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भाजपा की ओबीसी रणनीति: 2027 की फतह के लिए सामाजिक समीकरण साधने की तैयारी

पार्टी सूत्रों के अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष पद पर एक ओबीसी चेहरा लाने पर गंभीरता से विचार हो रहा है। भूपेंद्र सिंह चौधरी को कैबिनेट में एंट्री की संभावना है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी, जो जाट पृष्ठभूमि से आते हैं

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Anupam Singh
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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर जातीय संतुलन और सामाजिक इंजीनियरिंग के दौर में प्रवेश कर रही है। आगामी 2027 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा अपनी रणनीति को नए सिरे से गढ़ रही है। पार्टी की नजर इस बार विशेष रूप से ओबीसी वोट बैंक पर है, जिसे साधने के लिए कई अहम फैसले जल्द लिए जा सकते हैं। 

ओबीसी पर फोकस, पीडीए कार्ड की काट

समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) कार्ड के जरिए सामाजिक न्याय की राजनीति को धार दी थी। इस रणनीति ने भाजपा को कुछ क्षेत्रों में चुनौती भी दी। अब भाजपा उसी मोर्चे पर पलटवार की तैयारी में है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष पद पर एक ओबीसी चेहरा लाने पर गंभीरता से विचार हो रहा है।

भूपेंद्र सिंह चौधरी के कैबिनेट में एंट्री की संभावना

वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी, जो जाट पृष्ठभूमि से आते हैं उनको राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। इससे संगठन में खाली हो रहे स्थान पर नया ओबीसी चेहरा बैठाया जा सकेगा, जो 2027 तक पार्टी की सामाजिक पहुंच को और व्यापक बनाएगा।  

मंत्रिमंडल विस्तार की सुगबुगाहट 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार में भी संभावित मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं तेज हो गई हैं। इसमें पिछड़े वर्ग, दलित और महिलाओं को प्राथमिकता देकर पार्टी सपा और कांग्रेस के जातीय समीकरणों को चुनौती देना चाहती है। इसके जरिए पार्टी 2027 तक सभी प्रमुख वर्गों में प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण का संदेश देना चाहती है।

दिल्ली दरबार में यूपी मिशन पर मंथन

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पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष ने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और मंत्री ब्रजेश पाठक को दिल्ली बुलाकर उत्तर प्रदेश संगठन और सरकार के कार्यों की समीक्षा की। इन बैठकों को भाजपा के 2027 मिशन की नींव माना जा रहा है। यह स्पष्ट संकेत है कि पार्टी न केवल लोकसभा चुनाव के नतीजों का मूल्यांकन कर रही है, बल्कि भविष्य की रणनीति को भी अंतिम रूप दे रही है। राजनीतिक संदेश और जमीन पर प्रभाव भाजपा के यह संभावित कदम महज संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि गहरे राजनीतिक संदेश लिए हुए हैं। पार्टी यह संकेत देना चाहती है कि वह केवल उच्च जाति आधारित पार्टी नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों की प्रतिनिधि है। इसका असर ग्रामीण और अर्ध-शहरी वोटरों पर भी पड़ेगा, जहां ओबीसी और दलित मतदाताओं की संख्या निर्णायक है।

2027 की तैयारी, सामाजिक संतुलन की कुंजी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा निर्णायक रहे हैं। भाजपा इस बार किसी भी तरह की रणनीतिक चूक नहीं करना चाहती। ओबीसी समुदाय पर फोकस, संगठन में बदलाव और मंत्रिमंडल विस्तार, यह सभी कदम 2027 की फतह के लिए अहम साबित हो सकते हैं। वहीं विपक्ष की पीडीए नीति को मात देने के लिए भाजपा की यह सामाजिक इंजीनियरिंग कितनी कारगर होती है, यह आने वाले महीनों में साफ होगा।

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