। 

क्यूट ब्रेन्स ने NLK अकादमी से की शुरुआत

आईआईटी के क्यूट ब्रेन्स प्राइवेट लिमिटेड ने NLK अकादमी में कार्यशाला का आयोजन किया। इसका उद्​देश्य सरकारी स्कूलों में मनोवैज्ञानिक मदद को मजबूत करने, शिक्षकों के बीच डिस्लेक्सिया और डिसग्राफिया से प्रभावित बच्चों की आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने और डिस्लेक्सिया के लिए गैर-क्लिनिकल आकलनों का विस्तार करना है। कार्यक्रम में 30 से अधिक शिक्षकों ने प्रतिभाग किया। डाना फाउंडेशन के CSR समर्थन और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के स्टार्टअप इन्क्यूबेशन और इनोवेशन सेंटर (SIIC) की सहायता से क्यूट ब्रेन्स सरकारी और निजी प्राथमिक स्कूलों को मार्गदर्शन देने के लिए है। माता-पिता और शिक्षकों को संवेदनशील बनाना, गैर-क्लिनिकल आकलनों में सहायता करना और डिस्लेक्सिया और डिसग्राफिया से पीड़ित छात्रों के लिए सहायक एप्लिकेशन (AACDD) का उपयोग करके एप्लिकेशन-आधारित हस्तक्षेप प्रदान करना है।

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सरकारी विद्यालयों को बनाया लक्ष्य

आईआईटी के उप निदेशक एवं ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ब्रजभूषण ने कहा कि "दाना फाउंडेशन नाम की कंपनी के सीएसआर फंड की मदद से सरकारी विद्यालयों को लक्ष्य बनाया गया है, क्योंकि इनमें आने वाले गरीब बच्चे पढ़ते हैं और वहां कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। पूर्व में वाराणसी में एक कंपनी की मदद से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया गया था, जिसमें शिक्षकों को तैयार किया गया। वहां, 100 बच्चों पर काम करने का लक्ष्य है और 59 बच्चों का मूल्यांकन हो चुका है, जबकि बाकी का परीक्षण किया जा रहा है। इनमें चार बच्चे इस बीमारी से पीड़ित मिले हैं।"

न्यूरोलॉजिकल स्थिति है डिस्लेक्सिया

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उन्होंने बतया कि डिस्लेक्सिया एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जो पढ़ने, लिखने, वर्तनी और कभी-कभी बोलने में कठिनाई का कारण बनती है। यह एक सामान्य शिक्षण अक्षमता है, जो बुद्धि से संबंधित नहीं है। डिस्लेक्सिया वाले लोग अक्सर शब्दों, अक्षरों या ध्वनियों को संसाधित करने में परेशानी महसूस करते हैं, जिससे पढ़ने की गति धीमी हो सकती है या शब्दों को समझने में दिक्कत हो सकती है। उन्होंने कहा कि डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए आईआईटी कानपुर लगातार प्रयासरत है। आने वाले समय में जागरूकता को बड़े स्तर पर ले जाया जाएगा। साथ ही डेटा सर्वे के माध्यम से यह भी समझने की कोशिश की जाएगी कि किस क्षेत्र में बच्चों पर इसका कितना असर हुआ है।

Kanpur News
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