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SDBurman Photograph: (IANS)
मुंबई। हिंदी सिनेमा के महान संगीतकार सचिन देव बर्मन को सुरों का शहंशाह कहा जाता है। अपनी अनोखी धुनों और लोकसंगीत के मेल से उन्होंने फिल्मी संगीत को नया आयाम दिया। परफेक्शनिस्ट स्वभाव के कारण वह किसी भी समझौते के पक्षधर नहीं थे। कहा जाता है कि एक गाने को लेकर उनका लता मंगेशकर से मतभेद हो गया था, जिसके चलते दोनों के बीच लगभग पांच साल तक बातचीत बंद रही। हालांकि बाद में यह नाराजगी दूर हुई और दोनों ने फिर मिलकर कालजयी गीतों को जन्म दिया, जो आज भी श्रोताओं के दिलों में बसे हैं।
कालजयी गीतों के जन्मदाता
मालूम हो कि भारतीय फिल्म संगीत की दुनिया में कई नाम चमके, लेकिन कुछ सितारे ऐसे होते हैं जिनकी रोशनी कभी फीकी नहीं पड़ती। संगीतकार सचिन देव बर्मन, यानी एसडी बर्मन, ऐसे ही एक चमकते सितारे थे। उनके गाने न सिर्फ सुने जाते थे, बल्कि महसूस भी किए जाते हैं। वे संगीत को आत्मा की आवाज समझते थे। यही वजह थी कि वे अपने संगीत में किसी तरह का समझौता नहीं करते थे। एक बार उन्होंने एक गाने को दोबारा रिकॉर्ड करवाने की जिद पकड़ ली और जब लता मंगेशकर ने मना किया, तो वे पांच साल तक उनसे नाराज रहे। यह किस्सा उनके परफेक्शनिस्ट स्वभाव की मिसाल बन गया।
कई यादगार गानों पर साथ काम किया
एसडी बर्मन सिर्फ अच्छे संगीतकार ही नहीं थे, वे बेहद जिद्दी और परफेक्शन के दीवाने भी थे। उनके और लता मंगेशकर के बीच एक दिलचस्प किस्सा हुआ। 1958 में आई फिल्म 'सितारों से आगे' के लिए लता जी ने एक गाना 'पग ठुमक चलत' रिकॉर्ड किया। बर्मन साहब ने रिकॉर्डिंग के बाद इसे 'ओके' भी कर दिया था, लेकिन कुछ दिन बाद उन्होंने लता मंगेशकर को फोन करके कहा कि वे इस गाने को फिर से रिकॉर्ड करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें कुछ और सुधार हो सकता है। लता मंगेशकर उस समय किसी सफर पर जा रही थीं, इसलिए उन्होंने मना कर दिया।
बर्मन साहब को उनका मना करना बुरा लग गया और वे इतने नाराज हुए कि अगले पांच साल तक उन्होंने लता मंगेशकर के साथ कोई काम नहीं किया। यह नाराजगी तब खत्म हुई जब उनके बेटे, राहुल देव बर्मन (पंचम दा), ने अपनी पहली फिल्म 'छोटे नवाब' (1962) में लता मंगेशकर से गाना गवाने की जिद की। पंचम दा की बात टालना मुश्किल था और इस तरह बर्मन साहब ने लता से सुलह कर ली। इसके बाद दोनों ने कई यादगार गानों पर साथ काम किया।
हिंदी सिनेमा में उनका सफर
एसडी बर्मन का जन्म 1 अक्टूबर 1906 को हुआ था। वह त्रिपुरा के शाही परिवार से ताल्लुक रखते थे। बचपन से ही उन्हें लोक संगीत में गहरी रुचि थी। वह गांवों में घूम-घूमकर लोक गीतों को सुनते और उनसे प्रेरणा लेते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई कोलकाता यूनिवर्सिटी से की थी और वहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई। 1932 में वह कोलकाता रेडियो स्टेशन से बतौर गायक जुड़े और जल्द ही बंगाली फिल्मों के लिए संगीत देने लगे। 1940 के दशक में एसडी बर्मन मुंबई आए और यहीं से हिंदी सिनेमा में उनका सफर शुरू हुआ। 1946 की फिल्म 'शिकारी' से उन्हें पहला बड़ा मौका मिला। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गुरुदत्त, देवानंद और बिमल रॉय जैसे निर्देशकों की फिल्मों में उनका संगीत एक अहम हिस्सा बन गया। 'प्यासा,' 'गाइड,' 'बंदिनी,' 'अभिमान,' 'चलती का नाम गाड़ी,' 'शबनम,' 'तेरे मेरे सपने,' 'ज्वेल थीफ,' 'कागज के फूल,' 'सुजाता,' और 'प्रेम पुजारी' जैसी फिल्मों में उन्होंने जो धुनें बनाईं, वो आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं। उनकी खास बात यह थी कि वह अपने संगीत में शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत, और पश्चिमी साउंड का ऐसा अनोखा मेल तैयार करते थे।
100 से ज्यादा फिल्मों के लिए दिया संगीत
अपने लंबे करियर में उन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों के लिए संगीत दिया और लगभग हर बड़े गायक-गायिका के साथ काम किया। उन्हें कई सम्मान भी मिले। भारत सरकार ने उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिए कई मंचों पर सम्मानित किया। 2007 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया। त्रिपुरा सरकार हर साल एसडी बर्मन मेमोरियल अवॉर्ड भी देती है। 31 अक्टूबर 1975 को उनका निधन हो गया।
(इनपुट-आईएएनएस)